Bhagavad Gita : मनुष्य पाप क्यों करता है ? भगवान कृष्ण का एक जवाब बदल सकता है जीवन

punjabkesari.in Thursday, Dec 11, 2025 - 01:22 PM (IST)

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Bhagavad Gita : महाभारत के युद्ध में जब भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने, तब उन्होंने उसे जीवन का वह अमूल्य ज्ञान दिया जिसे हम श्रीमद्भगवद्‍गीता के रूप में जानते हैं। यह उपदेश केवल उस युद्धभूमि तक सीमित नहीं था, बल्कि हर युग के लिए मार्गदर्शन देने वाला है। आज की दुनिया में भी इंसान अनेक चुनौतियों, संघर्षों और मानसिक उलझनों से घिरा रहता हैमाना जा सकता है कि उसका पूरा जीवन ही एक निरंतर युद्ध जैसा बन गया है। इन्हीं परिस्थितियों से जूझते हुए कई बार व्यक्ति गलत राह पर चला जाता है या पाप का भागीदार बन बैठता है। गीता में श्रीकृष्ण बताते हैं कि कौन-से कारण इंसान को अधर्म की ओर धकेलते हैं और साथ ही यह भी समझाते हैं कि सही ज्ञान, आत्म-संयम और विवेक से इन प्रवृत्तियों पर कैसे नियंत्रण पाया जा सकता है। इस प्रकार गीता का संदेश आज भी हमें यह सिखाता है कि यदि मन को साध लिया जाए और आसुरी प्रवृत्तियों पर रोक लगा दी जाए, तो जीवन के किसी भी युद्ध को जीतना संभव है।

Bhagavad Gita

अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा था:

केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः। अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥

हे वृष्णिवंशी कृष्ण ! वह कौन है, जो मनुष्य से बलपूर्वक, उसकी इच्छा के विरुद्ध भी पाप करवाता है, मानो कोई उसे जबरदस्ती उसमें लगा रहा हो ?

इसके उत्तर में भगवान श्री कृष्ण ने स्पष्ट रूप से बताया कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कोई और नहीं, बल्कि काम और क्रोध हैं। इसका अर्थ केवल शारीरिक इच्छाओं से नहीं है, बल्कि हर उस तृष्णा या लालसा से है जो इंद्रियों के सुख भोगने की प्रबल इच्छा से उत्पन्न होती है। जब कोई इच्छा उत्पन्न होती है, तो मनुष्य उसे पूरा करने के लिए विवश हो जाता है।

Bhagavad Gita

ज्ञान का आवरण
क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है और भ्रम से बुद्धि नष्ट हो जाती है। जब मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है, तो वह सही और गलत का अंतर नहीं कर पाता और अनजाने में पाप कर्मों में लीन हो जाता है। यह काम सबसे पहले मनुष्य की इंद्रियों को फिर मन को और अंत में बुद्धि को अपना निशाना बनाता है। यह इन सब के माध्यम से आत्मा के ज्ञान को ढक देता है।

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Content Editor

Prachi Sharma

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