Muni Shri Tarun Sagar- वैराग्य आ जाने के बाद कोई श्मशान जाए तो वह अनूठा है

punjabkesari.in Thursday, Jun 20, 2024 - 10:18 AM (IST)

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सत्संग की गंगा 
मेरा कहना है कि टायर में पंक्चर कहां है- यह जानने के लिए टायर को पानी में डुबोना पड़ता है और मन में खोट कहां है- यह जानने के लिए इंसान को सत्संग में जाना पड़ता है। सत्संग वह गंगा है जिसमें कंस डुबकी लगाए तो हंस बनकर और हंस डुबकी लगाए तो परम हंस बनकर निकले। यदि मच्छर के मुख से बुखार चढ़ सकता है तो महापुरुषों के श्रीमुख से भक्ति का रंग क्यों नहीं चढ़ सकता ?

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श्मशानी वैराग्य 
एक दिन मुझे भी मरना है-सच बोलना, ऐसा आपको कब लगता है? जब कोई सगा-संबंधी मर जाता है और उसे अंतिम संस्कार के लिए श्मशान ले जाते हैं, तब आपको लगता है कि एक दिन मुझे भी मर जाना है और उस समय थोड़े समय के लिए ‘श्मशानी वैराग्य’ जागृत होता है। पर मेरा मानना है कि श्मशान में जाने के बाद किसी को वैराग्य आए तो वह वैराग्य झूठा है और वैराग्य आ जाने के बाद कोई श्मशान जाए तो वह वैराग्य अनूठा है।

मां का मतलब
मां क्या होती है ? 

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जब आप बरसात में भीगकर घर आते हैं तो भाई कहता है : छाता लेकर क्यों नहीं गए थे। बहन कहती है, ‘‘बरसात बंद होने तक रुक नहीं सकते थे क्या ?’’ 

बाप कहता है, ‘‘सर्दी-जुकाम होगा तब मालूम पड़ेगा कि बरसात में भीगना क्या होता है।’’ 

पर मां वह होती है जो भीतर से तौलिया लाकर सिर पोंछते हुए कहती है, ‘‘नालायक बरसात, थोड़ी-सी रुक नहीं सकती थी क्या?’’

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जिंदगी की फिल्म 
फिल्म कितने घंटे की होती है-तीन। जिंदगी की फिल्म भी तीन घंटे की होती है। बचपन, जवानी और बुढ़ापा। घड़ी में तीन कांटे होते हैं। बचपन सेकंड का कांटा है, जो भागता हुआ दिखता है। जवानी मिनट का कांटा है, जो चलता हुआ दिखता है और बुढ़ापा घंटे का कांटा है, जो न भागता हुआ दिखता है न चलता हुआ, फिर भी भाग भी रहा है और चल भी रहा है। जिंदगी की फिल्म का अंत आए इससे पहले प्रभु के चरणों में झुक जाना।


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Content Writer

Niyati Bhandari

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