Urvashi Mandir: न देवता, न ऋषि यहां होती है अप्सरा की पूजा, जानिए उर्वशी मंदिर की अनोखी मान्यता
punjabkesari.in Tuesday, May 20, 2025 - 10:04 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Urvashi Mandir: उत्तराखंड के चमोली जिले में, बद्रीनाथ धाम से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर बसा है बामणी गांव, जहां स्थित है अप्सरा उर्वशी का मंदिर। यह मंदिर न केवल स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है, बल्कि बद्रीनाथ जाने वाले अधिकांश श्रद्धालु भी यहां दर्शन के लिए रुकते हैं।
इस मंदिर की विशेषता केवल इसके धार्मिक वातावरण में ही नहीं, बल्कि इससे जुड़ी गहरी पौराणिक कथाओं और मान्यताओं में भी छिपी हुई है। यहां भक्तों की उपस्थिति हमेशा बनी रहती है लेकिन नवरात्रों में विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों और आयोजनों के चलते यहां का माहौल अत्यंत भक्तिमय हो जाता है।
उर्वशी कौन हैं ?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उर्वशी को स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा माना जाता है। हालांकि इस मंदिर में भगवान शिव से जुड़े कई रहस्य और मान्यताएं भी हैं। यही कारण है कि श्रद्धालु यहां आकर उर्वशी माता और भगवान शिव दोनों की कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं।
मंदिर से जुड़ी दो मुख्य पौराणिक मान्यताएं हैं -
उर्वशी का जन्म और उनका स्वरूप
शास्त्रों के अनुसार, जब भगवान विष्णु बद्रीनाथ क्षेत्र में तप कर रहे थे, तो उनकी साधना की अद्भुत शक्ति से उनकी जंघा से एक दिव्य नारी का जन्म हुआ। यह अप्सरा अत्यंत सुंदर और तेजस्विनी थी, जिसे उर्वशी नाम दिया गया। उर्वशी को स्वर्ग की सबसे सुंदर और प्रभावशाली अप्सराओं में गिना जाता है।
कहते हैं कि उर्वशी ने कुछ समय के लिए धरती पर, विशेष रूप से बामणी गांव के निकट, निवास किया। इस स्थान की दिव्यता और उनकी उपस्थिति के कारण, आज भी उन्हें यहां एक देवी के रूप में पूजा जाता है।उर्वशी को इस मंदिर में सौंदर्य की देवी के रूप में पूजा जाता है।
उर्वशी देवी मंदिर से जुड़ी एक और प्राचीन मान्यता यह बताती है कि जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती के शरीर को लेकर व्याकुल अवस्था में पूरे ब्रह्मांड में विचरण कर रहे थे, तो भगवान विष्णु ने उन्हें मुक्त करने के लिए सुदर्शन चक्र का उपयोग किया। चक्र से सती के शरीर के कई टुकड़े पृथ्वी पर गिरे, और माना जाता है कि उनमें से एक भाग बामणी गांव में भी गिरा। इसी स्थल को कालांतर में उर्वशी देवी के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई और यहां भक्ति-भाव से पूजा शुरू हुई।