वास्तु गुरु कुलदीप सलूजा: केदारनाथ धाम में आने वाली त्रासदी का कारण है वास्तु दोष

punjabkesari.in Sunday, Jul 16, 2023 - 08:31 AM (IST)

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Vastu of Kedarnath Dham: हिंदुओं का पवित्र तीर्थ स्थल केदारनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में मंदाकिनी नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। हिमालय पर्वत की गोद में स्थित केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जनमेजय ने कराया था। मंदिर की शिल्प कला भव्य है। यहां स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार आदि शंकराचार्य ने करवाया था।

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इस मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है लेकिन एक हजार वर्षों से केदारनाथ धाम एक महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा स्थल रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये मंदिर 12-13 वीं शताब्दी का मंदिर है। यह मन्दिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान है। यहां की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है, शेष समय यह मंदिर बंद रहता है।

जून 2013 के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में चौराबाड़ी ग्लेशियर के कुण्ड से निकलती मंदाकिनी नदी में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। इस भारी तबाही में मंदिर के आस-पास के मकान और कई गांव के गांव बह गए, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग लापता हो गए लेकिन इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहा परन्तु मन्दिर का प्रवेश द्वार पूरी तरह बर्बाद हो गया।  

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Vastu View on Kedarnath Dham: आईए मंदिर और उसकी आस-पास की भौगोलिक स्थिति का वास्तु विश्लेषण करके देखते हैं कि केदारनाथ के प्रति लोगों में इतनी आस्था और जून 2013 में यहां हुई भयंकर त्रासदी के पीछे कौन से कारण है ?

भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार, पूर्व दिशा में ऊंचाई और पश्चिम दिशा में ढलान व पानी का स्रोत होना अच्छा नहीं माना जाता है परन्तु देखने में आया है कि ज्यादातर वो स्थान जो धार्मिक कारणों से प्रसिद्ध हैं (चाहे वह किसी भी धर्म से सम्बन्धित है) उन स्थानों पर पूर्व की तुलना में पश्चिम में नीचाई होती है।

उदाहरण के लिए वैष्णो देवी मंदिर (जम्मू), पशुपतिनाथ मंदिर (मंदसौर) इत्यादि। वह घर जहां पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्रोत (जैसे भूमिगत पानी की टंकी, कुआं, बोरवेल इत्यादि) होता है, उस भवन में निवास करने वालों में धार्मिकता दूसरों की तुलना में ज्यादा ही होती है। केदारनाथ में मंदिर की पश्चिम दिशा में मंदाकिनी नदी बह रही है। इसी भौगोलिक स्थिति के कारण दुर्गम माने जाने वाले केदारनाथ धाम की ओर श्रद्धालु हजारों वर्ष से खिंचे चले आ रहे हैं और आते रहेंगे।

मंदिर के तीन ओर पूर्व, उत्तर और पश्चिम दिशा में पहाड़ियां हैं, साथ ही मंदिर की पश्चिम दिशा में मंदाकिनी नदी भी बह रही है। मंदिर की दक्षिण दिशा खुली है। मंदाकिनी नदी की एक धारा मंदिर की पूर्व दिशा की ओर भी बह रही है, यह धारा आगे जाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख्यधारा से मिल जाती है। नदी की मुख्य धारा मंदिर से थोड़ा आगे जाकर दक्षिण दिशा में जहां नीचाई है उस ओर मुड़ गई है। इस कारण मंदिर की दक्षिण दिशा और नैऋत्य कोण वाला भाग अन्य दिशाओं की तुलना में नीचा हो रहा है। वास्तुशास्त्र के अनुसार यदि दक्षिण दिशा और नैऋत्य कोण नीचे हो, ईशान, आग्नेय और वायव्य कोण तथा उत्तर, पूर्व और पश्चिम दिशा ऊंचे हो तो वहां संतान व सम्पत्ति नष्ट होती है। इस वास्तुदोष का प्रभाव जून 2013 में दिखाई भी दिया।

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मंदिर की भौगोलिक स्थिति पर फेंगशुई का सिद्धांत भी लागू होता है। यदि पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊंचाई हो, आगे की तरफ पहाड़ की ढलान हो और ढलान के बाद पानी का झरना, कुण्ड, तालाब, नदी इत्यादि हो, ऐसा भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। फेंगशुई के इस सिद्धान्त में दिशा का कोई महत्त्व नहीं है। ऐसा भवन किसी भी दिशा में हो सकता है। केदारनाथ मंदिर के पीछे उत्तर दिशा में पहाड़ियों की ऊंचाई है तथा मंदिर के आगे की ओर दक्षिण दिशा में ढलान है जहां आगे जाकर मंदाकिनी नदी बह रही है।  इसी कारण यह मंदिर प्रसिद्ध भी है और जून 2013 में आई त्रासदी में सदियों पुराना केदारनाथ मंदिर सुरक्षित रहा।

वास्तु गुरु कुलदीप सलूजा
thenebula2001@gmail.com

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Content Writer

Niyati Bhandari

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