भाजपा की लॉन्ड्री मशीन में कुछ नेता ‘सफेद’ तो कुछ ‘बेदाग’ हो गए

punjabkesari.in Sunday, Mar 31, 2024 - 05:03 AM (IST)

चेतावनी के संकेत स्पष्ट थे। विपक्षी दल यह भांपने में सक्षम थे कि क्या होने वाला है, लेकिन लगता है कि सलाहकारों ने अपने नेताओं को रोक रखा है। तमिलनाडु को छोड़कर, युद्ध के लिए तैयार सैनिकों को तुरंत युद्ध के मैदान में नहीं भेजा गया। पश्चिम बंगाल में ‘इंडिया’ गठबंधन अभी अभी पैदा हुआ था कि बिहार में नीतीश कुमार की पेटेंट कलाबाजी ने तैयारियों को पटरी से उतारने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। महाराष्ट्र में, सहयोगी दल सीटों के बंटवारे पर बहस कर रहे हैं, जबकि भाजपा विपक्षी खेमे में नेताओं की खरीद-फरोख्त में व्यस्त है। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस एकजुट हैं, लेकिन दिल्ली और झारखंड अभी तक लड़ाई में शामिल नहीं हुए हैं। 

जबकि सेनाएं तैयार हैं, जनरल सलाखों के पीछे है। यह केवल तमिलनाडु में ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच लड़ाई है और विरोधी दल सचमुच ‘अच्छी शुरूआत तो आधा काम’ वाली कहावत याद दिलाने में लगे हैं। कर्नाटक, तेलंगाना, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे अन्य प्रमुख युद्ध क्षेत्रों में, यह कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। इसके विपरीत, ओडिशा और आंध्र प्रदेश किसी पूर्व-लिखित नाटक के मंच की तरह प्रतीत होते हैं, वास्तविक युद्ध के मैदान की तरह नहीं। 

भाजपा ने अपना पूरा हथियार झोंक दिया है। शीर्ष पर असंवैधानिक चुनावी बांड (ई.बी.) के माध्यम से एकत्र किए गए धन का विशाल ढेर है। ई.बी. के बारे में सच्चाई जिसे मैंने वैध रिश्वतखोरी के रूप में वॢणत किया था, अब खुले में है। ऐसे कई मामले हैं जहां तलाशी/गिरफ्तारी हुई, बांड खरीदे गए और दान किए गए, बांड भुनाए गए और मामलों को दफन कर दिया गया या एहसान किया गया (लाइसैंस, अनुबंध)। तारीखें कहानी बयां करती हैं। एक सरल सीधी रेखा बिंदुओं को जोड़ेगी। समाचार पत्रों, टी.वी. और बिलबोर्डों में विज्ञापनों के माध्यम से विशाल युद्ध सामग्री  को तैनात किया गया है। भाजपा असमान खेल मैदान पर खेल रही है। 

अगला ऑपरेशन लोटस है, जो भाजपा की एक और पेटेंट कवायद है। दलबदल को प्रोत्साहित करना और दलबदलुओं को टिकट देना। मुझे बताया गया है कि भाजपा अंतत: 400 से कुछ अधिक उम्मीदवारों को नामांकित करेगी जिनमें से 50 तक उम्मीदवार दलबदलू होंगे इससे राज्य सरकारों को अस्थिर किया जाएगा। शस्त्रागार में एक घातक हथियार ‘गिरफ्तारी और नजरबंदी’ है। निशाने पर 2 मुख्यमंत्री, एक उपमुख्यमंत्री, कई राज्य मंत्री, मुख्यमंत्रियों और अन्य नेताओं के परिवारों के सदस्य और विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता हैं। वर्तमान में, संसद के दोनों सदनों में भाजपा के 383 सांसद, 1481 विधायक और 163 एम.एल.सी. हैं। 

इनमें पूर्व गैर-भाजपा नेता भी शामिल हैं जो विशाल लॉन्ड्री मशीन में ‘सफेद’ हो गए और शुद्ध और बेदाग हो गए। मुझे नहीं पता कि 2027 व्यक्तियों में से किसी के खिलाफ कोई जीवंत और वर्तमान जांच है या नहीं। यदि कोई है, तो यह दुर्लभ अपवाद और अच्छी तरह से संरक्षित रहस्य होना चाहिए। राज्य सरकारों के कामकाज में बाधा डालने के लिए राज्यपालों का इस्तेमाल किया जा रहा है। तमिलनाडु के राज्यपाल ने राज्य सरकार द्वारा विधान सभा में तैयार किया गया भाषण पढऩे से इंकार कर दिया। एक अवसर पर वह विधानसभा की कार्रवाई से बहिर्गमन कर गए। उन्होंने मुख्यमंत्री की ‘सहायता और सलाह’ के बावजूद किसी व्यक्ति को मंत्री पद की शपथ दिलाने से इंकार कर दिया। 

केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के राज्यपालों की मुख्यमंत्रियों के साथ बार-बार नोक-झोंक होती रहती है। तेलंगाना की राज्यपाल (पुडुचेरी की सह उपराज्यपाल) व्यावहारिक रूप से कई महीनों तक तमिलनाडु में रहीं और जिस दिन लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हुई, उन्होंने बिना समय गंवाए अपने पद से इस्तीफा दे दिया और भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडऩे का इरादा घोषित कर दिया! राज्यपालों ने विधेयकों पर सहमति देने से इंकार कर दिया है या अनिश्चित काल के लिए रोक दिया है। भाजपा शासित राज्यों में ऐसे असंवैधानिक कृत्य नहीं होते। 

संविधान के साथ विश्वासघात : दूसरा हथियार है राज्य सरकारों को अस्थिर करना। दिल्ली की सरकार अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को मंत्रियों  और मुख्यमंत्री के आदेशों की अवहेलना करने के आदेश से पंगु हो गई है। केरल और पश्चिम बंगाल जैसी राज्य सरकारों को किसी न किसी बहाने से धनराशि रोक दी गई है। किसी न किसी शर्त के उल्लंघन का हवाला देकर गैर-भाजपा राज्य सरकारों की उधार सीमा में कटौती की गई है। अनिर्दिष्ट आधारों पर तमिलनाडु को आपदा राहत सहायता देने से इंकार कर दिया गया है। 

केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य के पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति में यू.पी.एस.सी. अहम भूमिका निभाए। राज्य के राज्यपाल और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के बीच राज्य वित्त पोषित विश्वविद्यालयों के उप-कुलपतियों की नियुक्ति के राज्य सरकार के अधिकार पर अंकुश लगा दिया गया है। परिणामस्वरूप, केंद्र सरकार के प्रति निष्ठा रखने वाले सत्ता केंद्र राज्यों में उभरे हैं और राज्य सरकारों के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं। राज्य की स्वायत्तता का लगातार क्षरण हो रहा है। आर.एस.एस.-भाजपा एक एजैंडे से प्रेरित हैं। आर.एस.एस. के नेताओं का मानना है कि उन्होंने काफी लंबे समय तक इंतजार किया है और लोकसभा चुनाव में जीत उनके एजैंडे को पूरा करने के लिए लॉन्च पैड होनी चाहिए। 

एक राष्ट्र-एक चुनाव, समान नागरिक संहिता (यू.सी.सी.), नागरिकता संशोधन अधिनियम (सी.ए.ए.), भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन, कृषि कानून और पूजा स्थल अधिनियम को निरस्त करना भाजपा के एजैंडे में शामिल था। भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में कुछ और खुलासे हो सकते हैं। संविधान पर यह अंतिम हमला होगा।-पी. चिदम्बरम


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