Paschimabhimukh Surya Mandir: छठ पर्व पर पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर में अर्घ्य देने का है खास महत्व
punjabkesari.in Thursday, Oct 23, 2025 - 02:00 PM (IST)
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Surya Dev Mandir Aurangabad Bihar: भारत के बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले के देव गांव में स्थित सूर्य देव का यह प्राचीन मंदिर वैदिक काल से श्रद्धा, आस्था और विज्ञान का संगम रहा है। यह वही मंदिर है जिसे पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर कहा जाता है। जो न केवल स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है, बल्कि अपने रहस्यमयी स्वरूप और किंवदंतियों के कारण विश्व प्रसिद्ध है।

विश्वकर्मा द्वारा निर्मित सूर्य मंदिर की पौराणिक उत्पत्ति
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से किया था। कहा जाता है कि त्रेतायुग में राजा इलापुत्र पुरूरवा ऐल को श्वेत कुष्ठ (कोढ़) रोग हो गया था। वे देव क्षेत्र के एक वन में भटकते हुए पहुंचे, जहां एक सरोवर के जल से उनका रोग ठीक हो गया। उसी रात उन्हें स्वप्न में भगवान भास्कर (सूर्य देव) ने दर्शन देकर आदेश दिया कि वे उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराएं। राजा ऐल ने उसी पवित्र सरोवर के तट पर यह भव्य सूर्य मंदिर बनवाया, जिसे आज हम देव सूर्य मंदिर के नाम से जानते हैं।

स्थापत्य और कला का अद्वितीय उदाहरण
यह मंदिर लगभग 100 फीट ऊंचा है और पूरी तरह काले व भूरे पत्थरों से निर्मित है।
इसकी विशेषता यह है कि इसके निर्माण में न तो सीमेंट और न ही चूने का प्रयोग हुआ है।
पत्थरों को आयताकार, गोलाकार और त्रिभुजाकार रूप में काटकर जोड़ने की अनोखी कला इसका रहस्य है।
मंदिर का शिल्प उड़ीसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से अत्यंत मेल खाता है।
यह देश का एकमात्र सूर्य मंदिर है जो पश्चिम दिशा की ओर मुख किए हुए है, जबकि सामान्यतः सभी सूर्य मंदिर पूर्वाभिमुख होते हैं।
यानी इस मंदिर पर अस्ताचलगामी सूर्य की किरणें पड़ती हैं, न कि उगते सूर्य की।

तीन स्वरूपों में सूर्य देव की प्रतिमा
देव सूर्य मंदिर में भगवान भास्कर की तीन अद्भुत प्रस्तर प्रतिमाएं स्थापित हैं —
प्रातः सूर्य (उदयाचल)
मध्य सूर्य (मध्याचल)
अस्त सूर्य (अस्ताचल)
ये तीनों प्रतिमाएं सात रथों और सात घोड़ों के साथ अंकित हैं, जो सूर्य देव की गति का प्रतीक मानी जाती हैं। मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं की प्राचीन खंडित मूर्तियां भी हैं, जो इसकी प्राचीनता को प्रमाणित करती हैं।
चमत्कारी किंवदंतियां और लोक आस्था
लोककथाओं के अनुसार, जब बर्बर लुटेरा काला पहाड़ भारत के मंदिरों को तोड़ता हुआ यहां पहुंचा, तो पुजारियों ने सूर्य देव से रक्षा की प्रार्थना की। कहा जाता है कि रातों-रात मंदिर का मुख पूर्व से पश्चिम की ओर घूम गया और तब से यह मंदिर पश्चिमाभिमुख है।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक चोर जब मंदिर के स्वर्ण कलश को चुराने आया तो वह वहीं पत्थर का बन गया। आज भी सटा हुआ चोर मंदिर के पास दिखाया जाता है। कुछ विद्वान, जैसे शंकर दयाल सिंह और राहुल सांकृत्यायन, इसे प्राचीन बौद्ध स्थल मानते हैं, जिसे बाद में शंकराचार्य ने पुनः वैदिक रूप दिया।

वैज्ञानिक और पुरातात्त्विक दृष्टिकोण
ब्राही लिपि में अंकित शिलालेखों के अनुसार, मंदिर का निर्माण लगभग 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेतायुग बीत जाने के बाद आरंभ हुआ था। यदि इस गणना को प्रतीकात्मक माना जाए, तो भी यह भारत के सबसे प्राचीन सूर्य मंदिरों में एक है। पुरातत्वविदों का मानना है कि मंदिर की डिजाइन में सौर विकिरण और खगोल विज्ञान का अद्भुत सामंजस्य देखने को मिलता है।
श्रद्धा, छठ और जनआस्था का केंद्र
हर वर्ष कार्तिक और चैत्र मास में होने वाले छठ पर्व पर लाखों श्रद्धालु यहां अर्घ्य देने आते हैं। लोग मानते हैं कि छठ व्रत के दौरान सूर्य देव स्वयं देव मंदिर में साक्षात रूप से उपस्थित होते हैं। भक्तजन यहां आकर मनोकामनाएं मांगते हैं, और उनकी पूर्ति होने पर पुनः आकर सूर्यदेव को धन्यवाद देते हैं।
देव सूर्य मंदिर की महिमा
देव सूर्य मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से पवित्र है, बल्कि यह भारत की स्थापत्य और सांस्कृतिक पहचान का जीता-जागता प्रमाण है।
यह वह स्थान है जहां विज्ञान, वास्तु, कला और आस्था एक साथ दिखाई देते हैं। यही कारण है कि आज भी देश-विदेश से हजारों पर्यटक यहां आकर भारतीय संस्कृति की गहराई को महसूस करते हैं।

