Religious Katha: विद्वान पंडितों की ये बात बनाती है उनको महान और दिलवाती है मान-सम्मान

punjabkesari.in Sunday, Sep 10, 2023 - 09:21 AM (IST)

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Religious Katha: अयोध्या के परम भक्त तथा विद्वान पंडित उमापति त्रिपाठी राजर्षि वशिष्ठ जी के वंशज होने के नाते भगवान श्रीराम की शिष्य के रूप में आराधना करते थे। वह वशिष्ठ जी की तरह ही महान विरक्त तथा स्‍वाभिमानी थे। छात्रों को नि:शुल्क संस्कृत भाषा तथा शास्त्रों का अध्ययन कराया करते थे। अवध के राजा ददुआ ने राजसदन का निर्माण कराने का निर्णय लिया। उन्होंने वशिष्ठ वंशी उमापति त्रिपाठी के हाथों से उसका शिलान्यास कराना चाहा। उन्हें संदेश भेजा गया कि वह शिलान्यास करने की स्वीकृति प्रदान करें, दक्षिणा के रूप में चांदी की सवा लाख मुद्राएं भेंट की जाएंगी।

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त्रिपाठी ने दूत से कहा, “राजा साहब को बता देना कि मैं वशिष्ठ वंशी हूं। मुद्राओं के लालच में किसी कार्य को करने को तत्पर नहीं हो सकता। यदि वह मुद्राएं देने का प्रलोभन नहीं देते, तो मैं खुशी-खुशी विधि विधान से शिलान्यास कराने पहुंच जाता।

 

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राजा ददुआ ने भरपूर प्रयास किया, किंतु स्वाभिमान और विरक्तता की मूर्ति त्रिपाठी जी उनकी बात मानने को तैयार नहीं हुए। सभी अवधवासी उनकी विरक्तता देखकर हतप्रभ हुए।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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