Shri Krishna Death Place: भगवान श्रीकृष्ण के अंतिम पलों का गवाह है यह स्थान
punjabkesari.in Thursday, Aug 21, 2025 - 02:53 PM (IST)

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Gujarat tourism: भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु भी उनके द्वारा रची एक लीला थी। कान्हा का मथुरा में जन्म लेकर ब्रज की गलियों से होकर द्वारिकाधीश बनने तक का सफर अद्भुत है। ये हैरान करने वाली बात है की बाल्यावस्था में ही कंस के भेजे दानवों का वध करने वाले विष्णु अवतार मुरलीधर की मृत्यु तीर लगने से हो जाए। श्रीकृष्ण वाणी है की भगवान तो एक बार आपके किए गलत कामों के लिए माफ कर दें लेकिन कर्म किसी का पीछा नहीं छोड़ते। लोक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि जिस भेलिए ने श्रीकृष्ण पर तीर साधा था वो रामायण काल में श्री राम के मित्र सुग्रीव के भाई बाली थे। जिन्हें उन्होंने छल पूर्वक मौत के घाट उतारा था।
Lord Krishna Death Story: महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाकाव्य महाभारत के16वें पर्व (अध्याय) मौसुल पर्व में दाऊ जी (शेषनाग के अवतार और कृष्ण लीला में उनके जेष्ठ भ्राता) और श्रीकृष्ण के परमधाम-गमन की कथा का वर्णन मिलता है। महाभारत युद्ध पूरा होने के करीब-करीब 36 वर्षों उपरांत गोविन्द ने इस भू लोक से गोलोक धाम में प्रस्थान किया। मान्यताओं के अनुसार जब वो इस संसार से विदा हुए तो उनकी आयु 125 वर्ष 8 महीने और 7 दिन थी।
Bhalka Tirth history: भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन के अंतिम पल गुजरात के सौराष्ट्र में भालका तीर्थ पर व्यतीत किए थे। यह तीर्थ सोमनाथ मंदिर से महज 5 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहां स्थापित विग्रह भगवान श्रीकृष्ण के धरती पर अंतिम समय को उजागर करता है।
माना जाता है की इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण पेड़ की छांव में विश्राम कर रहे थे। उनके एक पैर में चमकती चीज को देखकर एक बहेलिया जो शिकार के मकसद से जंगल में आया था उसने तीर चला दिया। तीर सीधा भगवान के पैर में जाकर लगा भगवान चिल्लाए तो बहेलिया भागकर भगवान के पास आया और क्षमा याचना करने लगा।
मंदिर में स्थापित विग्रह में देखा जा सकता है बहेलिए की हाथ जोड़े, क्षमा मांगते हुए प्रतिमा, जो भगवान पर तीर चलाकर पछता रहा था। यह सब भगवान की इच्छा से ही हुआ था तभी तो उन्होंने बहेलिए को क्षमादान दिया।
तीर लगने से व्यथित भगवान कृष्ण भालका से कुछ ही दूरी पर स्थित हिरण नदी के तट पर पहुंचे। सोमनाथ से हिरन नदी डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है। कहते हैं इसी स्थान पर भगवान पंचतत्व में विलीन हुए थे और बैकुंठ धाम को लौट गए थे। हिरन नदी के तट पर आज भी भगवान के चरणों का दर्शन किया जा सकता है। यह स्थान देहोत्सर्ग तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
जहां बहेलिया ने भगवान पर तीर चलाया था समुद्र के तट पर बसे उस स्थान को बाणगंगा के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में समुद्र के अंदर शिवलिंग बना है। मंदिर परिसर में 5 हजार वर्ष प्राचीन पीपल का पेड़ है, जो कभी सूखता नहीं है।