Geeta Jayanti:- श्रीमद्भगवद्गीता की उत्पत्ति का साक्षी है वटवृक्ष

punjabkesari.in Wednesday, Dec 23, 2020 - 01:02 PM (IST)

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भगवान श्री कृष्ण द्वारा मोह में डूबे हुए अर्जुन को दिया गया दिव्य ज्ञान ही श्रीमद्भगवगीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कौरवों और पांडवों के मध्य होने वाला धर्मयुद्ध, महाभारत का युद्ध कहलाया। उसी महाभारत के युद्ध में अपने सम्मुख खड़े हुए रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों को देखकर जब महायोद्धा अर्जुन मोहग्रस्त हो गया और उसका मनोबल गिरने लगा, तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कर्म योग,भक्ति योग और ज्ञान योग की विस्तृत और संपूर्ण जानकारी देते हुए जो उपदेश दिया। वही उपदेश परम पवित्र दिव्य वाणी ही श्रीमद्भगवदगीता कहलाई।  

गीता जी का प्रकाटय 5154 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से ज्योतिसर में एक दिव्य वट के नीचे मार्गशीर्ष मास, शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को हुआ।  ज्योतिसर हरियाणा प्रदेश के कुरुक्षेत्र जिले में एक छोटा-सा कस्बा है जो हिंदुओं की आस्था का केंद्र एवं पवित्र तीर्थ स्थल है। ज्योतिसर कुरुक्षेत्र शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित है। 

ज्योतिसर दो शब्दों के मेल से बना है ज्योति+सर जिसका अर्थ है ज्योति का अर्थ प्रकाश, सर का अर्थ तालाब। इन्हीं 2 शब्दों के मेल से ज्योतिसर अपने आप में दिव्य स्थान कहलाता है। पौराणिक मान्यता है कि यहीं पर वह वट वृक्ष है जिसके नीचे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और विराट रूप के दर्शन करवाए थे।
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यह वटवृक्ष श्रीमद्भगवद्गीता की उत्पत्ति का साक्षी है। ऐसी भी मान्यता है कि यहां पर ज्योतिसर नाम का जो तालाब है, उस तालाब में सभी देवता प्रकट हुए थे और उन्होंने भगवान के  विराट स्वरूप के दर्शन किए थे। यह अक्षय वट और सरोवर श्रीमदभगवद गीता के साक्षात साक्षी हैं।

भारतवर्ष में क्रमश: 5 पवित्र वटवृक्ष कहे गए हैं 

1.गृद्ध वट सोरों शूकर क्षेत्र (जहां पृथ्वी-वाराह संवाद हुआ था), 2.अक्षय वट प्रयाग, 3.सिद्धवट उज्जैन , 4.वंशीवट वृंदावन  और  5.दिव्य वट ज्योतिसर कुरुक्षेत्र। 

भगवान श्रीकृष्ण के श्री मुख से प्रकट हुई श्रीमद्भगवद गीता की उत्पत्ति देव भाषा संस्कृत में हुई। अद्वैतवाद के संस्थापक महर्षि वेदव्यास जी द्वारा इसकी रचना की गई । गीता जी की गणना उपनिषदों में की जाती है। गीता जी के ज्ञान को अर्जुन के अतिरिक्त संजय ने सुना और धृतराष्ट्र को सुनाया। गीता में अठारह अध्याय हैं जिनमें कुल 700 श्लोक हैं। जिसमें श्री कृष्ण ने 574, अर्जुन ने 85, संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने 1 श्लोक कहा है।
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गीता का उपदेश किसी एक मजहब अथवा धर्म के लिए नहीं है। भगवान कृष्ण ने संपूर्ण मानव जाति के कल्याणार्थ यह उपदेश दिया है। आज जहां मनुष्य भौतिक सुखों, काम वासनाओं, विलासिता में जकड़ा हुआ है  और  एक दूसरे की हानि करने में लगा हुआ है तब यही गीता का ज्ञान उसे अज्ञानता के अंधकार से मुक्त कर सकता है। क्योंकि जब तक मनुष्य इंद्रियों की दासता में है, तब तक वह भय, राग, द्वेष, क्रोध से मुक्त नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में शांति व मुक्ति का मार्ग मात्र एक ही है गीता की शरण। 

गीता की मुख्य शिक्षा, कर्म योग,भक्ति योग और ज्ञान योग की विस्तृत जानकारी है। सरल शब्दों में जिस प्रकार कोई भी देश संविधान के अनुरूप चलता है उसी प्रकार मनुष्य जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए नियम, कर्म, कत्र्तव्य का ज्ञान ही गीता उपदेश है। 

मनुष्य के जीवन में गीता की आवश्यकता क्यों है?
*गीता जीवन जीना सिखाती है।
*कर्तव्य का बोध करवाती है।  
*मुक्ति का मार्ग बताती है
*कर्मों के अनुरूप जीव की गति का ज्ञान करवाती है ।
*जीवन में सफलता के मार्ग का बोध करवाती है। 
* संसार में रहते हुए भी सांसारिक बंधनों से किस प्रकार मुक्त रहा जा सकता है वह ज्ञान गीता ही प्रदान करती है। 
*जीव अर्थात आत्मा और परमात्मा के संबंध का ज्ञान करवाती है। 
*जीवन में सभी प्रकार की सफलताओं को प्राप्त करने का रहस्य गीता में समाहित है। 
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जिस प्रकार समुद्र मंथन करने के उपरांत 14 प्रकार के रत्नों की प्राप्ति हुई थी उसी प्रकार गीता का मंथन करने के उपरांत जीव को  आत्मिक आनंद की अनुभूति,भक्ति और मुक्ति प्राप्त होती है।

-साध्वी कमल वैष्णव-


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