द्रौपदी ने कैसे हर पांडव को दिया बराबरी का समय? जानिए महाभारत की कहानी
punjabkesari.in Thursday, Dec 18, 2025 - 01:04 PM (IST)
Religious Katha: महाभारत की सबसे अनोखी और जटिल कथाओं में से एक है द्रौपदी और पांच पांडवों का विवाह। माता कुंती के एक अनजाने आदेश के कारण द्रौपदी को पांचों भाइयों की पत्नी बनना पड़ा। लेकिन पांच पराक्रमी योद्धाओं के बीच किसी भी तरह की ईर्ष्या, मतभेद या विवाद को रोकने के लिए एक बहुत ही ठोस और अनुशासित व्यवस्था बनाई गई थी। तो आइए जानते हैं कि द्रौपदी ने पांचों पतियों के साथ अपने जीवन का तालमेल कैसे बिठाया और वह नियम क्या थे।

देवर्षि नारद की सलाह और विशेष समझौता
जब पांचों पांडव द्रौपदी को लेकर इंद्रप्रस्थ आए, तब देवर्षि नारद ने उन्हें चेतावनी दी थी। उन्होंने सुंद और उपसुंद नामक दो भाइयों की कहानी सुनाई, जो एक ही स्त्री के कारण आपस में लड़कर मर गए थे। नारद मुनि की सलाह पर पांडवों ने आपसी सहमति से कुछ नियम बनाए। नियम यह तय हुआ कि द्रौपदी हर पांडव के साथ एक वर्ष का समय बिताएंगी। यानी पांच साल के चक्र में हर भाई को एक साल द्रौपदी के साथ रहने का अवसर मिलता था। जब द्रौपदी किसी एक भाई के साथ अपने निजी कक्ष में हों, तो किसी भी अन्य भाई को वहां प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी।
नियम तोड़ने पर कठिन दंड
इस व्यवस्था को केवल औपचारिकता नहीं माना गया, बल्कि इसके उल्लंघन पर 12 वर्ष के देश निकाला (वनवास) का कड़ा दंड निर्धारित किया गया था। पांडवों ने इस नियम का पालन पूरी निष्ठा से किया। एक बार एक ब्राह्मण की गायों को चोरों से बचाने के लिए अर्जुन को अपने हथियारों की जरूरत पड़ी, जो उस समय युधिष्ठिर और द्रौपदी के कक्ष में रखे थे। धर्म की रक्षा के लिए अर्जुन को नियम तोड़ना पड़ा। हालांकि युधिष्ठिर ने उन्हें क्षमा कर दिया था, लेकिन अर्जुन ने खुद ही नियम का पालन करते हुए 12 साल के वनवास को स्वीकार किया।

द्रौपदी का कन्या भाव और संयम
पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्रौपदी को यह वरदान प्राप्त था कि जब वह एक पति के साथ अपना समय पूरा कर दूसरे पति के पास जाएंगी, तो वह पुनः एक कन्या के समान पवित्रता प्राप्त कर लेंगी। द्रौपदी ने अपनी बुद्धिमानी से पांचों पतियों के अलग-अलग स्वभाव को समझा और उन्हें कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह किसी एक को ज्यादा महत्व दे रही हैं।
इस रिश्ते की सबसे बड़ी सफलता का कारण पांडवों का आपसी प्रेम और द्रौपदी के प्रति सम्मान था। द्रौपदी ने पांचों भाइयों के बीच एक 'कड़ी' का काम किया, जिससे पांडवों की एकता कभी भंग नहीं हुई। उन्होंने न केवल एक पत्नी बल्कि एक कुशल मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाई।

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