उदार विचारों वाले थे गांधी जी के राजनीतिक गुरु

punjabkesari.in Wednesday, Nov 29, 2017 - 01:51 PM (IST)

गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 1 दिसंबर को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के काटलुक गांव में हुआ था। बचपन में उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बचपन से ही मेहनती, परिश्रमी, निष्ठावान होने के कारण उन्होंने कानून की परीक्षा छोटी उम्र में ही उत्तीर्ण कर ली और न्यू इंग्लिश स्कूल में टीचर बन गए। इन्हीं दिनों विष्णु प्रभाकर शास्त्री, लोक मान्य तिलक, अगरकर, चिपलूगकर जैसे लोगों ने देश की सेवा का संकल्प लिया और शिक्षा का देश भर में प्रसार करने के लिए डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी का गठन किया। गोपाल कृष्ण गोखले इन लोगों से बहुत प्रभावित हुए और सारे सुख वैभव छोड़कर इस सोसाइटी के सदस्य बन गए। देश सेवा को अपने जीवन का अंग बना लिया। गोखले जी ने मन में ठान लिया था कि वह भारतीय बच्चों को सच्चा राष्ट्र सेवक बनाएंगे। बच्चों को देश प्रेम की शिक्षा देना और सेवा की भावना को क्रियात्मक रूप देने का रास्ता दिखलाने का उन्होंने प्रण कर लिया। इसी भावना को लेकर गोपाल कृष्ण गोखले के मन में मातृभूमि के प्रति अटूट निष्ठा हो गई। जब-जब देश की चिंता का अवसर आता वह अपने स्वास्थ्य की चिंता तक छोड़ देते थे। देश की समस्याओं को सुलझाना उनकी प्राथमिकता होती थी।


गोपाल कृष्ण गोखले उदार विचारों वाले थे। इसी कारण अपने सम सामयिक नेताओं विशेष कर लोकमान्य तिलक की गर्म राजनीति के साथ उनका कभी मेल नहीं हो सका। रानाडे के नर्म दल के साथ रहने के कारण तिलक जैसे गर्म विचारों वालों के साथ गोखले जी की सदैव टक्कर होती रही लेकिन, उन्होंने अपना धैर्य कभी नहीं छोड़ा। जो बात उनके मन को ठीक लगती उसे कहने में कभी डरते नहीं थे। यद्यपि उनकी बात-बात पर आलोचना होती रहती थी लेकिन, वह अपने धैर्य से कभी डगमगाए नहीं। गोखले कठिन से कठिन कार्य को हाथ में लेने से घबराते नहीं थे। पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखकर सार्वजनिक मंचों पर भाषण देकर वह भारतीय जनता को आजादी के लिए जागृत करते रहे। तत्कालीन मराठी पत्रिका ‘सुधारक’ में वह देश की राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं पर प्रकाश डालते रहे और देश को आजाद कराने के लिए लगातार संघर्ष भी करते रहे।


कठोर बात को भी वह कोमल शब्दों में कहने की क्षमता रखते थे। जिस बात को गोखले की अंतर्रात्मा ठीक समझती थी उससे उन्हें कोई डिगा नहीं सकता था। बंबई लैजिस्लेटिव कौंसिल में उन्होंने शासन संबंधी विविध समस्याओं का अध्ययन किया, अपनी गहरी तर्क शक्ति और भाषण के बल पर अंग्रेजों पर धाक जमा दी। किसानों के कर, भूमिकर संबंधी ज्यादतियों पर वह लगातार कौंसिल में आवाज उठाते रहे। इंपीरियल लैजिस्लेटिव के सदस्य चुने जाने के पश्चात उनकी प्रतिभा में पहले से ज्यादा निखार आ गया और देश के सर्वव्यापी नेता के रूप में उन्हें मान्यता मिलने लगी। नमक कर, सैनिक खर्च, यूनिवर्सिटी बिल इत्यादि के विरोध में आवाज बुलंद की। अंग्रेज सरकार को दबाव में आकर नमक कर घटाना पड़ा था। गोखले के कई सुझावों को मानने के लिए सरकार को विवश होना पड़ा। किसानों, दीन, दलितों के प्रति उनके दिल में दर्द रहता था। इन लोगों की भलाई को ध्यान में रखकर सरकार की कर और व्यय नीतियों को संशोधित करने के लिए सदा आवाज उठाते रहते थे। कलकत्ता अधिवेशन में नमक कर घटाने के लिए उन्होंने भारतीयों को बताया कि सरकार टैक्स के भार से किस प्रकार एक पैसे की नमक की टोकरी की कीमत पांच आन्ने करती है।

 

अंग्रेजों द्वारा भारत में हो रही दमन नीतियों का विरोध करते हुए उन्होंने जांच की मांग की। उनके विरोधी अंग्रेज शासक लार्ड कर्जन भी गोखले की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके। ईश्वर ने गोखले जी को असाधारण योग्यताएं प्रदान की थीं और उन्होंने अपने आपको नि:संकोच भाव से देश को अर्पण कर दिया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने तो गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मान लिया था। गांधी जी ने लिखा है कि राजनीति के क्षेत्र में जो स्थान गोखले जी ने मेरे हृदय में पाया वह कोई और नहीं पा सका। अंग्रेजों के कुशासन में देश की जो दुर्दशा हो रही थी गोखले जी ने उसका लंबा खाका खींचा। उन्होंने कहा आज इस देश की शासन व्यवस्था द्वारा जनता के सच्चे हितों को पीछे धकेल कर सैनिक सत्ता, नौकरशाही और पूंजीपतियों के हितों को पहला स्थान दिया जा रहा है। यह है एक देश के लोगों पर दूसरे देश के लोगों के शासन की दशा।उन्होंने गांधी जी के कहने पर कई विदेश यात्राएं भी कीं। विदेशों में रह कर मानवता की सेवा करते रहे। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने भारतीयों की दशा का अध्ययन किया। 

 


दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने लाखों रुपए चंदे के रूप में एकत्रित करके गांधी जी को भेजे। गोखले जी ने हर क्षेत्र में देश की सेवा की। अपनी सौम्यता, मेहनत, परिश्रम और सच्चाई से ही वे इतने महान बने। उनकी कलम में बहुत बल था। उनके भाषणों में ज्ञान और भाव के भंडार होने से सभी लोग उनका आदर किया करते थे।गोखले जी प्राय: कहते थे कि सार्वजनिक जीवन का आध्यात्मीकरण अनिवार्य है। हृदय स्वदेश प्रेम से ऐसा ओत-प्रोत होना चाहिए। उसकी तुलना में सब कुछ तुच्छ सा जान पड़े।
 


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