एक ऐसा मंदिर जहां बिजली चमकने पर नज़र आता है भगवान राम का अक्‍स

punjabkesari.in Thursday, Dec 12, 2019 - 04:18 PM (IST)

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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के बारे में भी यहीं कहा जाता है कि जहां जहां उनके चरण पड़े वहां उनसे जुड़ी कई मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हुई। कहते हैं कि पूरे भारत देश में ऐसी कई जगहें हैं जहां श्रीराम से जुड़े कुछ ऐसे चिन्ह मिलते हैं, जिनके सच्चे होने का दावा किया जाता है। आज हम आपको इन्हीं से जुड़ी एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में आपने शायद आज से पहले कभी देखा-सुना नहीं होगा। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में-
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इस बात से तो सब वाकिफ ही हैं कि भगवान राम के जीवन का एक बड़ा हिस्सा सांसारिक कल्याण में बीता, जिनमें वह वन-वन भटकते हुए मनुष्यों का जीवन सुरक्षित बनाने के लिए असुरों का संहार करते रहे। वन में भटकते हुए भगवान राम देवी सीता और लक्ष्मणजी के साथ जिन स्थानों से गुजरे उनमें से कई स्थान आज भी उनकी यात्रा की गवाही देते हैं इनमें से ही एक स्थान है नागपुर से 50 किलोमीटर दूर स्थित ‘रामटेक किला।’ 

कहते हैं श्रीराम वनगमन के दौरान इस जगह पर चार माह व्‍यतीत किए थे। इसके अलावा इसी स्‍थान पर माता सीता ने पहली रसोई बनाई थी और सभी स्‍थानीय ऋषियों को भोजन कराया था। इस स्‍थान का जिक्र पद्मपुराण में भी मिलता है। बता दें कि इस रामटेक किले के निर्माण में किसी भी तरह के रेत का प्रयोग नहीं किया गया है। जी हां, इसे पत्‍थरों से बनाया गया है। एक के ऊपर एक पत्‍थर रखकर इस मंदिर को बनाया गया है। साथ ही यह भी चौंकाने वाली बात है कि सदियां बीत गई हैं लेकिन इस किले का एक भी पत्‍थर टस से मस नहीं हुआ। 

रामटेक मंदिर की संरचना ही नहीं बल्कि इसी परिसर में स्‍थापित तालाब भी अद्भुत है। मान्‍यता है कि इस तालाब में जल कभी कम या कभी ज्‍यादा नहीं होता। इसमें जल स्‍तर हमेशा ही सामान्‍य बना रहता है। रामटेक मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर बना है। इसकी भव्‍यता के चलते ही इसे मंदिर की बजाए किला कहा जाता है। रामटेक का यह किला पहाड़ी पर बना है इसलिए इसे गढ़ मंदिर भी कहते हैं। मान्‍यता है कि यहां जब भी बिजली चमकती है तो मंदिर के शिखर पर ज्‍योति प्रकाशित होती है और जिसमें श्रीराम का अक्‍स दिखाई देता है।
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मंदिर से जुड़ी इस मान्यता के अनुसार इस धाम या मंदिर की ज्योति में भगवान राम का अक्स देखने का दावा किया जाता है। लोक कथाओं के मुताबिक इस मंदिर के तार एक ऐसे तपस्वी से जुड़ा है, जिसका श्रीराम से गहरा संबंध माना जाता है। कहते हैं श्रीराम संबूक नामक एक साध्वी के निर्वाण के लिए यहां आए थे। जब वो यहां आए तो संबूक ने उनसे तीन वरदान मांग लिए। जिसमें से सबसे पहला था कि मेरे शरीर से शिवलिंग बने, दूसरा ये कि आप के यानि श्रीराम के दर्शन से पहले मेरे दर्शन हो और तीसरा कि आप ज्योति के रूप में हमेशा यहां उपस्थित रहे। यहां के लोगों का कहना है कि बारिश के दौरान जब यहां पर बिजली चमकती है तो यहां मंदिर के शिखर पर ज्योति प्रकाशित होती है, जिसे श्रीराम का अक्स माना जाता है। कहा जाता है श्रीराम स्वंय उस ज्योति के रूप में यहां प्रगट होते हैं। यहां ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें इस पवित्र और चमत्कारी ज्योति के दर्शन हुए हैं। परंतु उनका कहना है कि ये ज्योति कब दिखती है इसका कोई निर्धारित समय नहीं है।

कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रामटेक में मर्यादा पुरुषोत्तम राम महर्षि अगत्‍स्‍य से मिले थे और उनसे शस्‍त्र ज्ञान लिया था। कहा जाता है कि रामटेक में जब श्रीराम ने हर जगह हड्डियों का ढेर देखा तो उन्‍होंने ऋषि से इस बारे में पूछा। तब उन्‍होंने बताया कि यह हड्डियां उन ऋषियों की हैं जो यहां पर यज्ञ-पूजन करते थे। राक्षस उनके यज्ञ में विघ्‍न डालते थे। इसके बाद ही श्रीराम ने यह प्रतिज्ञा ली कि वह सभी राक्षसों का अंत करेंगे।
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ऋषि अगत्‍स्‍य रावण के चचेरे भाई थे। उन्‍होंने रामटेक में ही श्रीराम को रावण के अत्‍याचारों के बारे में बताया। साथ ही रावण के शस्‍त्रज्ञान की भी जानकारी दी। इसके बाद भगवान राम को ब्रह्मास्‍त्र भी प्रदान किया। यह वही ब्रह्मास्‍त्र था जिससे श्रीराम ने रावण का वध किया था। रामटेक ही वह स्‍थान है जहां पर महाकवि कालिदास ने महाकाव्‍य मेघदूत की रचना की थी। इसमें रामटेक का जिक्र ‘रामगिरि’ शब्‍द के रूप में मिलता है। यहां पर ‘रामगिरि’ से आशय उस पत्‍थर से है जहां पर श्रीराम ने निवास किया था। कालांतर में इसका नाम रामटेक हो गया।


 


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