Mahabharat: 18 दिनों की लड़ाई के बाद कैसे पांडवों को मिली थी जीत!

punjabkesari.in Thursday, Nov 10, 2022 - 04:54 PM (IST)

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महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था। दोनों ओर की सेनाएं सुसज्जित थीं। युधिष्ठिर आदि पांचों पांडव भी अपने-अपने रथों पर अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित खड़े थे। उधर दुर्योधन भी विशाल सेना के साथ खड़ा था। तभी अचानक पांडव नरेश धर्मराज युधिष्ठिर नंगे पांव ही कौरव सेना की ओर चल दिए।
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कौरवों को लगा कि युधिष्ठिर आत्म समर्पण के लिए आ रहे हैं। धर्मराज के पीछे-पीछे उनके चारों भाई भी चल दिए। युधिष्ठिर सबसे पहले अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास पहुंचे और बोले-गुरुदेव! युधिष्ठिर आपको प्रणाम करता है और आप ही के विरुद्ध आपसे युद्ध की अनुमति मांगता है। गुरु द्रोणाचार्य बहुत खुश हुए और बोले बेटा! तुम युद्ध करो। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। तुम्हारी विजय अवश्य होगी।
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द्रोणाचार्य से आशीर्वाद लेकर पांचों पांडव पितामह के पास पहुंचे। उन्हें भी प्रणाम करने के बाद धर्मराज ने पितामह से उनके विरुद्ध युद्ध करने की आज्ञा मांगी। महान शूरवीर पितामह का स्वर गूंजा-बेटा! तेरी विजय हो। युधिष्ठिर ने प्रश्र किया-आप तो मेरे विरुद्ध हैं अत: मेरी विजय कैसे होगी।
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भीष्म पितामह बोले, बेटा! यदि तू बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त किए बिना युद्ध करने लग जाता तो मैं तुझे श्राप दे देता, जिससे निश्चय ही तेरी पराजय होती। अब मैं तुम पर प्रसन्न हूं। समय आने पर मैं स्वयं अपने पर विजय प्राप्त करने का उपाय तुझे बता दूंगा। अठारह दिनों की भीषण लड़ाई के बाद पांडवों की जीत हुई। यह था बड़ों को प्रणाम करके उनके आशीर्वाद व दुआओं का चमत्कार। अत: हम भी बड़ों की दुआएं लें, जो वक्त बेवक्त हमारे काम आएं।


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Content Writer

Jyoti

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