Ashtalakshmi Stotram: अष्टलक्ष्मी के इस मंत्र का जप करें और देखें कैसे आर्थिक परेशानियां होंगी खत्म
punjabkesari.in Sunday, Aug 03, 2025 - 12:05 PM (IST)

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Ashtalakshmi Stotram: आर्थिक तंगी और धन की कमी आज के समय में एक आम समस्या बन चुकी है। चाहे नौकरीपेशा व्यक्ति हो या व्यवसायी, जीवन में कभी न कभी आर्थिक संकट का सामना सभी को करना पड़ता है। ऐसे समय में जब सारे प्रयास असफल हो रहे हों, तो आध्यात्मिक मार्ग एक सशक्त सहारा बन सकता है। हिन्दू धर्म में मां लक्ष्मी को धन, वैभव, ऐश्वर्य और समृद्धि की देवी माना गया है। विशेष रूप से अष्टलक्ष्मी की उपासना आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ
आदिलक्ष्मि
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहॊदरि हेममये
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायनि, मञ्जुल भाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ॥ 1 ॥
धान्यलक्ष्मि
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि, वैदिक रूपिणि वेदमये
क्षीर समुद्भव मङ्गल रूपिणि, मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि सदापालय माम् [परिपालय माम्] ॥ 2 ॥
धैर्यलक्ष्मि
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि, मन्त्र स्वरूपिणि मन्त्रमये [जयवरवर्णिनि]
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधु जनाश्रित पादयुते
जय जयहे मधु सूधन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥ 3 ॥
गजलक्ष्मि
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणि पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ॥ 4 ॥
सन्तानलक्ष्मि
अयिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि, रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारधि लोकहितैषिणि, स्वरसप्त भूषित गाननुते । [सप्तस्वर]
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, सन्तानलक्ष्मी त्वं पालय माम् [परिपालय माम्] ॥ 5 ॥
विजयलक्ष्मि
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर, भूषित वासित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शङ्करदेशिक मान्यपदे
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी सदा पालय माम् [परिपालय माम्] ॥ 6 ॥
विद्यालक्ष्मि
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥ 7 ॥
धनलक्ष्मि
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमि, दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम, शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पूराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम् ॥ 8 ॥
फलशृति
श्लो॥ अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णुवक्षः स्थला रूढे भक्त मोक्ष प्रदायिनि ॥
श्लो॥ शङ्ख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलं शुभ मङ्गलम् ॥
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पाठ के लाभ:
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है। अष्टलक्ष्मी का अर्थ है मां लक्ष्मी के आठ स्वरूप आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धैर्य लक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी और धान्य लक्ष्मी जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में समृद्धि प्रदान करती हैं। इन सभी स्वरूपों की उपासना से व्यक्ति को न केवल भौतिक सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति, और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, बल्कि मानसिक शांति, आत्मबल, संतान सुख, शिक्षा में सफलता और जीवन की सभी बाधाओं पर विजय भी प्राप्त होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से शुक्रवार, पूर्णिमा, नवरात्रि, या दीपावली जैसे पवित्र अवसरों पर पढ़ना शुभ माना जाता है। शांत और पवित्र मन से मां लक्ष्मी के सामने दीप जलाकर यदि अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का नियमित पाठ किया जाए, तो घर में नकारात्मकता समाप्त होती है, वास्तु दोष दूर होते हैं और गृह लक्ष्मी का वास बना रहता है। यह स्तोत्र न केवल भौतिक समृद्धि देता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में संतुलन भी स्थापित करता है।