चाणक्य नीतिः बचें Non-Veg के वार से

punjabkesari.in Monday, Mar 11, 2019 - 01:06 PM (IST)

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हर व्यक्ति अच्छी सेहत और बल पाने के लिए बहुत तरह चीज़ें लेता है, जैसे कि अन्न, दूध, सब्जियां, घी आदि। आचार्य चाणक्य के अनुसार खाने में ऐसी बहुत सी चीज़ों का उपयोग होता है जिनको खाने से शारीरिक बल मिलता है। कहते हैं कि खाने की हर चीज़ से मिलने वाली ऊर्जा का अनुपात अलग-अलग होता है। तो आइए जानते हैं उन चीज़ों के बारे में जिन्हें लेने से हमारे शरीर को ताकत मिलती है। 

श्लोकः
अन्नाद्दशगुणं पिष्टं पिष्टाद्दशगुणं पय:।
पयसोथऽष्टगुणं मांसं मांसाद्दशगुणं घृतम्।।
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इस श्लोक में आचार्य कहते हैं कि हमारे शरीर के लिए खड़े अन्न में बहुत बल होता है, लेकिन खड़े अन्न से भी दस गुना अधिक बल उसके आटे में होता है। आटे से बनी रोटियां पचाने में हमारे पाचन तंत्र को अधिक सुविधा रहती है। इस कारण खड़े अन्न से अधिक उसके आटे से शरीर ज्यादा ऊर्जा ग्रहण कर पाता है। यह ऊर्जा व्यक्ति को दिनभर काम करने के लायक बनाए रखती है।
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इस नीति के अनुसार अन्न के आटे से भी दस गुना अधिक बल दूध में होता है। ऐसा माना गया है कि भैंस के दूध से गाय का दूध अधिक पौष्टिक और बल देने वाला होता है। यदि हम नियमित रूप से दूध का सेवन करते हैं तो कई प्रकार के रोगों से बचे रहते हैं। दूध स्त्री और पुरुष, दोनों को समान रूप से लाभ पहुंचाता है। गाय के दूध में कई ऐसे तत्व होते हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। दूध सुपाच्य भी होता है यानि आसानी से पच जाता है।
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चाणक्य कहते हैं कि दूध बल देने वाला होता है, लेकिन मांसाहार में दूध से आठ गुना अधिक बल होता है। मांसाहार को प्रकृति के विरुद्ध माना गया है। शास्त्रों के अनुसार किसी भी जीव की हत्या करना पाप माना जाता है और इसी वजह से मांसाहार से बचना चाहिए। 

चाणक्य ने मांसाहार से अधिक बल देने वाली एक और शाकाहारी चीज़ बताई है। मांसाहार का सेवन करने से बेहतर से उस चीज का सेवन किया जाए। यहां दिए गए श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि मांसाहार से भी दस गुना अधिक बल गाय के दूध से बने घी में होता है। 
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घी बहुत ही पौष्टिक और शरीर को बल प्रदान करने वाला होता है। अगर नियमित रूप से शुद्ध घी का सेवन किया जाए तो व्यक्ति लंबे समय तक बुढ़ापे में होने वाले रोगों से बचे रह सकता है। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
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