‘सरकारी पुरस्कार’ से ‘पीपुल्स पुरस्कार’ तक का सफर

punjabkesari.in Thursday, Apr 25, 2024 - 05:57 AM (IST)

 भारत में सदियों से योग्यता और प्रतिभा को पुरस्कृत तथा सम्मानित करने की समृद्ध परंपरा रही है। इसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए 1954 में स्थापित, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक, पद्म पुरस्कार वह प्रतिष्ठित पुरस्कार है जो उन गतिविधियों या विषयों के सभी क्षेत्रों में उपलब्धियों को मान्यता देने के लिए थे जहां ‘सार्वजनिक सेवा’ का तत्व शामिल हो। किन्तु 60 वर्षों से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी, इन पुरस्कारों का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ क्योंकि पद्म पुरस्कार अधिकतर संभ्रांत वर्ग अथवा कुलीन वर्ग के सदस्यों या दिल्ली में सत्ता के गलियारों से जुड़े कुछ चुनिंदा लोगों को नामांकित और सम्मानित किए जाने के लिए दिए जाते थे। इसमें कोई आश्चर्य नहीं, भारत रत्न के बाद इन सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों को देने में कई योग्य भारतीयों को नजरअंदाज कर दिया गया। 

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, 2016 तक दिए गए पद्म पुरस्कारों के विश्लेषण से कुछ राज्यों के पक्ष में असंगत तथा एकतरफा झुकाव रहा, जिसमें दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश का हिस्सा सभी 4329 पद्म पुरस्कारों (2016 तक) में से 50 प्रतिशत से अधिक है। इसके अलावा, प्रति 10 लाख भारतीयों को औसतन 3.58 पुरस्कार मिले, दिल्ली को 2016 तक प्रति मिलियन लोगों पर 47 से अधिक पुरस्कार मिले, यह इस तथ्य का स्पष्ट संकेत है कि अतीत में पद्म पुरस्कार केवल उन मुट्ठी भर लोगों को दिए गए जो सरकार के करीब थे या राजनीतिक गलियारे से उनका संबंध था। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान, इन पुरस्कारों को प्रदान करने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि पद्म पुरस्कारों के प्रति मोदी सरकार के दृष्टिकोण में ‘आदर्श बदलाव’ काफी हद तक मोदी जी की विनम्र पृष्ठभूमि के कारण संभव हुआ है। 

अल्पसंख्यक समुदायों के लिए ऐतिहासिक, रिकॉर्ड पद्म पुरस्कार : पी.एम. मोदी के नेतृत्व में 2015 से पद्म पुरस्कारों में जिस निरंतरता के साथ भारतीय सुदूर इलाकों के गुमनाम नायकों को जगह मिली है, ये पुरस्कार अब एक पारदर्शी और समावेशी चयन प्रक्रिया के साथ ‘पीपुल्स पद्म’ या ‘पीपुल्स अवार्ड्स’ में बदल गए हैं। जहां पहले इन पुरस्कारों के लिए सत्तारूढ़ व्यवस्था में किसी का प्रभाव आवश्यक था।

पहले अल्पसंख्यक समुदायों से नाममात्र की संख्या में लोग थे, जबकि 2024 में पद्म पुरस्कार विजेताओं की सूची में अल्पसंख्यक समुदायों से रिकॉर्ड संख्या में लोग शामिल हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि पी.एम. मोदी की सरकार के लिए किसी व्यक्ति की जाति या धर्म कोई महत्व नहीं रखता बल्कि व्यक्ति की योग्यता ही निर्णायक कारक है। इस वर्ष की सूची में, पुरस्कार विजेताओं में 9 ईसाई, 8 मुस्लिम, 5 बौद्ध, 3 सिख, 2 जैन, 2 पारसी और 2 स्वदेशी धर्म से संबंधित हैं। 

प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के तहत पद्म पुरस्कार अधिक समावेशी हो गए हैं, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इस वर्ष के पुरस्कार विजेताओं में से 40 व्यक्ति अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी से हैं जबकि 11 अनुसूचित जाति और 15 अनुसूचित जनजाति से हैं, जिन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान दिया गया। यही नहीं पद्म पुरस्कार भी अब स्पष्ट रूप से लिंग समावेशी हो गए हैं क्योंकि वर्ष 2024 में 30 महिलाओं को पद्म पुरस्कार मिले है। इस के अलावा पुरस्कार पाने वालों में 49 वृद्ध लोग शामिल थे जिन्हें आजीवन योगदान के लिए सम्मानित किया गया। 

पी.एम. मोदी के नेतृत्व में पद्म पुरस्कार विजेताओं की चयन प्रक्रिया में बड़ा और अहम बदलाव अब अधिक दिखाई देने लगा है क्योंकि अब पुरस्कारों के लिए नामांकित व्यक्तियों की पहचान की तुलना में उनके द्वारा किए गए कार्यों पर अधिक जोर दिया जा रहा है। इसके अलावा पारम्परिक दृष्टिकोण से हटकर जहां कुछ चयनित व्यक्तियों द्वारा नामांकन की सिफारिश की जाती थी, वहीं अब नामांकन प्रक्रिया को व्यापक रूप देते हुए नामांकन बड़े पैमाने पर जनता के लिए खोल दिए गए हैं। इससे जमीनी स्तर पर उन गुमनाम एवं वास्तविक नायकों को पहचानना संभव हो गया है, जिनके अथक प्रयासों और उल्लेखनीय कार्यों ने उनके समुदायों बल्कि असंख्य  लोगों के जीवन को प्रभावित किया है।-सतनाम सिंह संधू (सांसद राज्यसभा)


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