Dharmrajeshwar Temple story: अद्भुत है यह मंदिर, जिसका शिखर पहले बना और नींव बाद में
punjabkesari.in Friday, Oct 27, 2023 - 10:25 AM (IST)

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Dharmrajeshwar Temple story: भारत में प्राचीन काल में स्थापत्य कला कितनी विकसित थी, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे प्राचीन मंदिर देते हैं। इनमें से कुछ की वास्तुकला तथा निर्माण तकनीक देख कर आज भी इंजीनियर हैरान रह जाते हैं कि उस समय इस तरह के मंदिर का निर्माण न जाने कैसे किया गया होगा। मध्य प्रदेश के मंदसौर जिला मुख्यालय से 106 किलोमीटर दूर गरोठ तहसील का धर्मराजेश्वर मंदिर भी ऐसा ही एक अद्भुत उदाहरण है।
इस मंदिर को विशाल चट्टान काटकर बनाया गया है। इस अद्भुत और अकल्पनीय मंदिर का निर्माण ही उल्टे तरीके से हुआ है। इसमें शिखर पहले बना और नीचे का हिस्सा यानी नींव का निर्माण बाद में हुआ। गुफा मंदिर के नाम से भी पहचाने जाने वाला यह मंदिर वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। धर्मराजेश्वर मंदिर की वास्तुकला एलोरा के कैलाश मंदिर के समान है। यह मंदिर एकात्मक शैली में बना है। केंद्र में 14.53 मीटर की ऊंचाई और 10 मीटर की चौड़ाई वाला एक बड़ा पिरामिड के आकार का मंदिर है। मंदिर के शिखर को उत्तर भारतीय शैली में डिजाइन किया गया है। मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार को भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की मूर्तियों से उकेरा गया है।
धर्मराजेश्वर मंदिर भले ही जमीन के अंदर बना है, लेकिन सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह तक जाती है। ऐसा लगता है मानो भगवान सूर्य घोड़ों पर सवार होकर शिव जी और विष्णु जी के दर्शन के लिए आए हों। मंदिर में विष्णु जी के अलावा शिव जी की प्रतिमा है। इनके अलावा शिवलिंग भी स्थापित है लेकिन पूरे मंदिर में शिव जी के वाहन नंदी की प्रतिमा नहीं है, इसलिए यह ‘हरिहर’ मंदिर है। ‘हरि’ का मतलब भगवान-विष्णु और ‘हर’ से महादेव है।
ऐसी मान्यता है कि शिवरात्रि के अवसर पर यहां रात रुकने से मोक्ष मिलता है। मंदिर के करीब पहुंचने तक यह अहसास नहीं होता है कि यहां कोई मंदिर भी होगा। मंदिर में दर्शन के लिए आपको जमीन के 9 फुट नीचे जाना होता है। सीढ़ियां उतरकर नीचे पहुंचने पर दोनों बगल में बड़ी-बड़ी चट्टानों से बनी दीवारों के बीच करीब 5 फुट चौड़ा सुरंगनुमा गलियारा है, जिससे गुजरते ही मंदिर सामने नजर आता है। इसके गर्भगृह में ऊपर भगवान विष्णु की प्राचीन प्रतिमा और तलघर में बड़ा-सा शिवलिंग स्थापित है। मुख्य मंदिर के आसपास सात छोटे मंदिर हैं। इनमें अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां विराजित हैं। मंदिर के बाई ओर ढेरों गुफाएं हैं, जिनमें भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमाएं आज भी इतिहास बयां कर रही हैं। मंदिर का निर्माण लेटराइट पत्थर पर हुआ है।
पिरामिड आकार के इस मंदिर की दीवारों पर भगवान गणेश, लक्ष्मी, पार्वती, गरुड़ महाराज की मूर्तिया विराजित हैं। मंदिर के बारे में कोई पुगता प्रमाण तो नहीं है, लेकिन इतिहासकार मंदिर के निर्माण को 8वीं शताब्दी का मानते हैं। इतिहासकारों के अनुसार मंदिर को राष्ट्रकूट नरेशों द्वारा बनवाया गया। हालांकि, इतिहासकारों की इसे लेकर एक राय नहीं है। हां, वे इसे ‘रॉक कट टै पल’ (‘रॉक कट’ का मतलब होता है पत्थर की चट्टान को तराश कर की गई कारीगरी) जरूर मानते हैं। कई स्थानीय लोग इसे पांडवों द्वारा निर्मित मंदिर मानते हैं, लेकिन कई इतिहासकार इसे जैन और बौद्ध धर्म से जुड़ा स्थल भी कहते हैं। राजेश्वर मंदिर के ठीक नीचे पहाड़ी के निचले छोर पर करीब 170 छोटी-बड़ी गुफाएं हैं। बताया जाता है कि एक अंग्रेज कर्नल टॉड ने इन्हें सबसे पहले देखा था।