Parshuram Jayanti: धर्म तथा संस्कृति के रक्षक हैं भगवान परशुराम
punjabkesari.in Tuesday, Apr 29, 2025 - 03:37 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Maharshi Parshuram Jayanti 2025: समस्त सनातन जगत के आराध्य भगवान विष्णु जी के छठे अवतार भृगुकुल तिलक, अजर, अमर, अविनाशी, अष्ट चिरंजीवियों में सम्मिलित, समस्त शस्त्र एवं शास्त्रों के ज्ञाता भगवान परशुराम जी का प्राकट्य वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया के दिन माता रेणुका के गर्भ से हुआ। भगवान परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि वेद-शास्त्रों के महान ज्ञाता थे। परशुराम जी ने अत्याचारी व अधर्मी शासकों से 21 बार भयंकर युद्ध किए तथा गौ, ब्राह्मण तथा वेद और लोप हो रहे पावन वैदिक सत्य सनातन धर्म की रक्षा की तथा इस पवित्र आर्य भारत भूमि को उनके अत्याचारों से मुक्त कराया।
उनके इस महान लोक कल्याण के कार्य से सम्पूर्ण मानव जगत लाभान्वित हुआ। जिस शासक वर्ग का सबसे बड़ा दायित्व प्रजा का रक्षण होता है, यदि वही समाज को प्रताड़ित तथा अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने लगे तथा प्रजा त्राहि-त्राहि करने लगे, ऐसे पीड़ित व शोषित समाज की रक्षा हेतु योगी होते हुए भी भगवान परशुराम जी ने शस्त्र उठाकर सत्य, समानता एवं सामाजिक न्याय की अवधारणा से पोषित सत्य सनातन धर्म की स्थापना की।
जब मनुष्य के पास शक्तियां आती हैं तो उसका अहंकार, घमंड, काम तथा क्रोध भी बढ़ जाता है। तब वह अधर्म को भी धर्म के रूप में परिभाषित करने लगता है। उस समय एक राजा सहस्त्रार्जुन, जिसकी एक हजार भुजाएं थीं, को भगवान दत्तात्रेय से अजेय होने का वरदान प्राप्त था।
एक समय सहस्त्रार्जुन भगवान परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि के आश्रम में आया। आश्रम की सम्पन्नता देख वह आश्चर्यचकित हो गया। जब उसको ज्ञात हुआ कि यह सब कामधेनु गाय की कृपा है, तब बह बलपूर्वक कामधेनु गाय को ले गया। जब भगवान परशुराम जी को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसे मार्ग में रोक कर उससे युद्ध किया और उसका वध कर दिया, जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया।
भगवान परशुराम जी का उल्लेख हमें रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण तथा कल्कि पुराण में मिलता है। भृगु कुल में उत्पन्न परशुराम जी सदैव अपने गुरुजनों तथा माता-पिता की आज्ञा का पालन करते थे। उनके कथनानुसार राजा का कर्तव्य होता है वैदिक सनातन धर्म के अनुसार राजधर्म का पालन करते हुए प्रजा के हित में कार्य करे, न कि प्रजा से आज्ञा पालन करवाए और उसके अधिकारों पर अंकुश लगाए।
भगवान परशुराम जी ने अश्वमेध महायज्ञ का आयोजन कर सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप जी को दान कर दी थी। भगवान शिव द्वारा प्रदान परशु नामक अमोघ शस्त्र से इनका नामकरण परशुराम हुआ। भगवान शिव की कृपा से ही भगवान परशुराम जी को भगवान श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच प्राप्त हुआ।
त्रेतायुग में भगवान श्रीराम जी के समय, भगवान शिव का धनुष भंग होने पर, भगवान परशुराम जी ने श्रीराम को स्वयं श्रीमन्नारायण जान कर उन्हें वैष्णव-धनुष प्रदान किया। तब श्रीराम जी ने भगवान परशुराम जी को प्रणाम कर उनका पूजन भी किया। भगवान परशुराम जी ने भीष्म, द्रोण व कर्ण को भी शस्त्र-विद्या प्रदान की। विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी को एकदंत करने वाले भी भगवान परशुराम जी ही थे। वैदिक सनातन संस्कृति रक्षार्थ हर युग के कालखंड में भगवान परशुराम जी ने महान योगदान दिया।
उन्होंने ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर न केवल वेद शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया, अपितु क्षत्रिय स्वभाव को धारण करते हुए शस्त्रों को भी धारण किया तथा इससे वह समस्त सनातन जगत के आराध्य तथा समस्त शस्त्रों तथा शास्त्रों के ज्ञाता कहलाए।