Mahalakshmi Temple: इस मंदिर में सूरज की किरणों से होता है मां लक्ष्मी के का अभिषेक, जानें इसका इतिहास

punjabkesari.in Friday, Apr 18, 2025 - 02:19 PM (IST)

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Mahalakshmi Temple Kolhapur: सनातन धर्म में मां लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। भारत में माता लक्ष्मी के कई रहस्यमयी और चमत्कारी मंदिर हैं। जहां कई तरह के चमत्कार देखने को मिलते हैं। 7 हज़ार साल पुराना माता लक्ष्मी का ये मंदिर देखने में जितना खूबसूरत है उतना ही रहस्यमयी है। ऐसी मान्यता है कि महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित इस मंदिर में साल में सिर्फ दो बार सूरज की किरणें पड़ती हैं. और आंखों देखे इस बाबत नकारा नहीं जा सकता है।

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आमतौर पर मंदिरों का मुख्यद्वार पूर्व दिशा में होता है। लेकिन इस मंदिर की खासियत है कि यहां चारों दिशाओं से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर के स्तंभों पर बहुत सुंदर नक्काशी की गई है। साल में दो बार सूर्य की किरणें देवी के विग्रह पर सीधी पड़ती हैं, जो चरणों को स्पर्श करती हुई। उनके मुखमंडल तक आती हैं। इस अद्भुत प्राकृतिक घटना को किरणोत्सव कहा जाता है। इसे देखने के लिए भारत के कोने-कोने से हज़ारों श्रद्धालु कोल्हापुर आते हैं। ये प्राकृतिक घटना हर साल माघ मास की रथ सप्तमी को संभावित होती है। कोल्हापुर में ये उत्सव तीन दिनों के लिए मनाया जाता है।  पहले दिन सूर्य की किरणें देवी मां के पैरों पर गिरती हैं, दूसरे दिन मध्यभाग में और तीसरे दिन मां के मुखमंडल को छूकर अदृश्य हो जाती हैं।

शक्तिपीठ कहे जाने वाले मां के इस धाम को लेकर लोगों में इतना विश्वास है कि हर साल दिवाली के मौके पर देवस्थान तिरुपति के कारीगर सोने के धागों से बुनी विशेष साड़ी महालक्ष्मी को भेंट करते हैं। जिसे स्थानीय भाषा में शालू कहा जाता है। इसके बाद दीपावली की रात में माता का विशेष पूजन और शृंगार किया जाता है। इस पूजन में दूर-दूर से लोग आते हैं और महाआरती में अपने मन की मुरादें मांगते हैं. ऐसी मान्यता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी माता जीजा बाई भी यहां पूजन करने आती थीं।

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मंदिर की बनावट
अगर इस मंदिर की बनावट के बारे में बात की जाए तो काले पत्थर से निर्मित महालक्ष्मी की प्रतिमा की ऊंचाई करीब 3 फीट है। मंदिर के एक तरफ की दीवार में श्री यंत्र पत्थर पर खोद कर चित्र बनाया गया है। देवी के मुकुट में भगवान् विष्णु के शेषनाग नागिन का चित्र भी देखा जा सकता है। मां लक्ष्मी के सामने की पश्चिमी दीवार पर एक छोटी सी खुली खिड़की रहती है और यही वो खिड़की है। जहां से सूरज की किरणें प्रवेश करती हैं।

मंदिर का इतिहास
इस मंदिर के इतिहास के बारे में भी बहुत कुछ जानने को मिलता है। केशी नामक राक्षस के बेटे कोल्हासुर के अत्याचारों से परेशान होकर देवताओं ने देवी से प्रार्थना की, तब महालक्ष्मी ने दुर्गा का रूप धारण किया और ब्रहास्त्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। मरने से पहले उसने वर मांगा था कि इस इलाके को करवीर और कोल्हासुर के नाम से जाना जाए। इसी वजह से यहां माता को करवीर महालक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। कालांतर में कोल्हासुर शब्द कोल्हापुर में बदल गया।

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Content Editor

Sarita Thapa

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