बढ़ती असहनशीलता भारत के भविष्य के लिए खतरनाक

punjabkesari.in Thursday, Jun 02, 2022 - 04:14 AM (IST)

ऐसा दिखाई देता है कि सरकारों द्वारा आलोचना के खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता या असहनशीलता का रुझान अब आम आदमी तथा लोगों तक भी नीचे पहुंच रहा है।  हम एक समाज के तौर पर उन लोगों के प्रति और अधिक असहिष्णु बन रहे हैं जो विरोधी विचार रखते हैं और यहां तक कि ऐसे लोग भी जो अलग मत का पालन करते हैं। 

सोशल मीडिया पर वायरल एक हालिया वीडियो जिसमें एक युवा को लगातार एक बुजुर्ग व्यक्ति को थप्पड़ मारते दिखाया गया है, नवीनतम उदाहरण है कि हमारा समाज तेजी से बीमार हो रहा है। बुजुर्ग व्यक्ति, जिसे यह स्वीकार करने के लिए कहा गया था कि उसका नाम मोहम्मद है, आखिरकार पिटाई की ताव न सहते हुए मर गया। जिस व्यक्ति को पीटते हुए दिखाया गया वह एक पार्षद (कौंसलर) का पति था। इस बात का खुलासा बाद में हुआ कि मृतक व्यक्ति एक हिंदू था और वास्तव में एक मानसिक रोगी था। वह उस बात को  समझने में असमर्थ था जो उसकी पिटाई करने वाला जानने की मांग कर रहा था। 

और भी अधिक परेशान करने वाली बात यह थी कि कोई व्यक्ति उस राक्षस को बुजुर्ग तथा मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को पीटने से रोकने की बजाय वीडियो शूट कर रहा था। यदि मारा गया व्यक्ति मुसलमान भी होता तो अपराध किसी भी मायने में कम नहीं था। यह सोच कर भी हैरानी होती है कि इसका क्या परिणाम होता यदि हमलावर एक मुसलमान तथा पीड़ित किसी अन्य धर्म का व्यक्ति होता? नागरिकों को अवश्य इस मामले पर नजर रखनी और ध्यान रखना चाहिए कि क्या यह राक्षस कैद अथवा मुकद्दमे या न्यायिक प्रणाली से आजाद रहते हुए घूमता रहता है जो उसे जीवन भर के लिए जेल में डाल सकता है। 

यह मात्र ऐसे घटनाक्रमों में से एक है। ऐसे भी चित्र हैं जिनमें गुंडों के एक समूह द्वारा एक दलित को पीटते हुए दिखाया गया है तथा एक अन्य जंजीरों से बंधा बैठा है। मानसिक रूप से अस्वस्थ एक अन्य व्यक्ति को कपूरथला में एक गुरुद्वारे के बाहर पीटा गया। ऐसे अन्य कई उदाहरण हैं जिनमें कानून के किसी डर के बिना स्पष्ट तौर पर सार्वजनिक रूप से लिचिंग की गई। सड़कों पर मारपीट के मामलों (रोड रेज) में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। हाल ही में ‘सतर्कता समूह’ द्वारा निरंतर एक अभियान चलाने की मांग की गई जिसमें उन लोगों के खिलाफ जोरदार आलोचनात्मक कैंपेन छेड़ी जाए जिन्हें वे ‘देशद्रोही’ मानते हैं। यहां तक कि प्रतिष्ठित लेखक तथा अन्य शख्सियतें, जो इस रुझान की आलोचना करते हैं, लोकतंत्र के तथाकथित रखवालों के आसान शिकार बनते हैं। 

दुर्भाग्य से उन्हें राष्ट्रवाद तथा देशभक्ति के बीच कोई अंतर नहीं पता चलता। उनके लिए सत्ता अधिष्ठान अथवा नीतियों की कोई भी आलोचना देश की एकता तथा अखंडता के लिए एक खतरा बन जाती है। जो कोई भी उनकी वैचारिक प्रक्रिया पर प्रश्र उठाता है, राष्ट्रद्रोही बनने का पात्र हो जाता है। जहां नेता लोग अपनी नजरें फेर लेने को ही अधिमान देते हैं, जब गुंडे तथा वे लोग जो उनके समर्थक होने का दावा करते हैं ‘राष्ट्रविरोधी तत्वों’ के खिलाफ विषैले हमले शुरू करते हैं, सोशल मीडिया मंचों का फैलाव उन्हें ऐसी पहुंच प्रदान करता है जैसी पहले कभी नहीं थी। सत्ता अधिष्ठान के खिलाफ कोई भी विपरीत टिप्पणी गाली-गलौच तथा हिंसक हमलों का कारण बनती है।

लेखकों को न केवल ‘बिकाऊ’ का तमगा दे दिया जाता है बल्कि उन पर चुनिंदा गालियों की बौछार भी की जाती है। कई बार तो जाने-पहचाने लेखकों द्वारा गैर-विवादास्पद टिप्पणियों को भी आलोचना का शिकार बनना पड़ता है। यह उचित समय है कि नेता लोग ऐसे तानाशाहीपूर्ण रुझानों पर रोक लगाने तथा ऐसे लोगों पर लगाम कसने के लिए आगे आएं जो शिष्टता तथा सामाजिक तौर पर स्वीकार्य व्यवहार की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं। यहां तक कि अपने समर्थकों के ऐसे व्यवहार अथवा कार्रवाइयों पर चुप्पी साधे रखना भी इस बात की पुष्टि करता है कि वे क्या चाहते हैं? जरूरत इस बात की है कि देश का शीर्ष नेतृत्व ऐसी घटनाओं की स्पष्ट आलोचना करेगा।-विपिन पब्बी 
 


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