Muni Shri Tarun Sagar: जैन धर्म को समझने के लिए दिमाग नहीं दिल चाहिए

punjabkesari.in Wednesday, Jul 19, 2023 - 08:58 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

समाधि
मन का रोग आधि है, तन का रोग व्याधि है, पद का रोग उपाधि है और इन तीनों रोगों की दवा-समाधि है। ज्ञानी का विश्वास आधि, व्याधि, उपाधि में नहीं : समाधि में होता है। समाधि अपने हाथ से मृत्यु को निमंत्रण देना है। मृत्यु और समाधि में फर्क है। पुराना कपड़ा छोड़कर नया कपड़ा ले लेना यह मृत्यु है और पुराना छोड़ना और फिर नया नहीं लेना-यह समाधि है।

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संसार और संन्यास
पानी और मन का एक ही स्वभाव और गति है। दोनों ही स्वभाव से अधोगामी हैं। पानी को जमीन पर डालें तो जिधर ढलान होगी उधर बह जाएगा। मन का भी यही हाल है। मन भी हमेशा नीचे (संसार) की ओर दौड़ता है फिर भी इनकी गति को बदला जा सकता है। पानी को यंत्र और मन को मंत्र मिल जाए तो दोनों ऊर्ध्वगामी हो सकते हैं। मन नीचे की तरफ दौड़े तो ‘संसार’ है और ऊपर की तरफ चढ़े तो ‘संन्यास’ है।

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भारत में भ्रष्टाचार
मैंने सुना है : अमरीका, रूस और भारत के राष्ट्रपति भगवान से मिले। भगवान से बुश ने पूछा, ‘‘प्रभु! मेरे देश से भ्रष्टाचार कब खत्म होगा?’’

भगवान बोले, ‘‘पूरे 60 साल बाद।’’ यह सुनकर बुश की आंखों में आंसू आ गए क्योंकि ये अच्छे दिन देखने के लिए वह तब तक जीवित नहीं रहेंगे।

फिर पुतिन ने यही प्रश्न भगवान से पूछा। भगवान ने कहा, ‘‘50 साल बाद।’’ जवाब सुनकर पुतिन की भी आंखों में आंसू आ गए। समस्या वही थी।  

आखिर में डा. अब्दुल कलाम ने भगवान से पूछा, ‘‘प्रभो ! और मेरे देश से भ्रष्टाचार कब खत्म होगा ?’’ यह सुनकर इस बार खुद भगवान की आंखों में आंसू आ गए। इसका मतलब?’’

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जैन धर्म का सार
जैन धर्म खुद तो जबरदस्त है, मगर वह किसी के साथ ‘जबरदस्ती’ कभी नहीं करता। इस धर्म को समझने के लिए दिमाग नहीं दिल चाहिए। व्यवहार में अहिंसा, विचारों में अनेकांत और जीवन में अपरिग्रह यही जैन धर्म है।

जैन धर्म का सार यदि एक शब्द में कहना हो तो वह शब्द है वीतरागता। जैन धर्म में व्यक्ति ही नहीं व्यक्तित्व की पूजा की प्रेरणा है। जैन धर्म हीरा है मगर दुर्भाग्य है कि आज यह कोयला  बेचने वालों के हाथों में आ गया है।
 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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