आज ही घर में करवा लें ये यज्ञ, स्वयं मां लक्षमी खट-खटाएंगी आपका द्वार

punjabkesari.in Saturday, Nov 30, 2019 - 01:45 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
अपने जीवन में धन के वर्षा कौन नहीं चाहता है। हर व्यक्ति की यही कामना होती है कि उस पर ताउम्र देवी लक्ष्मी जिन्हें हिंदू धर्म में धन की देवी का दर्जा प्राप्त है, की कृपा बनी रही। लेकिन अब केवल कामना करने से मां का आशीर्वाद प्राप्त हो जाए ये भी तो मुमकिन नहीं है। जी हां, पैसे कमाने के लिए जितना ज़रूरी है मेहनत करना उतना ही ज़रूरी है मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर इन्हें प्रसन्न करना। क्योंकि कहा जाता है जिस जातक पर इनकी कृपा नहीं होती वो अपने जीवन में चाहे जितनी भी मेहनत कर ले उसको धन-संपत्ति प्राप्त होता। तो अगर आप भी अभी तक यही सोच रहे हैं कि आख़िर क्यों आपको आपकी मेहनत का फल नही मिल रहा तो हो सकता है इसका कारण देवी लक्ष्मी का आप पर प्रसन्न होना हो।

मगर आपको बता दें इन्हें प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में बहुत से उपाय आदि बताए गए हैं। जिनमें सबसे सरल व सटीक उपाय हम आपको आज बताने जा रहे हैं। जी हां अगर आप देवी लक्ष्मी को खुश करना चाहते हैं तो एक बार इस उपाय को ज़रूर अपनाएं।

शुक्रवार के दिन रात में 11 बजे से लेकर 1 बजे के बीच निम्न महालक्ष्मी स्त्रोत से विशेष यज्ञ करें। ध्यान रहे यज्ञ से पूर्व विधि वत माता महालक्ष्मी का आवाहन पूजन करें। पूजन के बाद एक बार इस स्त्रोत का पाठ करके एक-एक स्त्रोत मंत्र से यज्ञ में 3-3 आहुति गाय के घी में कमल गट्टे मिलाकर डालें। कुछ ही दिनों में आपको अपने ऊपर माता लक्ष्मी की कृपा दिखाई देने लगेगी।
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इस महालक्ष्मी स्त्रोत से करें धन प्राप्ति के लिए विशेष यज्ञ-
।। अथ श्री-सूक्त मंत्र पाठ ।।

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।

तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम्।

यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।

अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्।।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।।
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आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।

उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात्।।

गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम्।।

मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।

कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।।

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।

आर्द्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।।

य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत्।।
 


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Jyoti

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