भाजपा सरकार की गुलाम बन गईं सरकारी एजैंसियां

punjabkesari.in Tuesday, Mar 05, 2024 - 05:58 AM (IST)

हालांकि, कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं हो सकते हैं कि देश के लोगों ने राज्य व्यवस्था को अलोकतांत्रिक और असहिष्णु व्यवस्था में बदलने का रास्ता अपना लिया है। कुछ दिन पहले, चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर के चुनाव की सरल चुनाव प्रक्रिया में, पीठासीन अधिकारी ने कांग्रेस और ‘आप’ के संयुक्त उम्मीदवार को हराने के लिए सभी नियमों और विनियमों की बेशर्मी से धज्जियां उड़ा दीं और भाजपा नेता को मेयर की कुर्सी पर बैठा दिया। चुनाव परिणाम के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय को भी कहना पड़ा कि ‘इस तरह से लोकतंत्र की हत्या बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी।’ 

सत्तारूढ़ मोदी-शाह सरकार के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण या सरकार की नीतियों की आलोचना के कारण, संविधान में बोलने, लिखने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देने वाली धाराओं को रद्द किए बिना, किसी भी व्यक्ति को जब चाहे एजैंसियां गिरफ्तार कर सकती हैं। पकड़े जाने के आरोप में देशद्रोह और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसे शब्द जोडऩा आम बात हो गई है। 

केंद्रीय एजैंसियां अधिकारियों के आदेश पर किसी भी व्यक्ति को विदेश में अवैध रूप से धन जमा करने के लिए अपराधी या भ्रष्ट व्यक्ति के रूप में गिरफ्तार कर सकती हैं। कई मामलों में, खासकर यू.ए.पी.ए. के तहत दर्ज मामलों में दोषों को साबित करने का बोझ भी मूल निवासी पर डाला जाता है। सी.बी.आई., ई.डी., आयकर विभाग जैसी सरकारी एजैंसियां जिन पर कभी आम आदमी को भरोसा था, अब पूरी तरह से भाजपा सरकार की गुलाम बन गई हैं। तर्क, नैतिकता, कत्र्तव्य और संवैधानिक जिम्मेदारियों को सरकारी एजैंसियों ने लगभग त्याग दिया है। संघ परिवार और भाजपा का देश को ‘कांग्रेस मुक्त’ करने का नारा अब और आगे बढ़कर पूरे विपक्ष को खत्म करने की हद तक पहुंच गया है। विभिन्न राजनीतिक दलों का अस्तित्व और राजनीतिक गतिविधियों का संगठन लोकतांत्रिक व्यवस्था का ‘मूल’ आधार है। मोदी सरकार इस ‘बुनियादी’ आधार को खत्म करना चाहती है। 

पिछले 10 वर्षों में विभिन्न दोषों के अंतर्गत दर्ज मामलों और इन मामलों से संबंधित गिरफ्तारियों में से 95 प्रतिशत सरकार विरोधी दलों के नेताओं की रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा नेताओं ने विपक्षी दलों के जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं, जब वे ‘भाजपा’ में शामिल हो जाते हैं तो उनके सारे पाप धुल जाते हैं। असम के मौजूदा मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री ऐसे नेताओं में से हैं जो भाजपा के शुद्धिकरण अनुष्ठान के बाद ‘पाक-पवित्र’ बन गए हैं। गैर-भाजपा राज्य सरकारों के प्रमुख, विपक्षी दलों के नेता और सरकार की नीतियों का विरोध करने वाले बुद्धिजीवी, स्तंभकार और कार्यकत्र्ता हमेशा केंद्रीय एजैंसियों के राडार पर रहते हैं। 

अब इस कैटेगरी में अदालतों में सेवाएं दे रहे ‘जज’ भी शामिल हो गए हैं। सुप्रसिद्ध लेखक, मानवाधिकारों के हिमायती और सच्चे चरित्र के धनी हर्ष मंदर के आवास और कार्यालय पर की जा रही सी.बी.आई. द्वारा छापेमारी पर लोकतांत्रिक ताकतों और जागरूक लोगों ने गहरी चिंता व्यक्त की है।  सभी भ्रष्ट व्यक्तियों को कानून के अनुसार दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन इन अपराधों में सिर्फ विपक्षी दलों के नेता ही शामिल नहीं हैं, बल्कि भाजपा के कई नेता भी राजनीति को ‘लाभ का धंधा’ मानकर अरबों रुपए के काले धन के ‘मालिक’  बन गए हैं। ‘सबका साथ-सबका विश्वास’ का नारा सिर्फ जपने का मंत्र नहीं है, बल्कि इसका प्रमाण सत्ताधारियों के कार्यों में मिलना चाहिए, जो भाजपा नेताओं के आचरण में बिल्कुल भी नजर नहीं आता। दल-बदल जैसे राजनीतिक कोढ़ को विधानसभाओं में विपक्षी दलों के सदस्यों को प्रलोभन देकर या खरीद-फरोख्त के जरिए उन्हें भागीदार बनाया जा रहा है। विपक्षी दलों द्वारा अपने विधायकों को इस अपराध से बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों पर ले जाना हमारे लोकतंत्र का मजाक बन गया है। 

आज भारत के लोगों के मन में एक-दूसरे के प्रति नफरत और अविश्वास का माहौल है। सरकार की नीतियों और विचारधारा का विरोध करने वाला हर व्यक्ति और संगठन भय के माहौल में रहता है। समाज में सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने के लिए धार्मिक स्थलों को अपवित्र करने, धार्मिक जलूसों पर पत्थर फैंकने, थूकने और दंगे करने जैसी अफवाहें फैलाकर सांप्रदायिक दंगे भड़काने की साजिशें ‘भाड़े के लोगों’ द्वारा रची जा रही हैं।-मंगत राम पासला


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