Gayatri Jayanti: गायत्री जयंती के दिन इस विधि से करें गायत्री मंत्र का जाप, ब्रह्माण्ड से बनेगा संवाद
punjabkesari.in Thursday, Jun 05, 2025 - 07:43 AM (IST)

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Gayatri Jayanti: गायत्री मां से ही चारों वेदों की उत्पत्ति मानी जाती है इसलिए वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है। चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। जिस कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्या भी इन्हें ही माना जाता है इसलिए इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। माना जाता है कि समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं। इस कारण ज्ञान-गंगा भी गायत्री को कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है।
गायत्री की महिमा में प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक भारत के विचारकों तक अनेक बातें कही हैं। वेद शास्त्र और पुराण तो गायत्री मां की महिमा गाते ही हैं। अथर्ववेद में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, र्कीत, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है।
प्रात:काल मध्याह्नकाल एवं सायंकाल की अधीश्वरी भगवती गायत्री हैं। देवी गायत्री की नित्य संध्या काल में उपासना ही सम्पूर्ण वेदों का सार है। ब्रह्मा आदि देवता भी संध्याकाल में भगवती गायत्री का ध्यान और जप किया करते हैं। वेदों के द्वारा भी नित्य इन्हीं का जप होता है। अतएव गायत्री को वेदोपास्या कहा गया है।
गायत्री जयंती के दिन क्या करना चाहिए
प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठें। गायत्री सूर्य की चेतना है। सूर्योदय से पहले का समय ब्रह्म मुहूर्त कहलाता है। इस समय का ऊर्जा स्तर आत्मज्ञान के लिए श्रेष्ठ होता है।
गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करें। बिना किसी तामझाम के, बस शुद्ध हृदय और शांत वातावरण में —
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
यह मंत्र कोई चमत्कारी वाक्य नहीं है बल्कि ब्रह्माण्ड से संवाद का माध्यम है।
अपने बुद्धि-तत्त्व को जागृत करें और आत्ममंथन करें —
कहां मैं अज्ञान में जी रहा हूं ?
मेरी विचारशक्ति किस दिशा में जा रही है ?
क्या मैं प्रकाश की ओर बढ़ रहा हूं या भ्रम की ओर जा रहा हूं?
वाणी की शुद्धि का संकल्प लें।
गायत्री मंत्र वाणी, बुद्धि और कर्म के संतुलन की प्रेरणा देता है।
इस दिन किसी की निंदा, झूठ, कठोर वचन से स्वयं को रोकें। यह ही सच्चा गायत्री व्रत है।
मां गायत्री को आंतरिक पुष्प अर्पण करें। बाहरी फूलों से ज़्यादा ज़रूरी हैं श्रद्धा के फूल, विवेक की माला और ध्यान की गंध।