Durga Kund Mandir Varanasi: काशी के दिव्य दुर्गा कुंड मंदिर में दर्शनों से भस्म हो जाते हैं कई जन्मों के पाप
punjabkesari.in Thursday, Oct 30, 2025 - 02:33 PM (IST)
 
            
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काशी की अद्भुत आस्था — दुर्गा कुंड का पौराणिक इतिहास
बाबा विश्वनाथ की पवित्र नगरी काशी (वाराणसी) में स्थित मां दुर्गा कुंड मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि यह शक्ति उपासना का एक अत्यंत प्राचीन स्थल भी है। काशी खंड के अनुसार, यह वही स्थान है जहां देवी दुर्गा ने शुंभ-निशुंभ का वध करने के बाद विश्राम किया था। उनके विश्राम से इस भूमि पर ऐसा दिव्य तेज उत्पन्न हुआ कि आज भी मां के दर्शन मात्र से मनुष्य के अनेक जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

दुर्गा कुंड मंदिर केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि शक्ति, आस्था और मोक्ष का संगम है। मां के एक दर्शन से ही असंख्य जन्मों के पाप भस्म हो जाते हैं। यह वही काशी है जहां शिव और शक्ति दोनों साक्षात विराजमान हैं। एक ओर बाबा विश्वनाथ और दूसरी ओर मां दुर्गा, जो भक्तों को जीवन-मुक्ति का वरदान देती हैं।
लाल पत्थरों से निर्मित यह भव्य मंदिर दुर्गा कुंड क्षेत्र में स्थित है, जो वाराणसी कैंट से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर के समीप स्थित दुर्गा कुंड को रक्त कुंड भी कहा जाता है क्योंकि इसकी उत्पत्ति एक दिव्य युद्ध के परिणामस्वरूप मानी जाती है।

देवी के प्राकट्य की कथा — रक्त से बना था दुर्गा कुंड
पौराणिक कथा के अनुसार, अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन ने काशी नरेश राजा सुबाहू की पुत्री से विवाह करने का संकल्प लिया था। स्वयंवर में विरोधियों ने युद्ध की चुनौती दी, तब सुदर्शन ने मां भगवती की आराधना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां आद्य शक्ति प्रकट हुईं और स्वयं युद्धभूमि में उतरकर सभी विरोधियों का संहार किया।
युद्धभूमि में इतना रक्त बहा कि वहां रक्त का कुंड बन गया। वही आज दुर्गा कुंड कहलाता है। कहा जाता है कि इस कुंड का जल पाताल लोक से आता है और यही कारण है कि यह कभी सूखता नहीं है।

मंदिर का निर्माण और स्थापत्य रहस्य
दुर्गा कुंड मंदिर का निर्माण रानी भवानी जी (1760 ई.) ने कराया था। उस समय लगभग 50,000 रुपए की लागत से यह भव्य मंदिर खड़ा किया गया। मंदिर का निर्माण बीसा यंत्र (20 कोणों वाली यांत्रिक संरचना) पर हुआ है, जो शक्तिपीठों की स्थापत्य परंपरा से जुड़ा है।
मंदिर में मां दुर्गा यंत्र रूप में विराजमान हैं। यहां प्रतिमा नहीं बल्कि मुखौटे और चरण पादुकाओं की पूजा होती है। यह स्थान यांत्रिक पूजा, हवन, तंत्र साधना और शक्ति उपासना के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है।
कुक्कुटेश्वर महादेव और अद्भुत कथा
मंदिर से जुड़ी एक और अद्भुत कथा के अनुसार, प्राचीन काल में कुछ लुटेरों ने मां से वर मांगा कि कार्य सफल होने पर वे नरबलि चढ़ाएंगे। सफलता के बाद वे मंदिर के पुजारी को बलि हेतु पकड़ लाए। जब पुजारी ने मां की पूजा पूरी कर बलि स्वीकार की, मां दुर्गा स्वयं प्रकट हुईं और पुजारी को पुनर्जीवित कर दिया।
पुजारी ने माता से मोक्ष की प्रार्थना की, तब मां ने वरदान दिया, “जो भी मेरे दर्शन के बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा, उसकी पूजा अधूरी रहेगी।” यही पुजारी आज कुक्कुटेश्वर महादेव के रूप में पूजित हैं। इसलिए कहा जाता है। मां दुर्गा के दर्शन कुक्कुटेश्वर महादेव के बिना अधूरे हैं।
धार्मिक महत्त्व और आस्था
यह मंदिर साक्षात देवी के प्रकट स्थल के रूप में जाना जाता है, इसलिए यहां प्रतिमा पूजा नहीं, चिह्न पूजा की परंपरा है। सावन मास में यहां भव्य मेला लगता है। मंदिर परिसर में दैनिक हवन, यंत्र पूजा और तंत्र साधना की जाती है।


 
                    