क्रिया योग को दुनिया तक पहुंचाने वाले श्यामाचरण लाहिड़ी से जुड़ी है अद्भुत कहानी
punjabkesari.in Saturday, Dec 24, 2022 - 09:03 AM (IST)
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lahiri mahasaya kriya yog: भारत भूमि महान साधकों की जन्म और शरण स्थली रही है। यहीं शिव की नगरी काशी को एक महान संत और योगी श्यामाचरण लाहिड़ी ने अपनी लीला स्थली बनाया था। उन्हें आध्यात्मिक जगत में लाहिड़ी महाशय के नाम से जाना जाता है। वह आधुनिक वैज्ञानिक युग में प्राचीन भारत की महान साधना पद्धति ‘क्रिया योग’, जो काल के थपेड़ों में विस्मृत हो चुकी थी, को पुन: स्थापित करने वाले पहले मानव बने।
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लाहिड़ी महाशय का जन्म पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के धुरणी ग्राम में 30 सितम्बर, 1828 को गौरमोहन लाहिड़ी के यहां हुआ था। मां थीं मुक्तकेशी देवी। बचपन से ही श्यामाचरण ध्यान और साधना में लीन हो जाते थे। कालांतर में लाहिड़ी परिवार काशी में आकर बस गया। यहीं श्यामाचरण लाहिड़ी ने शिक्षा ग्रहण की और सेना के इंजीनियरिंग विभाग में अकाऊंट्स क्लर्क की नौकरी करने लगे। उनका विवाह भी काशी मणि देवी से हो गया।
1861 की शरद ऋतु की शुरूआत में श्यामाचरण दानापुर में तैनात थे। एक दिन उनके मैनेजर ने बताया कि उनका ट्रांसफर रानीखेत कर दिया गया है। रानीखेत पहुंचे तो वह अक्सर पहाड़ों की सैर करते। एक दिन वह द्रोणगिरी पर्वत पर चढ़ रहे थे तो उनको लगा कि कोई उनका नाम लेकर बुला रहा है। श्यामाचरण को एक युवक मिला जो उन्हीं की तरह दिखता था। वह उन्हें एक साफ-सुथरी गुफा में ले गया, जहां कई ऊनी कंबल और कमंडल रखे थे। उसने बताया कि उनकी प्रेरणा से ही वह रानीखेत आए हैं।
युवा योगी ने उनके समीप आकर माथे पर धीरे से छुआ तो श्यामा चरण के पूर्व जन्म की स्मृति जाग गई। वह बोले आप ही मेरे गुरु बाबाजी हैं। पिछले जन्म में इस गुफा में कई वर्ष आपके साथ बिताए थे। फिर शुद्धिकरण के बाद उनको ‘क्रिया योग’ की दीक्षा दी गई। दीक्षा के बाद बाबाजी ने उनको बताया कि अब उनका तबादला पुन: हो जाएगा। श्यामाचरण कुछ समय बाद काशी आ गए।
लाहिड़ी महाशय प्रतिदिन एक-दो लोगों को क्रिया योग की दीक्षा देते थे। विश्व में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली वाली आध्यात्मिक आत्मकथाओं में से एक ‘योगी कथामृत’ के लेखक परमहंस योगानंद के माता-पिता ने भी लाहिड़ी महाशय से क्रिया योग की दीक्षा ली थी।
योगानंद शिशु थे तभी उन्हें गोद में लेकर लाहिड़ी महाशय ने कहा था कि यह योगी बनेगा और करोड़ों लोगों के लिए आध्यामिक इंजन का काम करेगा। परमहंस योगानंद के गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि भी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे।