Swami Vivekananda: आत्मा को जानने की वैज्ञानिक पद्धति है योग
punjabkesari.in Sunday, Jun 01, 2025 - 08:27 AM (IST)

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Swami Vivekananda: जब सन् 1893 में स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धर्म महासभा में हजारों लोगों के सामने खड़े हुए, तो उनके पहले शब्द ‘सिस्टर्स एंड ब्रॉदर्स ऑफ अमरीका’ ने सभी का दिल जीत लिया। यह सिर्फ एक औपचारिक अभिवादन नहीं था, बल्कि आत्मीयता और एकता की गहरी भावना का प्रतीक था। इन शब्दों से उन्होंने भारत की प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा को दुनिया के सामने प्रभावशाली ढंग से रखा।
स्वामी विवेकानंद का भाषण एक ऐतिहासिक पल बन गया। उन्होंने योग को सिर्फ एक रहस्यमयी साधना के रूप में नहीं, बल्कि जीवन को समझने, सुधारने और आत्मा की खोज करने की एक वैज्ञानिक पद्धति के रूप में बताया। उन्होंने बताया कि योग केवल शरीर की कसरत नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा है। स्वामी जी ने सभी इंसानों को धर्म, जाति, नस्ल और विचारधारा से परे एक आध्यात्मिक परिवार के रूप में देखा। उनका संदेश था- ‘प्रत्येक आत्मा में दिव्यता है। जीवन का लक्ष्य इस दिव्यता को प्रकट करना है- अपने अंदर और बाहर की प्रकृति को नियंत्रित करके।’
योग के चार पथ- राजयोग (ध्यान और मानसिक अनुशासन), कर्मयोग (निस्वार्थ सेवा), भक्तियोग (प्रेम और भक्ति), ज्ञानयोग (बुद्धि और विवेक)- को उन्होंने जोड़कर एक ऐसा मार्ग बनाया, जो हर व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार उपयुक्त था। उन्होंने योग को केवल साधुओं के लिए नहीं, बल्कि आम लोगों – विद्यार्थियों, कामकाजी लोगों, कलाकारों और जिज्ञासुओं के लिए भी सुलभ बना दिया।
स्वामी विवेकानंद की सबसे बड़ी विशेषता थी- उनकी बौद्धिक स्पष्टता। उन्होंने कट्टरता के बजाय तर्क और अनुभव की भाषा में बात की। उनका मानना था: ‘धर्म का अर्थ है- अनुभव। यह सिर्फ बातों, सिद्धांतों या पुस्तकों में नहीं है, बल्कि स्वयं को अनुभव करना है।’ उन्होंने विज्ञान और अध्यात्म के बीच पुल बनाया। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक राजयोग (1896) में उन्होंने पतंजलि योगसूत्र को पश्चिमी पाठकों के लिए सरल और वैज्ञानिक रूप में समझाया। स्वामी जी ने भारत की छवि को अंधविश्वासों से निकालकर एक विवेकपूर्ण, आध्यात्मिक देश के रूप में प्रस्तुत किया। वे केवल भाषण तक सीमित नहीं रहे, बल्कि भारत लौटकर उन्होंने सामाजिक समस्याओं जैसे जाति भेद, धार्मिक कट्टरता और असमानता को भी चुनौती दी।
उनका दृढ़ विश्वास था- ‘मानव सेवा ही ईश्वर की पूजा है।’ जो गरीब, बीमार और कमजोरों में शिव को देखता है, वही सच्चा शिव-भक्त है।" उन्होंने रामकृष्ण मिशन और विदेशों में वेदांत सोसाइटीज़ जैसे संगठनों की स्थापना की, जो सेवा, ध्यान, अध्ययन और कर्म का समन्वय करते हैं। आज दुनिया भर में योग अपनाया जा रहा है- कोई स्वास्थ्य के लिए, कोई तनाव मुक्ति के लिए, तो कोई आत्मिक शांति के लिए। लेकिन इसके पीछे की गहराई वही है, जो स्वामी विवेकानंद ने दी थी – योग शरीर से नहीं, मन और हृदय से जुड़ा है। आज विज्ञान भी ध्यान, माइंडफुलनेस और न्यूरोप्लास्टिसिटी पर शोध कर यह साबित कर रहा है कि विवेकानंद जी का ज्ञान आज भी प्रासंगिक है। वे अपने समय से बहुत आगे थे। उन्होंने योग को भारत की नहीं, पूरी मानवता की धरोहर बताया। 2014 में जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मान्यता दी, तो यह केवल एक परंपरा का सम्मान नहीं था, बल्कि उस बीज का फल था जो स्वामी जी ने 100 साल पहले बोया था।
आज योग कक्षाओं में, घरों में, ध्यान केंद्रों में, और सेवा कार्यों में उनका स्वर गूंजता है- ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो।’ इस अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर स्वामी विवेकानंद को स्मरण करते हुए हम यह याद रखें कि योग की सच्ची शुरुआत शरीर से नहीं, बल्कि मन से होती है। यह साधना हमें दुनिया से नहीं, बल्कि दूसरों से जुड़ने की ओर ले जाती है। उनकी विरासत पूजा की वस्तु नहीं, बल्कि जीने की पद्धति है।