Gilbert hill: मुम्बई का 6 करोड़ वर्ष पुराना पत्थर गिल्बर्ट हिल, जानें इससे जुड़ा गहरा रहस्य
punjabkesari.in Monday, May 12, 2025 - 09:53 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Gilbert hill: मुंबई के पश्चिम अंधेरी में स्थित गिल्बर्ट हिल के पीछे की कहानी बेहद कम लोग जानते हैं। कहा जाता है कि, बेसाल्ट पत्थर का यह ढांचा दुनिया की सबसे पुरानी संरचनाओं में आता है, जो समय के साथ आज तक खड़ा है।
Volcanic eruptions ज्वालामुखी विस्फोट
महाराष्ट्र दक्कन के पहाड़ी मैदान पर स्थित है गिल्बर्ट हिल, जोकि ज्वालामुखी और बेहद बंजर मिट्टी से बना है। यकीनन इतिहास में जरूर इस हिस्से में कोई न कोई ज्वालामुखी विस्फोट हुआ होगा, जिसके कारण यहां काली मिट्टी की वृद्धि हुई और इसी वजह से यहां की जमीन बेहद अनुपजाऊ भी है।
यह ढांचा संपूर्ण मानव जाति की यादों से भी पुराना है। यह पहाड़ी यहां के किसी भी पेड़ की तुलना से ज्यादा पुरानी है और किसी भी पर्वत शृंखला से भी, जिन्हें आप वर्तमान में देख सकते हैं। पृथ्वी पर आखिरी विलुप्त जाति डायनासोर्स की थी, जोकि किसी धूमकेतु के टकराने के कारण हुई थी और उसी समय पृथ्वी पर मौजूद सभी ज्वालामुखी विस्फोट हुए और आज हम जो भूमि देख रहे हैं, वह उसी का गठन है।
What happened 60 million years ago? क्या हुआ 6 करोड़ साल पहले?
ऐसा कहा जाता है कि लावा का एक विशाल गोला विश्व भर में अलग-अलग जगहों पर मध्य हवा में फैला और तीन विशान चट्टानों का निर्माण किया, जो पृथ्वी पर सबसे पहले जीवन की साक्ष्य के तौर पर खड़ी हैं। गिल्बर्ट हिल काले बेसाल्ट रॉक का एक ‘मोनोलिथ कॉलम’ है और वास्तव में 6 करोड़ साल पहले के ‘मेसोजोइक युग’ में बना था।
गिल्बर्ट हिल की खास बात है कि अन्य संरचनाओं के विपरीत इसे कोई भी व्यक्ति छू और महसूस कर सकता है, जोकि आपके लिए एक खूबसूरत अनुभव जैसा प्रतीत होगा।
यह अनुभव आपके मन में जीवनभर के लिए बस जाएगा। ढांचे के ऊपर गांवदेवी और दुर्गामाता को समर्पित दो हिंदू मंदिर भी हैं, ये मंदिर एक छोटे से बगीचे में स्थापित हैं। कोई भी व्यक्ति चट्टान पर चढ़ाई करके उस स्थान तक पहुंच सकता है।
Named after a geologist भूवैज्ञानिक पर रखा गया नाम
इस पहाड़ी का नाम भूवैज्ञानिक ‘ग्रोव कार्ल गिल्बर्ट’ के नाम पर रखा गया है। इसकी तुलना अक्सर पूर्वी कैलिफोर्निया में ‘डेविल्स पोस्टपैल नैशनल स्मारक’ और व्योमिंग में स्थित ‘शैतान टॉवर’ से की जाती है। इस स्थान को 1952 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
पर्यावरणविदों और भूवैज्ञानिकों के प्रयासों के बाद पहाड़ी को द्वितीय विरासत संरचना का दर्जा मिला है। हालांकि, ढलानों की बर्बादी को रोकने और संरचना का ख्याल रखने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया गया है। आज यह इलाका बहुमंजिला इमारतों से घिर चुका है।