Siddheshwar Dham (Char Dham) : सोलोफोक पहाड़ी पर दिखती है देशभर के मंदिरों की झलक
punjabkesari.in Friday, Aug 08, 2025 - 07:48 AM (IST)

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Siddheshwar Dham (Char Dham): सिक्किम के दक्षिणी जिले का जिला मुख्यालय होने के बावजूद नामची एक छोटा-सा शहर है। नामची का सबसे बड़ा आकर्षण यहां की सोलोफोक पहाड़ी पर स्थित चारधाम या सिद्धेश्वर धाम है।
सिद्धेश्वर धाम इतिहास
महाकाव्य महाभारत में एक ऐसा अध्याय है, जहां पर अर्जुन शिव भगवान से पशुपतिअस्त्र प्राप्त करने के लिए कड़ी तपस्या करते हैं। जब शिवजी उनके समर्पित धीरज से प्रसन्न हुए, तो उन्होंने अर्जुन के सम्मुख प्रकट होकर उन्हें पशुपतिअस्त्र का वरदान दे दिया। कहा जाता है कि यह प्रकरण नामची की सोलोफोक पहाड़ी पर घटित हुआ था। धार्मिक सिक्किम पर एक किताब के अनुसार, अर्जुन को पशुपतिअस्त्र का आशीर्वाद देने के लिए इस पहाड़ी पर शिव भगवान के अवतरण की खुशी मनाने के प्रतीक स्वरूप चारधाम का परिसर बनवाया गया था। इस परिसर का उद्घाटन नवम्बर 2011 में जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज और अनेकों धार्मिक गण्यमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में प्राण प्रतिष्ठान के साथ हुआ था।
मनमोहक सिद्धेश्वर धाम
ऊंची पहाड़ी पर स्थित होने के कारण बादलों के बीच से गुजरते हुए आप मंदिरों और भगवान शिव की मूर्ति को बादलों के बीच से उभरते हुए देख सकते हैं, जो आपको एक झलक देकर वापस बादलों के बीच खो जाते हैं। यहां के फूल अपने रंगों की जीवंतता से पूरे वातावरण में खुशी भर देते हैं। चारों ओर इतने सुंदर पहाड़ी फूल हैं कि रास्ते में रुक-रुक कर उनकी तस्वीरें खींचने को मन करता है।
नामची में चारधाम का परिसर
नामची के चारधाम परिसर का केंद्रीय आकर्षण 87 फुट ऊंची शिव मूर्ति है, जो पहाड़ी के शिखर पर स्थित है। यह मूर्ति पहाड़ी के पश्चिमी छोर पर पूर्वी दिशा की ओर मुख किए स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों से घिरी है। ये 12 प्रसिद्ध शिव मंदिर पूरे भारत के धार्मिक भूगोल पर फैले हैं। यहां का प्रत्येक शिवलिंग अपनी मूल जगह पर स्थापित शिवलिंग की सटीक प्रतिकृति है।
किर्तेश्वर प्रतिमा
आप जैसे ही चारधाम के परिसर में प्रवेश करते हैं, हाथ में धनुष पकड़े किर्तेश्वर की मूर्ति को सामने खड़ा पाते हैं। सिक्किम में यह शिव भगवान का स्थानीय अवतार माना जाता है। पूरे सिक्किम में किर्तेश्वर को समर्पित बहुत से पुराने मंदिर देखने को मिलते हैं। किर्तेश्वर का अर्थ है पशुओं का रक्षक।
गंगा-यमुना अपने-अपने वाहन पर चारधाम परिसर के बीचों-बीच एक फव्वारा बहता है, जहां अपने-अपने वाहन, मगरमच्छ और कछुआ पर खड़ी गंगा और यमुना की मूर्तियां हैं। यह प्रयाग में गंगा और यमुना नदी के संगम की अभिव्यक्ति है।
चारधाम के मंदिर
भारत के तीर्थस्थलों में से ये चार प्रमुख मंदिर, सामूहिक रूप से चारधाम के नाम से प्रसिद्ध हैं, जो भारत के चारों कोनों में स्थित है। उत्तराखंड में बद्रीनाथ, गुजरात के द्वारका में सोमनाथ, ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ और तमिलनाडु में रामेश्वरम। इन प्रत्येक धामों की प्रतिकृति यहां सिक्किम के नामची शहर में है। जब हम भौगोलिक दृष्टि से संवितरित इन मंदिरों को देखते हैं, तो ये मंदिर अपने आप में हमारी संस्कृति और परंपराओं की प्रचुरता की बहुत सारी बातें बयां करते हैं।
रामेश्वरम मंदिर
पहला पड़ाव रामेश्वरम मंदिर द्रविड़ मंदिरों की शैली में निर्मित है। वह अन्य मंदिरों से थोड़ा अलग भी है। रंग-बिरंगे ऊंचे गोपुरम के द्वारा मंदिर में प्रवेश होता है। वहां जाकर शिवलिंग की पूजा-प्रार्थना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह शिवलिंग भगवान श्रीराम ने ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए लंका से वापसी के दौरान रामेश्वरम में स्थापित किया था।
सोमनाथ मंदिर
अगला पड़ाव सोमनाथ मंदिर है, जो भारत के पश्चिमी तट पर द्वारका में स्थित है। यह ठेठ गुजराती शैली में बना गया है, जिसकी छत पिरामिड जैसी है।
साईं मंदिर पर मन्नत के धागे
ये मंदिर भीतर से अपेक्षाकृत साधारण हैं और मूल मंदिरों की तुलना में आकार में भी बहुत छोटे हैं। इसके बावजूद भी ये प्रतिकृतित मंदिर आपको मूल मंदिर के दर्शन करने का एहसास जरूर दिलाते हैं। आगे जाकर यह रास्ता साई मंदिर से होकर गुजरते हुए आपको भगवान शिव की मूर्ति तक ले जाता है। साई मंदिर के बाहरी भाग में जाली के काम की दिलचस्प संरचना है, जिसके चारों ओर मन्नतों के लाल धागे बंधे हैं, जो आपको अजमेर शरीफ या चिश्ती दरगाह की याद दिलाते हैं, जो फतेहपुर सीकरी में है।
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
शिवजी की मूर्ति के पास ही सभी 12 ज्योतिर्लिंग दिखाई देते हैं। इन सभी ज्योतिर्लिंगों को एक के बाद एक देख, उनके बीच के सूक्ष्म अंतर को जाना और समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए, जो शिवलिंग केदारनाथ में है वह सिर्फ पत्थर का कूबड़ है, लेकिन जो शिवलिंग रामेश्वरम में है वह दक्षिण भारत की शैली में वर्ग योनि में बनवाया गया है।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों का एक श्लोक में समागम
शिवजी की मूर्ति के नजदीक से दर्शन लेने का आनंद ही कुछ और है। जिस बड़े से मंच पर शिवजी विराजमान थे, उसके चारों ओर देवियों के अवतारों की खुदाई की गई थी। शिवजी के सम्मुख खड़े होकर आप अचानक से स्वयं को छोटा महसूस करने लगते हैं और आप सहज रूप से उनकी शक्ति के आगे झुक जाते हैं। इस मूर्ति के नीचे शिवमंदिर है, जहां पर शिव पुराण के अध्यायों को दर्शाया गया है। इसमें शिव भगवान के विवाह से लेकर प्रजापति दक्ष के यज्ञ के बाद शिवजी द्वारा माता सती के मृत शरीर को लेकर घूमने से, शिवजी को पाने के लिए माता पार्वती द्वारा की गई तपस्या तक सब कुछ समाहित है। यहां पर पुजारियों की एक टोली है, जो अपने वाद्य-यंत्रों के साथ रोज मंदिर में सत्संग और कीर्तन करते हैं।
जगन्नाथ मंदिर
अगला मंदिर जगन्नाथ पुरी का मंदिर है, जहां पर कृष्ण बलराम और सुभद्रा के साथ रहते हैं। यहां की मूर्तियां भी अपने मूल स्थान की मूर्तियों की बेहद प्रभावशाली प्रतिकृतियां हैं।
श्री बद्रीनाथ धाम
जो सबसे अच्छा है, उसे अंतिम दर्शन के लिए संरक्षित रखा गया है, अर्थात रंग-बिरंगा बद्रीनाथ मंदिर। इस मंदिर की वास्तुकला और उसका रंग-बिरंगा असबाब किसी को भी बद्रीनाथ जाने का एक कारण दे देता है, जिसने पहले श्री बद्रीनाथ धाम के दर्शन न किए हों। कोई भी पूर्ण रूप से चारधाम के बद्रीनाथ मंदिर के उज्जवलित रंगों में पूरी तरह से डूब जाता है।
चारधाम या सिद्धेश्वर धाम, जैसा कि उसे आधिकारिक तौर पर कहा जाता है, की यात्रा करना सम्पूर्ण भारत की यात्रा करने जैसा है। यह तीर्थस्थल पूरे भारत को एक ऐसे बंधन में बांधता है, जहां राजनीतिक सीमाओं का उनके लिए कोई मतलब नहीं रहता। श्रद्धा और विश्वास का यह गंतव्य भारत की सीमाओं को परिभाषित करता है।
नामची यात्रा के लिए कुछ सुझाव
चारधाम के अच्छी तरह से दर्शन लेने के लिए आपको कम से कम 2 घंटे चाहिएं। परिसर में प्रवेश करने के लिए प्रति व्यक्ति 50 रुपए का प्रवेश शुल्क है। चारधाम के परिसर में यात्री निवास है, जहां पर यात्री रह भी सकते हैं। आप गंगटोक से भी चारधाम जा सकते हैं, जो वहां से 2 घंटे की ड्राइविंग दूरी पर है या फिर आप दक्षिण सिक्किम के पेल्लिंग या जोरेथंग जैसे शहरों से भी जा सकते हैं। वहां ठंड बहुत ज्यादा होती है, इसलिए अपने साथ गर्म कपड़े लेना मत भूलिए।