Ram and sugriva friendship: श्री राम और सुग्रीव की मित्रता का साक्षी है यह पर्वत, आप भी कर सकते हैं दर्शन

punjabkesari.in Wednesday, May 28, 2025 - 05:59 PM (IST)

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Ram and sugriva friendship: रामायण में बहुत सारे स्थानों का वर्णन किया गया है, जहां श्रीराम ने वनवास के दौरान समय व्यतीत किया था। हर उस जगह पर श्रीराम की स्मृतियां आज भी जीवंत हैं। कर्नाटक के हम्पी में स्थित ऋष्यमूक पर्वत रामायण का महत्वपूर्ण स्थान है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऋष्यमूक एक पर्वत का नाम है। जिसका अर्थ है ऋषियों के का निवास करने वाला पर्वत। जो तुंगभद्रा नदी के किनारे और पम्पा झील के पास स्थित है। पूर्वकाल में ऋषि मतंग का आश्रम था। जो किष्किंधा के समीप ही था, सुग्रीव ने अपने भाई बाली से बचने के लिए यहां शरण ली थी। श्री राम और लक्ष्मण की प्रथम भेंट इसी पर्वत पर हुई थी। आईए जानें, श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता का इतिहास-

Ram and sugriva friendship

Story of Bali and sugriva: बाली और सुग्रीव दोनों सगे भाई थे। दोनों भाइयों में बड़ा प्रेम था। बाली बड़ा था इसलिए वही वानरों का राजा था। एक बार एक राक्षस रात्रि में किष्किन्धा आकर बाली को युद्ध के लिए चुनौती देते हुए घोर गर्जना करने लगा। बलशाली बाली अकेला ही उससे युद्ध करने के लिए निकल पड़ा। भ्रातृप्रेम के वशीभूत होकर सुग्रीव भी सहायता के लिए बाली के पीछे-पीछे चल पड़े। वह राक्षस एक बड़ी भारी गुफा में प्रविष्ट हो गया। 

Story of Bali and sugriva
बाली अपने छोटे भाई सुग्रीव को गुफा के द्वार पर अपनी प्रतीक्षा करने का निर्देश देकर राक्षस को मारने के लिए गुफा के भीतर चला गया। एक मास के बाद गुफा के द्वार से रक्त की धारा निकली। सुग्रीव ने अपने बड़े भाई बाली को राक्षस के द्वारा मारा गया जान कर गुफा के द्वार को एक बड़ी शिला से बंद कर दिया और किष्किन्धा लौट आए। मंत्रियों ने राज्य को राजा से विहीन जानकर सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बना दिया। राक्षस को मार कर लौटने पर जब बाली ने सुग्रीव को राजसिंहासन पर राजा के रूप में देखा तो उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने सुग्रीव पर प्राणघातक मुष्टिक प्रहार किया। प्राण रक्षा के लिए सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर जाकर छिप गए। बाली ने सुग्रीव का धन-स्त्री आदि सब कुछ छीन लिया। धन-स्त्री का हरण होने पर सुग्रीव दुखी होकर हनुमान व अपने चार मंत्रियों आदि के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे।

Ram and sugriva friendship
सीता जी का हरण हो जाने पर भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ उन्हें खोजते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर आए। श्री हनुमान जी श्रीराम-श्रीलक्ष्मण को आदरपूर्वक सुग्रीव के पास ले आए और अग्रि के साक्षित्व में श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। भगवान श्रीराम ने एक ही बाण से बाली का वध करके सुग्रीव को निर्भय कर दिया।

बाली के मरने पर सुग्रीव किष्किन्धा के राजा बने और अंगद को युवराज पद मिला। तदनन्तर सुग्रीव ने असंख्य वानरों को सीता जी की खोज में भेजा। श्री हनुमान जी ने सीता जी का पता लगाया। समस्त वानर-भालू श्रीराम के सहायक बने। लंका में वानरों और राक्षसों का भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में सुग्रीव ने अपनी वानरी सेना के साथ विशेष शौर्य का प्रदर्शन करके सच्चे मित्र धर्म का निर्वाह किया। अंत में भगवान श्रीराम के हाथों रावण की मृत्यु हुई और भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण, पत्नी सीता और मित्रों के साथ अयोध्या लौटे।

Ram and sugriva friendship
अयोध्या में भगवान श्रीराम ने गुरुदेव वशिष्ठ को सुग्रीव आदि का परिचय देते हुए कहा-
ए सब सखा सुनहु मुनि मेरे। भए समर सागर कहं बेरे।।
मम हित लागि जन्म इन्ह हारे। भरतहु ते मोहि अधिक पिआरे।।

Ram and sugriva friendship

भगवान श्रीराम का यह कथन उनके हृदय में सुग्रीव के प्रति अगाध स्नेह और आदर का परिचायक है। थोड़े दिनों तक अयोध्या में रखने के बाद भगवान ने सुग्रीव को विदा कर दिया। इन्होंने भगवान की लीलाओं का चिंतन और कीर्तन करते हुए बहुत दिनों तक राज किया और जब भगवान ने अपनी लीला का संवरण किया, तब सुग्रीव भी उनके साथ साकेत पधारे।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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