Muni Shri Tarun Sagar- धन से सुविधाएं मिल सकती हैं, सुख नहीं

punjabkesari.in Thursday, May 08, 2025 - 03:48 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

पशुता और दिव्यता
रोते हुए पैदा होना दुर्भाग्य नहीं है, बल्कि रोते-रोते जीना और रोते-रोते ही मर जाना दुर्भाग्य है। हम भले ही रोते हुए पैदा हुए हों, पर जिंदगी की सफलता तो इसी में है कि हंसते-हंसते दुनिया से विदा लें। मनुष्य में पशुता और दिव्यता ये दो शक्तियां निवास करती हैं। मनुष्य को गिरना नहीं है, बल्कि ऊपर उठना है। वह ऊपर उठे तो देवता हो सकता है और नीचे गिरे तो पशु हो सकता है।



संसारी और संत
आज को सफल बनाओ, कल अपने आप ही सफल हो जाएगा। जन्म को सुधारो, मृत्यु अपने आप ही सुधर जाएगी। जीवन का गणित कुछ उल्टा है। जीवन के गणित में वर्तमान को सुधारो तो भविष्य सुधरता है और जीवन को सुधारो तो मृत्यु सुधरती है। संसारी और संत में इतना ही अंतर है कि संत आज को सफल बनाने में व्यस्त है और संसारी कल को सफल बनाने में मस्त है।

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आप क्या हैं?
दुनिया में चार तरह के लोग हुआ करते हैं। भाग्यशाली, सौभाग्यशाली, महाभाग्यशाली और दुर्भाग्यशाली। जिसके पास धन भी है और स्वास्थ्य भी है, वह सौभाग्यशाली। जिसके पास धन भी है स्वास्थ्य भी है और धर्म भी है, वह महाभाग्यशाली और जिसके पास न धन है, न स्वास्थ्य है और न ही धर्म है वह दुर्भाग्यशाली। सोचिए आप क्या हैं?

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स्वभाव की मैचिंग
जमाना मैचिंग का है। महिलाओं का ज्यादातर समय मैचिंग में बर्बाद होता है। मैं मैचिंग के खिलाफ नहीं हूं। मेरा निवेदन सिर्फ इतना है कि वस्त्रों और आभूषणों के साथ अपना स्वभाव भी ऐसा बनाओ कि वह कहीं भी मैच कर जाए। परिस्थिति के अनुरूप आदमी अपनी मन:स्थिति बना ले तो उसके पचास प्रतिशत दुख आज और अभी खत्म हो जाएं। स्वभाव की मैचिंग करने वाला ही सुखी रह सकता है।

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सुख साधना से
सुख का पैसे से कोई संबंध नहीं है। अगर होता, तो जो जितना अधिक धनी होता, वह उतना ही अधिक सुखी होता और दिगम्बर मुनि तो दुख की पराकाष्ठा होता, मगर सच्चाई इससे उल्टी है। धनी से धनी आदमी भी अपने दुख का रोना रो रहा है और मुनि चटाई पर भी चैन की नींद सो रहा है। धन से सुविधाएं मिल सकती हैं, सुख नहीं। सुविधाएं तन को सुख दे सकती हैं, मन को नहीं। सुख साधनों से नहीं साधना से मिलता है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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