Nagchandreshwar Mandir: महाकालेश्वर की छत पर छिपा है नागों का अद्भुत घर, जो खुलता है सिर्फ नागपंचमी पर

punjabkesari.in Monday, Jul 28, 2025 - 12:00 PM (IST)

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Nagchandreshwar Mandir: उज्जैन में एक ऐसा नाग मंदिर है जो वर्ष में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर खुलता है। महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित इस मंदिर को नागचंद्रेश्वर के नाम से जाना जाता है। 

दुर्लभ है नागचंद्रेश्वर प्रतिमा
मंदिर में भगवान शिव-पार्वती की जो प्रतिमा स्थापित है, वह देश में और कहीं देखने को नहीं मिलती।  यह 11वीं शताब्दी की बताई जाती है। साथ ही कहा जाता है कि यह प्रतिमा नेपाल से भारत लाई गई थी।  विष्णु भगवान को ही सर्प शैया पर विराजमान देखा होगा लेकिन यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां भगवान शिव सर्प शैया पर विराजमान हैं।  इस अद्भुत प्रतिमा में नाग देवता ने अपने फन फैलाए हुए हैं और उस पर भगवान शिव, माता पार्वती समेत विराजमान हैं।  कहा जाता है कि नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने से राहू-केतु और कालसर्प दोष के अशुभ प्रभाव में कमी आती है इसलिए नागपंचमी पर यहां लाखों भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं।

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कर्कोटक नाग ने की थी यहां तपस्या
मान्यता है कि प्राचीन समय में यह क्षेत्र महाकाल वन के नाम से प्रसिद्ध था। यहां कर्कोटक नामक एक नाग ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। 
प्रसन्न होकर महादेव प्रकट हुए और कर्कोटक नाग को अनेक वरदान दिए और इसी स्थान पर रहने को कहा। कहते हैं कि आज भी गुप्त रूप से यहां कर्कोटक नाग निवास करता है। महाकाल मंदिर से कुछ ही दूर कर्कोटेश्वर मंदिर भी है। 

यहां होता है त्रिकाल पूजन
नागपंचमी के मौके पर भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की जाती है। त्रिकाल का अर्थ है- तीन अलग-अलग समय पर होने वाली पूजा। पहली पूजा सुबह में महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा की जाती है, दूसरी पूजा दोपहर में प्रशासनिक अधिकारी करते हैं और तीसरी पूजा महाकाल मंदिर समिति की ओर से होती है। नागपंचमी की रात 12 बजे के बाद आरती करके मंदिर के पट पुन: एक साल के लिए बंद कर दिए जाते हैं।

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कब खुलेंगे मंदिर के द्वार
इस बार नाग पंचमी 29 जुलाई को मनाई जाएगी। नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट इसी दिन भक्तों के लिए खोले जाएंगे और भक्त 24 घंटे तक भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन का लाभ उठा सकेंगे। 

मंदिर बंद रखने की पौराणिक मान्यता 
सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया।  मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न न हो। अत: सदियों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही उनके दर्शन उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परम्परा के अनुसार मंदिर बंद रहता है।  मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। 

महाकालेश्वर मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस नाग मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था।
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Content Editor

Prachi Sharma

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