Kundli Tv- कैसे श्रीकृष्ण ने किया सत्यभामा का अहंकार चूर-चूर

punjabkesari.in Friday, Jul 06, 2018 - 11:04 AM (IST)

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भगवान श्रीकृष्ण द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे। निकट ही गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी थे। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु, आपने त्रेता युग में राम के रूप में अवतार लिया था। क्या सीता मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं?

तभी गरुड़ ने कहा कि भगवान, क्या मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है?

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इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठा कि भगवान, क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है? भगवान समझ गए कि इन्हें अहंकार हो गया है। उन्होंने गरुड़ से कहा कि तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। सत्यभामा से कहा कि आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं। स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया और सुदर्शन चक्र को प्रवेश द्वार पर पहरा देने के लिए भेज दिया और कहा कि मेरी अनुमित के बिना कोई महल में प्रवेश नहीं करने पाए। 

गरुड़ ने हनुमान जी को संदेश पहुंचाया और कहा कि आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।

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हनुमान जी ने कहा, ‘आप चलिए, मैं आता हूं।’ 

गरुड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब तक पहुंचेगा? 

गरुड़ जब महल में पहुंचते हैं तो यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि हनुमान जी तो पहले से ही प्रभु के सामने बैठे हैं। गरुड़ का सिर लज्जा से झुक गया। तभी श्रीराम का रूप धरकर बैठे श्रीकृष्ण ने हनुमान जी से कहा कि पवनपुत्र, तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं? 

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हनुमान जी ने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकाल कर रखा और कहा, ‘मुझे इस चक्र ने रोका था। मुझे क्षमा करें।’ 

हनुमान जी ने हाथ जोड़ते हुए प्रश्न किया, ‘हे प्रभु! आज आपने माता सीता के स्थान पर किसे सिंहासन पर बिठा लिया है।’ 

यह सुनकर सत्यभामा को सच्चाई का आभास हुआ। इस तरह तीनों का अहंकार चूर हो चुका था।

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Jyoti

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