महाभारत: तीन रात करें इस मंत्र का जाप, life की हर मुश्किल हो जाएगी आसां

punjabkesari.in Tuesday, Dec 20, 2022 - 04:19 PM (IST)

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Mahabharata- गौएं प्राणियों का आधार तथा कल्याण की निधि हैं। भूत और भविष्य गौओं के ही हाथ में हैं। वे ही सदा रहने वाली पुष्टि का कारण तथा लक्ष्मी की जड़ हैं। गौओं की सेवा में जो कुछ दिया जाता है, उसका फल अक्षय होता है। अन्न गौओं से उत्पन्न होता है, देवताओं को उत्तम हविष्य (घृत) गौएं देती हैं तथा स्वाहाकार (देवयज्ञ) और वषट्कार (इंद्रयाग) भी सदा गौओं पर ही अवलम्बित हैं। गौएं ही यज्ञ का फल देने वाली हैं। उन्हीं में यज्ञों की प्रतिष्ठा है।

PunjabKesari Mahabharata Chant this mantra for three nights

ऋषियों को प्रात:काल और सायंकाल में होम के समय गौएं ही हवन के योग्य घृत आदि पदार्थ देती हैं। जो लोग दूध देने वाली गौ का दान करते हैं, वे अपने समस्त संकटों और पापों से पार हो जाते हैं। जिसके पास दस गौएं हों, वह एक गौ दान करे जो सौ गाएं रखता हो, वह दस गाएं दान करे और जिसके पास हजार गौएं मौजूद हों, वह सौ गाएं दान करे तो इन सबको बराबर ही फल मिलता है। जो सौ गौओं का स्वामी होकर भी अग्रिहोत्र नहीं करता, जो हजार गौएं रखकर भी यज्ञ नहीं करता तथा जो धनी होकर भी कंजूसी नहीं छोड़ता-ये तीनों मनुष्य अर्घ्य (सम्मान) पाने के अधिकारी नहीं हैं।

प्रात:काल और सायंकाल में प्रतिदिन गौओं को प्रणाम करना चाहिए। इससे मनुष्य के शरीर और बल की पुष्टि होती है। गोमूत्र और गोबर देखकर कभी घृणा न करें। गौओं के गुणों का कीर्तन करें। कभी उनका अपमान न करें। यदि बुरे स्वप्र दिखाई दें तो गोमाता का नाम लें। थूक न फैंकें। मल-मूत्र न त्यागें। गौओं के तिरस्कार से बचते रहें। अग्रि में गाय के घृत का हवन करें, उसी से स्वस्तिवाचन कराएं। गो-घृत का दान और स्वयं भी उसका भक्षण करें तो गौओं की वृद्धि होती है। (महा.अनु. 7815-21)

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गौओं को यज्ञ का अङ्ग और साक्षात यज्ञरूप बतलाया गया है। इनके बिना यज्ञ किसी तरह नहीं हो सकता। ये अपने दूध और घी से प्रजा का पालन-पोषण करती हैं तथा इनके पुत्र (बैत) खेती के काम और तरह-तरह के अन्न एवं बीज पैदा करते हैं, जिनसे यज्ञ सम्पन्न होते हैं और हव्य-कव्य का भी काम चलता है। इन्हीं से दूध, दही और घी प्राप्त होते हैं। ये गौएं बड़ी पवित्र होती हैं और बैल भूख-प्यास का कष्ट सह कर अनेकों प्रकार के बोझ ढोते रहते हैं। इस प्रकार गो-जाति अपने काम से ऋषियों तथा प्रजाओं का पालन करती रहती है।

उसके व्यवहार में शठता या माया नहीं होती। वह सदा पवित्र कर्म में लगी रहती है। इसी से ये गौएं हम सब लोगों के ऊपर निवास करती हैं। इसके सिवाय गौएं वरदान भी प्राप्त कर चुकी हैं तथा प्रसन्न होने पर वे दूसरों को भी वरदान देती हैं। (महा.अनु. 83127-21)

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गौएं सम्पूर्ण तपस्वियों से बढ़ कर हैं इसलिए भगवान शंकर ने गौओं के साथ रहकर तप किया था। जिस ब्रह्मलोक में सिद्ध ब्रह्मर्षि भी जाने की इच्छा करते हैं, वहीं ये गौएं चंद्रमा के साथ निवास करती हैं। ये अपने दूध, दही, घी, गोबर, चमड़ा, हड्डी,  सींग और बालों से भी जगत का उपकार करती रहती हैं। इन्हें सर्दी, गर्मी और वर्षा का कष्ट विचलित नहीं करता। ये गौएं सदा ही अपना काम किया करती हैं। इसलिए ये ब्राह्मणों के साथ ब्रह्मलोक में जाकर निवास करती हैं। इसी से गौ और ब्राह्मण को विद्वान पुरुष एक बताते हैं। (महा. अनु. 661 37-42)

गौएं परम पावन और पुण्यस्वरूपा हैं। इन्हें ब्राह्मणों को दान करने से मनुष्य स्वर्ग का सुख भोगता है। पवित्र जल से आचमन करके पवित्र होकर गौओं के बीच में गोमती-मंत्र ‘गोमा अग्रे विमां अश्वी’ का जप करने से मनुष्य अत्यंत शुद्ध एवं निर्मल (पापमुक्त) हो जाता है। 

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विद्या और वेदव्रत में निष्णात पुण्यात्मा ब्राह्मणों को चाहिए कि वे अग्रि, गौ और ब्राह्मणों के बीच अपने शिष्यों को यज्ञतुल्य गोमती-मंत्र की शिक्षा दें। जो तीन रात तक उपवास करके गोमती मंत्र का जप करता है, उसे गौओं का महावरदान प्राप्त होता है। 

पुत्र की इच्छा वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन और पति की इच्छा रखने वाली स्त्री को पति मिलता है। इस प्रकार गौएं मनुष्य की सम्पूर्ण कामनाएं पूर्ण करती हैं, वे यज्ञ का प्रधान अंग हैं, उनसे बढ़ कर दूसरा कुछ नहीं है। (महा. अनु 81)


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Content Writer

Niyati Bhandari

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