Bhishma Niti: भीष्म पितामह की अनमोल सीख, ऐसा भोजन कभी न करें ग्रहण
punjabkesari.in Sunday, Aug 03, 2025 - 09:27 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Bhishma Niti: महाभारत, जिसे भारतीय संस्कृति का अद्भुत महाकाव्य माना जाता है, न केवल युद्ध की घटनाओं का वर्णन करता है, बल्कि जीवन की अनेक पहलुओं पर भी गहरी शिक्षा प्रदान करता है। इसका एक प्रमुख हिस्सा है भीष्म पितामह द्वारा दी गई शिक्षा, जिसे भीष्म नीति के नाम से जाना जाता है। भीष्म पितामह ने अर्जुन को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अनेक महत्वपूर्ण बातें बताई थीं। उनमें से एक बात भोजन को लेकर थी, जिसे आज भी जीवन में उतारने की आवश्यकता है।
ऐसा भोजन कभी न खाएं: भीष्म पितामह की चेतावनी
भीष्म पितामह ने अर्जुन को यह बताया कि कुछ प्रकार का भोजन व्यक्ति के शरीर और आत्मा के लिए हानिकारक होता है। उन्हें यह कहते हुए चेतावनी दी थी कि अगर ऐसा भोजन मिले तो उसे कभी न खाएं:
देर से बने और बासी भोजन
भीष्म पितामह ने कहा कि बासी या देर से बने हुए भोजन को कभी नहीं खाना चाहिए। यह भोजन शरीर में भारीपन और आलस्य पैदा करता है। पुराने या बासी भोजन में रस और पोषण की कमी होती है, जिससे शरीर को सही ऊर्जा और पौष्टिकता नहीं मिलती। इसके बजाय, ताजे और गर्म भोजन का सेवन करना चाहिए जो शरीर को सही पोषण प्रदान करता है।
अत्यधिक मसालेदार और तला-भुना भोजन
भीष्म पितामह ने यह भी कहा कि अत्यधिक मसालेदार, तला-भुना और चटपटा भोजन शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है। इस तरह के भोजन से शरीर में अधिक गर्मी पैदा होती है, जो पाचन तंत्र को कमजोर करती है और पेट में जलन, गैस और एसिडिटी जैसी समस्याएं उत्पन्न करती है। इसके बजाय, संतुलित और हल्का भोजन, जैसे उबला हुआ भोजन या सूप, पाचन के लिए लाभकारी होता है।
नशे से भरे खाद्य पदार्थ
उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी प्रकार के नशे के तत्व वाले भोजन, जैसे मांसाहार या मदिरा, से परहेज करना चाहिए। इनका सेवन न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि मानसिक शांति और स्पष्टता को भी बिगाड़ता है। भीष्म पितामह का मानना था कि व्यक्ति को हमेशा सात्विक और शुद्ध आहार का सेवन करना चाहिए जो मानसिक और शारीरिक रूप से उसे स्वस्थ रखे।
अन्याय से प्राप्त भोजन
एक और महत्वपूर्ण बात जो भीष्म पितामह ने अर्जुन को बताई, वह थी- कभी भी अन्याय से प्राप्त भोजन को न खाओ। यदि भोजन किसी गलत तरीके से प्राप्त किया गया हो, जैसे चोरी करके या किसी दुखी व्यक्ति से छीनकर, तो वह भोजन व्यक्ति के जीवन में अशुभ और दुर्भाग्य लाता है। शुद्ध और न्यायपूर्ण तरीके से प्राप्त भोजन ही शरीर और आत्मा को शांति प्रदान करता है।
साधारण से अधिक भोजन
भीष्म पितामह ने यह भी कहा कि अधिक भोजन करना, विशेष रूप से आवश्यकता से ज्यादा, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अत्यधिक भोजन से पाचन तंत्र पर दबाव पड़ता है और यह कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। वह यह मानते थे कि भोजन को केवल शरीर की आवश्यकता के अनुसार ही लिया जाना चाहिए, न कि सिर्फ स्वाद या मानसिक तृप्ति के लिए।
दूसरों से ज़बरदस्ती लिया गया भोजन
इसके अतिरिक्त भीष्म पितामह ने यह भी चेतावनी दी थी कि कभी भी किसी और से मजबूरी या ज़बरदस्ती लिया हुआ भोजन नहीं खाना चाहिए। जब भोजन को हंसी-खुशी और प्रेम से लिया जाता है, तब वह शरीर और मन दोनों के लिए स्वास्थ्यवर्धक होता है।