मार्गशीर्ष मास में ये चमत्कारी स्तोत्र पढ़ने से मिलता श्री कृष्ण का प्यार
punjabkesari.in Sunday, Dec 13, 2020 - 05:48 PM (IST)
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मार्गशीर्ष मास प्रारंभ होते ही अपनी वेबसाइट के जरिए हम आपको इससे जुड़ी लगभग जानकारी देते हैं आ रहे हैं। अब इसी बीच अब हम आपको बताने वाले हैं श्री कृष्ण का स्वरूप कहे जाने वाले मार्गशीर्ष मास में कौन सा स्तोत्र पढ़ना लाभदायक होता है। इस मास की हिंदू धर्म में अधिक विशेषता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जहां विष्णु सहस्त्रनाम, भगवद्गीता का पाठ करना लाभदायक होता है, उतना ही नहीं शुभ होता है गजेद्र मोक्ष का पाठ। इसके जप से न केवल श्री कृष्ण की कृपा मिलती है। बल्कि इसका पाठ सभी दिशाओं से भी शुभ फल दिलवाता है।
बल्कि ऐसा कहा जाता है कि इस चमत्कारी व शक्तिशाली पाठ को दिन में व्यक्ति को 2 से 3 दिन बार पढ़ना चाहिए। मगर गजेंद्र मोक्ष का पाठ है क्या इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, कुछ तो ऐसे भी लोग होंगे कि जिन्होंने कभी इसका नाम भी नहीं सुना होगा। तो अगर आप भी नहीं जानते हैं क्या है गजेंद्र मोक्ष का पाठ तो पढ़े आगे संपूर्ण पाठ-
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
गज और ग्राह लड़त जल भीतर, लड़त-लड़त गज हार्यो।
जौ भर सूंड ही जल ऊपर तब हरिनाम पुकार्यो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
शबरी के बेर सुदामा के तन्दुल रुचि-रुचि-भोग लगायो।
दुर्योधन की मेवा त्यागी साग विदुर घर खायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
पैठ पाताल काली नाग नाथ्यो, फन पर नृत्य करायो।
गिरि गोवर्द्धन कर पर धार्यो नन्द का लाल कहायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
असुर बकासुर मार्यो दावानल पान करायो।
खम्भ फाड़ हिरनाकुश मार्यो नरसिंह नाम धरायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
अजामिल गज गणिका तारी द्रोपदी चीर बढ़ायो।
पय पान करत पूतना मारी कुब्जा रूप बनायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
कौर व पाण्डव युद्ध रचायो कौरव मार हटायो।
दुर्योधन का मन घटायो मोहि भरोसा आयो ।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
सब सखियां मिल बन्धन बान्धियो रेशम गांठ बंधायो।
छूटे नाहिं राधा का संग, कैसे गोवर्धन उठायो ।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।
योगी जाको ध्यान धरत हैं ध्यान से भजि आयो।
सूर श्याम तुम्हरे मिलन को यशुदा धेनु चरायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।