Shri Narasimha chaturthi maha mahotsav: भक्तों के रक्षक हैं भगवान नृसिंह, हर भय से करते हैं मुक्त

punjabkesari.in Wednesday, May 22, 2024 - 07:44 AM (IST)

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Shri Narasimha chaturthi maha mahotsav: नृसिंह जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। भगवान श्री नृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रतीक हैं। ‘नृसिंह जयंती’ पर व्रत करने से समस्त दुखों का निवारण तथा भगवान नृसिंह की कृपा प्राप्त होती है। इसी तिथि को भगवान विष्णु जी ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए ‘नृसिंह अवतार’ लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। हिरण्यकशिपु के भाई हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु जी ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था। 

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अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए सहस्त्रों वर्षों तक कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता निरूपाय हो गए थे।

हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम ‘प्रह्लाद’ रखा गया। एक राक्षस कुल में जन्म लेने के उपरान्त भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण के अनन्य भक्त थे। भगवद्-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए। नीति-अनीति सभी का इस्तेमाल किया, किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुए। तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने क्रोधपूर्वक भक्त प्रह्लाद से पूछा कि- बता तेरा भगवान कहां है?

 इस पर प्रह्लाद बड़े विनम्र भाव से बोले, कि प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं। 

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क्रोधित हिरण्यकशिपु ने पूछा कि क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है ?
 प्रह्लाद ने हां में उत्तर दिया। यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया। तभी खंभे को चीरकर श्री नृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जांघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। श्री नृसिंह भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा। अत: इस कारण से इस दिन को ‘नृसिंह जयंती-उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है और नृसिंह भगवान से जगत कल्याण हेतु प्रार्थना की जाती है। 

नृसिंह भगवान वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन सूर्यास्त के समय प्रकट हुए थे, इसीलिए सूर्यास्त के समय भगवान नृसिंह की पूजा की जाती है। नृसिंह जयंती हमें अधर्म मार्ग को त्याग कर धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। समाज कल्याण के लिए कर्म करना और किसी का अहित न करना ही धर्म है।

इस व्रत को करने वाला व्यक्ति लौकिक दु:खों से मुक्त हो जाता है। भगवान नृसिंह अपने भक्त की रक्षा व उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। भगवान नृसिंह की परम भक्ति से ही भक्त प्रह्लाद को वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति हुई थी। भगवान नृसिंह की पूजा करने से शारीरिक व मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं और जीव जगत को हर प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त होती है। 

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Content Writer

Niyati Bhandari

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