रणबीर-आलिया को नहीं मिला महाकालेश्वर मंदिर में प्रवेश, जानें ज्योतिर्लिंग का इतिहास

punjabkesari.in Friday, Sep 09, 2022 - 10:59 AM (IST)

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Shri Mahakaleshwar Temple: उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में अभिनेता रणबीर कपूर और अभिनेत्री आलिया भट्ट को प्रवेश नहीं करने दिया गया। वो बिना दर्शनों के ही अपने होमटाउन मुंबई लौट गए। आईए जानें इस पवित्र ज्योतिर्लिंग का इतिहास-

मध्य प्रदेश स्थित उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक है। महाकवि तुलसीदास से लेकर संस्कृत साहित्य के अनेक विद्वानों ने इस मंदिर का वर्णन किया है। काल गणना के केंद्र बिंदु महाकाल यहां के अधिपति हैं। महाकालेश्वर की प्रतिमा दक्षिणमुखी होने के कारण तांत्रिक परम्परा में उसका ज्यादा महत्व है। अवंतिका में हिंदुओं की 4500 वर्षों से स्थापित धार्मिक परम्पराओं को विविध शासकों ने नष्ट कर दिया। कहते हैं, कि जब इल्तुतमिश ने इस मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग एक तालाब में फिंकवाया दिया। मराठा शासकों ने मालवा पर आक्रमण कर उज्जैन के खोए हुए गौरव को पुन: प्राप्त कर महाकालेश्वर मंदिर का पुननिर्माण करवा ज्योतिर्लिंग की पुन: प्रतिष्ठा की। 

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राजा विक्रमादित्य एवं राजा भोज के कार्यकाल में महाकाल की पूजा के लिए राज दरबार से व्यवस्था की जाती थी। आजकल इस मंदिर का संचालन मंदिर समिति की ओर से किया जा रहा है।

महाकालेश्वर मंदिर के पास बड़े गणेश मंदिर में भगवान गणेश की भव्य मूर्त स्थापित की गई है। यहां इसी सप्तधातु की पंचमुखी हनुमान, नवग्रह मंदिर तथा कृष्ण यशोदा की प्रतिमा स्थापित है। मंगल की जननी के नाम से प्रसिद्ध उज्जैन में भगवान मंगलनाथ शिवरूप में विराजित होकर लोगों का कल्याण करते हैं।

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जिस जातक की कुंडली में मंगल दोष हो या मंगला होने के कारण शादी-विवाह या वंश दोष हो तो उसके निवारण के लिए श्रद्धालु यहां दूर-दूर से आते हैं। यहां की क्षिप्रा नदी के तट पर विभिन्न देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर हैं।

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व पुराण के अनुसार दक्ष यज्ञ के बाद मां सती की कोहनी यहां गिरी थी, इसलिए यहां हरसिद्धि देवी के रूप में देवी प्रतिष्ठित हैं। वैष्णव सम्प्रदाय की आराध्य देवी हर सिद्धि की सम्राट विक्रमादित्य पूजा किया करते थे। रुद्र तालाब के किनारे स्थित यह मंदिर चिंतामणि गणेश मंदिर के पास है। महाकाल की प्राचीन नगरी अवंतिका में सतयुग काल की मूर्त गढ़कालिका की कवि कालिदास उपासना करते थे। महाभारत काल की स्थापित कालिका देवी के इस मंदिर को चमत्कारिक मंदिर कहा जाता है।11वीं सदी की भर्तृहरि गुफा भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है।

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महाकाल की यह नगरी सिंहस्थ कुंभ पर्व के लिए प्रसिद्ध है। उज्जैन के कोतवाल कहे जाने वाले महाकाल की प्रतिवर्ष श्रावण सोमवार के दिन भव्य झांकी निकलती है। महाकाल की भव्य पालकी शाही सवारी के साथ निकलती है। शाम 4 बजे महाकाल मंदिर से अपने नगर वासियों का हाल पूछने के लिए निकले महाकाल की भव्य झांकी में पुलिस बैंड, पुलिस घुड़सवार तथा पुलिस के जवान हथियार के साथ परेड करते सड़कों पर निकलते हैं। भव्य पालकी के साथ शहर की विभिन्न भजन मंडलियां एवं सांस्कृतिक मंडली के लोग नाचते-गाते ढोल-ताशे तथा डमरू-शंख बजाते शहर की विभिन्न गलियों से गुजरते हैं। जब यह शाही सवारी क्षिप्रा तट के राम घाट पर पहुंचती है तो वहां महाकाल की आरती उतारी जाती है, उसके बाद यह गोपाल मंदिर पहुंचती है।

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अपने महाराज की एक झलक पाने के लिए हजारों भक्त सड़क के दोनों किनारे घंटों खड़े रहते हैं। बाद में महाकाल की शाही सवारी मंदिर में पहुंचती है, जहां आरती के बाद इस कार्यक्रम का समापन हो जाता है। श्रद्धालुओं का कहना है कि जैसे-जैसे श्रावण के सोमवार खत्म होने को आते हैं वैसे-वैसे श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जाती है। भादो मास के दूसरे सोमवार को महाकाल की भव्य झांकी का समापन हो जाता है।

उज्जैन के महाकाल की भस्म आरती शिव भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र होती है। इस आरती के लिए भक्त रात 12 बजे से ही कतार में लग जाते हैं। भस्म आरती प्रवेश पत्र के लिए शिव भक्तों को अपने पहचान पत्र के साथ आवेदन करना पड़ता है। अनुमति पत्र मिलने के बाद उन्हें धोती पहन कर तथा कमर के ऊपर बिना वस्त्र के मंदिर में जल चढ़ाने की अनुमति मिलती है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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