उज्जैन में हैं दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग, दर्शन से टलती है अकाल मृत्यु (Pics)

punjabkesari.in Monday, Dec 26, 2016 - 09:28 AM (IST)

मध्‍यप्रदेश राज्‍य के उज्जैन शहर में महाकालेश्‍वर मंदिर स्थित है। इसे भारत के 12 प्रमुख ज्‍योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। पुण्यसलिला क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन प्राचीनकाल में उज्जयिनी के नाम से विख्यात था, इसे अवंतिकापुरी भी कहते थे। यह स्थान हिंदू धर्म की 7 पवित्र पुरियों में से एक है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

 

महाकालेश्वर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है। यहां कई देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए मुख्य द्वार से गर्भगृह तक की दूरी तय करनी पड़ती है। इस मार्ग में कई सारे पक्के चढ़ाव उतरने पड़ते हैं परंतु चौड़ा मार्ग होने से यात्रियों को अधिक ‍परेशानियां नहीं आती है। गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए पक्की सीढ़ियां बनी हैं। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है। वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है वह तीन खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य के खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है। ज्योतिष में जिसका विशेष महत्व है। इसी के साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मोहक प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्ज्वलित होता रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है। इस कक्ष में बैठकर हजारों श्रद्धालु शिव आराधना का पुण्य लाभ लेते हैं। 

 
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना से संबंधित भारतीय पुराणों में अलग-अलग कथाअों का वर्णन मिलता है। एक कथा के अनुसार अवंतिका नाम के राज्य में वृषभसेन नाम के राजा राज्य करते थे। वे अपना अधिकतर समय शिव पूजा में लगाते रहते थे। एक बार पड़ोसी राजा ने वृषभसेन के राज्य पर हमला बोल दिया। वृषभसेन ने पूरे साहस के साथ इस युद्ध का सामना किया अौर जीत हासिल की। अपनी हार का बदला लेने के लिए पड़ोसी राजा ने कोई अोर उपाय सोचा। इसके लिए उसने एक असुर की सहायता ली। उस दैत्य को अदृश्य होने का वर प्रदान था। पड़ोसी राजा ने उस दैत्य की मदद से अवंतिका राज्य पर हमला बोल दिया। राजा वृषभसेन ने इन हमलों से बचने के लिए भगवान शिव की शरण ली। भक्त की पुकार सुन कर भगवान साक्षात अवंतिका राज्य मं प्रकट हुए। उन्होंने असुरों अौर पड़ोसी राजाअों से प्रजा की रक्षा की। इस पर राजा वृषभसेन अौर प्रजा ने भगवान शिव से अवंतिका राज्य में ही रहने का आग्रह किया। जिससे भविष्य में अन्य आक्रमण से बचा जा सके। भक्तों के आग्रह के कारण भगवान शिव ज्योतिर्लिंगग के रुप में वहां पर प्रकट हुए। 

 

कहा जाता है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है। इसलिए महाकालेश्वर को पृथ्वी का अधिपति भी माना जाता है । यह एक दक्षिणमुखी ज्‍योतिर्लिंग है। शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज जी है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में आकर सच्चे मन से भगवान शिव की प्रार्थना करता है उसे मृत्यु के बाद मिलने वाली यातनाअों से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि यहां आकर भगवान शिव के दर्शन करने से अकाल मृत्यु टल जाती है अौर व्यक्ति को सीधा मोक्ष प्राप्त होता है। 

 

यहां आने से भगवान शिव धन, धान्य, निरोगी काया, लंबी आयु, संतान आदि इच्छाें पूर्ण करते हैं। यहां पहले महाकाल की भस्म आरती में ताजा मुर्दे की भस्म का ही प्रयोग होता था परंतु महात्मा गांधी के आग्रह के उपरांत शास्त्रीय विधि से निर्मित उपल-भस्म से भस्मार्ती होने लगी।
 


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