मानो या न मानो: पंचामृत का अभिषेक किए बिना पूजा रहती है अधूरी

punjabkesari.in Monday, Dec 12, 2022 - 07:06 AM (IST)

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Panchamrita: पंचामृत के विषय में हमें शास्त्रों में एक श्लोक उपलब्ध होता है जो कुछ इस प्रकार है :

‘पयो दधि घृतं चैव च शर्करायुतम्। पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।

अर्थात : दूध, दही, शुद्ध घी, मधु और शक्कर से युक्त पंचामृत आपके स्नान के लिए लाया हूं, कृपया उसको स्वीकार करें।

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प्रभु को पंचामृत का अभिषेक किए बिना पूजन अधूरा रहता है। भगवान को दूध, दही, गौ-घृत, शक्कर और मधु से स्नान कराने में एक विशिष्ट भावना छिपी है। भगवान की पूजा हमारे विकास के लिए है। उपरोक्त पांच वस्तुएं बहुत ही मार्गदर्शक हैं। पंचामृत स्नान का दूध शुभता का प्रतीक है। हमारा चरित्र उज्ज्वल होना चाहिए, हमारे कर्म शुद्ध होने चाहिएं। ऐसे आध्यात्मिक विचारों से अलंकृत हमारी पूजा भगवान नहीं स्वीकार करेंगे तो किसकी स्वीकार करेंगे? प्रभु को दुग्धपान कराते समय निम्न मंत्र बोला जाता है :
कामधेनो: समुद्भुतं देवॢषपितृतृप्तिदम्। पयो ददामि देवेश स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।

कामधेनु से उत्पन्न, देव, ऋषि और पितरों को तृप्ति देने वाला दूध मैं आपको अर्पित करता हूं इसलिए हे प्रभु इस दूध को आप स्नान हेतु स्वीकार करें।

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निर्मल बुद्धि कामधेनु है - ‘शुद्धा हा बुद्धि: किल कामधेनु:’ और गाय उपनिषदों की प्रतीक है - ‘सर्वोपनिषदो गावो’। इस दृष्टि से उपनिषद रूपी गाय से कामधेनु रूपी विशुद्ध बुद्धि द्वारा निकाला हुआ विचार रूपी दुग्ध पुष्टिदायक है।

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मानव की बुद्धि ईश समर्पित होगी तथा उसके विचार दूध जैसे धवल समाज का निर्माण करेंगे। प्रभु को कराए जाने वाले इस स्नान में हमारी भक्ति प्रकट होती है और उसका रहस्य समझकर उसका पान करने से हमारी शक्ति का संवर्धन होता है। पंचामृत की शुभता, परिवर्तनशीलता, स्निग्धता, पुष्टिदायकता और मधुरता हमारे जीवन में भी प्रकट हो, यही प्रभु चरणों में अभिलाषा है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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