गीता के इन श्लोकों को अपनाने वाला व्यक्ति कभी नहीं होता असफल

punjabkesari.in Saturday, Dec 18, 2021 - 03:29 PM (IST)

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हिंदू धर्म में भागवत गीता श्रीमद भगवत गीता को पावन ग्रंथों में से एक माना जाता है। बताया जाता है कि इसमें भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए वह उपदेश है जो उन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान उसे दिए थे। जो व्यक्ति अपने जीवन में इन उपदेशों को अपना आता है वह अपने जीवन में सफलता को जरूर प्राप्त करता है तो आइए आज जानते हैं गीता के कुछ ऐसे ही श्लोकों के बारे में जिनमें व्यक्ति की सफलता का साल जीवन का सार जाने को मिलता है।

1. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

उपरोक्त श्लोक में बताया गया है कि बिना फल की इच्छा के ही कर्म की प्रधानता सबसे बलशाली मानी गई है। अर्थात यदि व्यक्ति किसी कार्य में सफलता प्राप्त करना चाहता है तो उसके लिए सबसे अनिवार्य है कि वह अपने कर्म पर सबसे अधिक ध्यान दें। गीता में कहा गया है कि जब व्यक्ति फल की इच्छा से कर्म करता है तो उसका ध्यान अपने कर्म पर कम और उसके फल पर ज्यादा रहता है जिसकी वजह से करता है उसे सफलता प्राप्त होती है इसलिए फल की चिंता न करें केवल निरंतर कर्म करें।


2. क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।

उपरोक्त गीता श्लोक में बताया गया है कि किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे आवश्यक होता है व्यक्ति का मन शांत होना अर्थात व्यक्ति को अपने मन को हमेशा शांत व स्थिर रखना चाहिए क्रोध बुद्धि का नाश करता है। वरना क्रोध के चलते व्यक्ति अपने जीवन का सर्वनाश कर सकता है।


3. अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।

इस लोक में श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति को अधिक संदेश संशय की आदत होती है, वह व्यक्ति अपने जीवन में कभी भी सुख व शांति का अनुभव प्राप्त नहीं कर पाता। बल्कि ऐसा व्यक्ति खुद का सर्वनाश कर बैठता है। इसलिए सफलता पाने के लिए हमेशा संधि रहित होकर कार्य करना चाहिए।

4. ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

वस्तुओं के प्रति अधिक लगाव होना भी व्यक्ति की असफलता का कारण बनता है। इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह खुद को हर तरह के लगा से दूर रखें क्योंकि वस्तुओं के लगा से हर पल एक इच्छा जल्दी लेती है जिसकी पूर्ति ना होने पर व्यक्ति क्रोध और दुख का भागी बन जाता है जिसके चलते सफलता के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं।

5. हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

किसी भी कार्य में सफलता को पाने के लिए सबसे जरूरी होता है अपने भीतर छिपे डर को खत्म करना। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के दौरान कहा था कि अर्जुन तुम निडर होकर युद्ध करो अगर मारे गए तो स्वर्ग मिलेगा और अगर जीत गए तो तुम्हें धरती पर राज मिलेगा। इसलिए मन में किसी भी तरह के डर को मत रखो।
 


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Content Writer

Jyoti

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