Jagannath Rath Yatra 2025: सोने की झाड़ू से होती है रथ यात्रा की पवित्र सफाई, जानिए क्यों ?

punjabkesari.in Sunday, Jun 22, 2025 - 10:56 AM (IST)

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Jagannath Rath Yatra 2025:  हर साल ओडिशा के पुरी शहर में आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथ यात्रा बड़े ही धूमधाम से निकाली जाती है। यह आयोजन न केवल ओडिशा बल्कि पूरे भारत में एक गहरी धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक माना जाता है। इस पावन अवसर पर हजारों-लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से पुरी पहुंचते हैं, ताकि वे भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के विशाल रथों को खींचने का सौभाग्य प्राप्त कर सकें। ऐसा माना जाता है कि रथ खींचने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।

यह यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि परंपरा, भक्ति और सदियों पुराने संस्कारों का जीवंत रूप है। यात्रा के दौरान कई विशेष अनुष्ठान और रस्में निभाई जाती हैं, जो इस पर्व को अत्यंत पवित्र और विशिष्ट बनाते हैं। भगवान को रथ पर विराजमान कर गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है, जो उनकी मौसी का घर माना जाता है। वहां वे कुछ दिन विश्राम करते हैं और फिर लौटते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा का यह आयोजन श्रद्धालुओं के लिए एक भावनात्मक जुड़ाव भी होता है, जहां आस्था, सेवा और भक्ति अपने चरम पर होती हैं। यह त्योहार न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी भारत की विविधता और एकता को दर्शाता है।

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पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा में एक बेहद खास और अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जो इस पर्व की पवित्रता और गहराई को और भी बढ़ा देती है। रथ यात्रा शुरू होने से पहले एक विशेष रस्म होती है जिसमें भगवान के रथ के मार्ग की सफाई की जाती है। इस अनुष्ठान की सबसे खास बात यह है कि सफाई एक खास झाड़ू से की जाती है, जिसके हत्थे पर सोने की कलाकारी होती है। और यह झाड़ू कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि राजवंश के राजा या उनके प्रतिनिधि अपने हाथों से चलाते हैं। इस प्रतीकात्मक सफाई का उद्देश्य होता है भगवान के मार्ग को पवित्र करना और यह दर्शाना कि ईश्वर के सामने सभी समान हैं, चाहे वह राजा हो या साधारण भक्त।

सोने की झाड़ू से सफाई 
पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत एक बेहद खास और शुभ परंपरा से होती है। रथ को खींचने से पहले, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के मार्ग को विशेष तरीके से शुद्ध किया जाता है। इस सफाई के लिए सोने के हत्थे वाली एक झाड़ू का उपयोग किया जाता है, जिसे शाही परंपरा से जुड़े व्यक्ति गजपति महाराज या उनके प्रतिनिधि अपने हाथों से चलाते हैं। इस पवित्र सफाई के बाद वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जिससे वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठता है। यह पूरा अनुष्ठान रथ यात्रा की आधिकारिक शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।

ऐसा विश्वास है कि सोना, एक अत्यंत शुद्ध और शुभ धातु होने के कारण, देवताओं की पूजा और विशेष धार्मिक क्रियाओं में उपयोग किया जाता है। जब इस धातु से बनी झाड़ू से भगवान के मार्ग की सफाई की जाती है, तो वह स्थान और भी अधिक पवित्र हो जाता है मानो भगवान के स्वागत के लिए जमीन को तैयार किया जा रहा हो। यह परंपरा यह भी दर्शाती है कि भक्तजन भगवान को अपने जीवन की सबसे श्रेष्ठ चीजें समर्पित करना चाहते हैं। यह सिर्फ एक सफाई की प्रक्रिया नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और विनम्रता का प्रतीक है, जिसमें मन, वचन और कर्म से भगवान की सेवा की जाती है।

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धार्मिक महत्व
पुरी की रथ यात्रा से पहले जो विशेष सफाई का अनुष्ठान किया जाता है, उसमें सोने की झाड़ू का उपयोग केवल परंपरा नहीं, बल्कि गहरी धार्मिक भावना से जुड़ा होता है। सोने को हमेशा से ही शुभता, पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक माना गया है। इसलिए जब भगवान जगन्नाथ के मार्ग की सफाई सोने के हत्थे वाली झाड़ू से की जाती है, तो यह सिर्फ एक कर्मकांड नहीं बल्कि एक गहरी आस्था और आदर का प्रतीक होता है।

इस अनुष्ठान के जरिए यह भावना प्रकट होती है कि भगवान के लिए जो कुछ भी किया जाए, वह सर्वोत्तम होना चाहिए। मार्ग की सफाई एक प्रतीकात्मक तरीका है यह दिखाने का कि भक्त अपने आराध्य के स्वागत के लिए पूरी तैयारी और सम्मान के साथ आगे बढ़ते हैं। यह भक्तों के समर्पण और निःस्वार्थ सेवा की भावना को दर्शाता है।

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Content Editor

Prachi Sharma

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