Ganesh Utsav 2022: आखिर क्यों गणेश भगवान ने किया था स्त्री रूप धारण, आप जानते हैं?

punjabkesari.in Friday, Aug 26, 2022 - 06:13 PM (IST)

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गणेश उत्सव का पर्व इस बार 31 अगस्त, 2022 दिन बुधवार को आरंभ हो रहा है, जो प्रत्येक वर्ष अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन के साथ समापन होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी के दिन लोग बड़े ही धूम धाम से बप्पा को अपने घर लाते हैं और पूरे 10 दिन इन्हें अपने घर में रखते हैं और धूम से धाम से इनका ये पर्व मनाते हैं। तो आइए इसी अवसर के आने के उपलक्ष्य पर आपको बताते हैं गणेश जी से जुड़ी एक ऐसी कथा जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। 
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दरअसल आज हम आपको गणपति बप्पा से जुड़ी एक पौराणिक कथा के बारे में बताएंगे।जिस कथा में उनके स्त्री रूप के बारे में बताया गया है। ये सुनकर आप लोग चौंक तो जरूर गए होंगे। लेकिन, ये बात सच है कि भगवान शिव की तरह ही गजानन ने भी स्त्री रूप धारण किया था।इसका उल्लेख कई पुराणों में देखने को मिलता है। तो आइए जानते हैं कि आखिर क्यों भगवान गणेश ने लिया था स्त्री रूप ?

एक पौराणिक कथा के अनुसार, अंधकासुर नामक दैत्य के मन एक बार मां पार्वती को अपनी वामांगिनी यानी पत्नी बनाने का विचार आया।इस घिनौनी इच्छा को पूरा करने के लिए, उसने बलपूर्वक माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी बनाने की कोशिश की।उसी समय देवी सती ने भगवान शिव का आवाहन किया।

फिर, भगवान शिव वहां प्रकट होते हैं और दैत्य का संहार करने के लिए अपना त्रिशूल उठाते हैं। कोध्र में आकर शिव उसके शरीर से त्रिशूल आरपार कर देते हैं। मगर उस प्रहार से असुर का बाल भी बांका नहीं होता है, केलव रक्त की बूंदे गिरने लगती हैं। यही नहीं उसका रक्त जमीन पर गिरने से और भी दैत्य पैदा होने लगते हैं। ऐसे दृश्य को देखते हुए भगवान शिव सोचते हैं कि उस असुर के रक्त को जमीन पर गिरने से रोकना होगा।तब ही इसका नाश संभव हो सकता है।
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वहीं दूसरी ओर माता पार्वती का मानना था कि एक दैवीय शक्ति के दो तत्व होते हैं।पहला पुरुष होता है, जो उसको मानसिक रूप से सक्षम बनाता है।और दूसरा तत्व ये होता है जो उसे शक्ति प्रदान करता है।इसलिए देवी शक्ति ने उन सभी देवियों को आमंत्रित किया जो खुद एक शक्ति का रूप हैं। देवी सती के आंमत्रन से सभी देवियां वहां उपस्थित हो जाती हैं और वो जमीन पर खून गिरने से पहले ही अपने अंदर समा लेती हैं। ऐसा करने से अंधकासुर के रक्त से उत्पन्न होने वाले राक्षस कम होने लगते हैं। 
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लेकिन, दोस्तों आपको बता दें कि रक्त इतना ज्यादा बह रहा था कि।सभी देवी शक्तियां उसको ग्रहण करने में न कामयाब हो रही थी।फिर, उस परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए भगवान गणेश ने ‘विनायकी’ रूप में प्रकट हुए।श्री गणेश पलक झपकते ही उस असुर का सारा रक्त ग्रहण कर लेते हैं। तब से धर्मोत्तर पुराण में विघ्नहर्ता कहलाए जाने वाले गणेश जी के "विनायकी" स्वरूप का वर्णन मिलता है। वहीं वन दुर्गी उपनिषद में श्री गणेश को "गणेश्वरी" का नाम दिया गया है।और मत्स्य पुराण में भी बप्पा के स्त्री रूप का उल्लेख मिलता है। अंत में आपको बता दें कि गणेश जी के विनायकी रूप को सबसे पहले 16 वीं सदी में पहचाना गया था। उनका यह स्वरूप हूबहू माता पार्वती जैसा प्रतीत होता है, अंतर बस। सिर का ही है जो गणेश जी की तरह ही ‘गज के सिर’ से बना हुआ  है।
 


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Content Writer

Jyoti

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