भारत में लोकतंत्र सांस लेने के लिए हांफ रहा

punjabkesari.in Sunday, Aug 14, 2022 - 04:34 AM (IST)

पाठकों को भारत के संविधान की प्रस्तावना में 3 शब्द सम्प्रभु, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक याद आएंगे। वे एक आधुनिक गणराज्य के परिभाषित गुण हैं। इस तरह के गणतंत्र की स्थापना के लिए भारत ने 15 अगस्त 1947 को अपनी आजादी हासिल की। कल राष्ट्र स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा। मुझे यकीन है कि हमारा राष्ट्र 100वीं वर्षगांठ और उसके आगे कई अन्य वर्षगांठों को मनाने के लिए जीवित रहेगा, लेकिन मैं यह सवाल बड़ी उत्सुकता के साथ पूछता हूं कि क्या 2047 में गणतंत्र सम्प्रभु, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक जैसे शब्द रहेंगे?

सम्प्रभुता कहां है? : सदियों से भारत के अधिकांश हिस्से केवल इस अर्थ में सम्प्रभु थे कि उन पर विदेशी राजाओं और रानियों का शासन नहीं था। राज्य सम्प्रभु था लेकिन उसके लोग नहीं थे। कई शासक तो निरंकुश और अक्षम थे तथा उन्होंने लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कोई कार्य नहीं किया। एक गणतांत्रिक संविधान के तहत केवल राज्य ही सम्प्रभु नहीं है बल्कि लोग भी सम्प्रभु हैं। शासकों को बदलने की शक्ति एक सम्प्रभु लोगों की पहचान है।

स्वतंत्रता और निष्पक्ष चुनाव लोगों का सम्प्रभु अधिकार है। हालांकि हाल के वर्षों में यह सब बादलों के पीछे ढंक गया है। आजकल चुनाव बड़े पैमाने पर पैसे से तय होते हैं और भाजपा के पास सबसे ज्यादा पैसा है। वास्तव में, भाजपा सरकार ने राजनीतिक दलों को दान किए गए धन का लगभग 95 प्रतिशत प्राप्त करने के लिए एक शैतानी चतुर और अपारदर्शी साधन (इलैक्ट्रोरल बांड) का आविष्कार किया।

भाजपा के पास चुनाव जीतने के लिए अन्य साधन भी हैं। मीडिया को वश में कर लिया गया है। वहीं संस्थानों पर कब्जा कर लिया गया है। कानून को हथियार के तौर पर इस्तेमाल में लाया जा रहा है और एजैंसियां इस पार्टी के अधीन हैं। यदि भाजपा चुनाव हार जाती है तो उसके पास ‘आप्रेशन लोट्स’ नामक अंतिम हथियार भी है जिसे उसने गोवा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, कर्नाटक और मध्यप्रदेश में इस्तेमाल किया और राजस्थान में इसका प्रयास किया। क्या हम उस बिंदू पर पहुंच जाएंगे जब चुनाव स्वतंत्र या निष्पक्ष हो जाएंगे? मुझे पूरी उम्मीद है कि नहीं, लेकिन उस खतरे से पूरी तरह से इंकार नहीं किया जा सकता।

कांग्रेसमुक्त भारत केवल कांग्रेस को निशाना बनाने वाली गोली नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का हालिया बयान कि, ‘‘केवल भाजपा को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में छोड़ कर छोटे दल गायब हो जाएंगे।’’ सामान्य राजनीति बयानबाजी से अधिक है। यह एक ऐसा विचार है जिसे भाजपा की नर्सरी में बड़ी सावधानी से पोषित किया जाता है। लोग एक झटके में अपनी सम्प्रभुता नहीं खोएंगे। यह किसी को आहिस्ता-आहिस्ता जहर देने जैसा होगा। कटाव की शुरूआत थोड़ी-थोड़ी करके व्यक्तिगत स्वतंत्रता, बोलने और लिखने की स्वतंत्रता, असहमति का अधिकार, निजता, यात्रा करने की आजादी तथा अंतत: भय से मुक्ति होगी। हम अपने आप से पूछें कि भारत किस दिशा में जा रहा है?

धर्म निरपेक्षता कहां है? : कुछ ही वर्षों में भारत सबसे अधिक आबादी वाला देश होगा और इसकी जनसंख्या 160 करोड़ तक पहुंच जाएगी। चूंकि प्रजनन दर अभिसरन कर रही है, जनसंख्या की धार्मिक संरचना वर्तमान अनुपात से महत्वपूर्ण रूप से नहीं बदलेगी। हिंदू 78.4 प्रतिशत, मुसलमान 14.4 प्रतिशत, ईसाई 2.2, सिख 1.7 तथा अन्य 3.3 प्रतिशत है। 2000 वर्षों तक भारत एक बहुसंख्यक देश था, जो आज भी है मगर ऐसा लगता है कि हम अपने अनेकतावाद को नकारने के लिए एक तेज गति से गुजर रहे हैं।

इसके विपरीत अमरीका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड दूसरों के बीच बहुल समाज होने के बड़े लाभों को गर्व से स्वीकार करते हैं। अदालतों, मीडिया और विश्वविद्यालयों सहित उनके संस्थान सक्रिय रूप से अपने रैंक में विविधता तलाश करते हैं और उसे बढ़ावा भी देते हैं। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में मुस्लिम और ईसाई समुदायों से एक-एक माननीय न्यायाधीश है। सिखों में से भी कोई भी नहीं है। ऐसी आशंका जताई जाती है कि अवलंबी के सेवानिवृत्त होने पर किसी अन्य मुस्लिम या फिर ईसाई न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की जा सकती। अपने आप से पूछें, क्या भारत धर्मनिरपेक्ष के अलावा कुछ और भी हो सकता है?

हमारा संगीत, साहित्य, सिनेमा, खेल, विज्ञान, चिकित्सा, कानून, शिक्षण और सिविल सेवाओं से यदि हम मुसलमानों और इसाइयों को बाहर कर दें तो ये सब और खराब हो जाएंगे। भाजपा और आर.एस.एस. के नेताओं ने धर्मनिरपेक्षता को बदनाम किया है। उन्होंने इसे ‘तुष्टीकरण’ कहा है और इसने जम्मू-कश्मीर, चुनावी प्रतिनिधित्व, आरक्षण, भाषा,भोजन की आदतों, कपड़े और व्यक्तिगत कानून पर उनके दृष्टिकोण और नीति को विकृत कर दिया है। धर्म निरपेक्षता की मृत्यु और एक हिंदू राष्ट्र की घोषणा भारत के विचार के लिए एक बड़ा झटका होगी। अधिकांश भारतीय उस परिणाम की कामना नहीं करते हैं लेकिन भाजपा समर्थकों का भारी बहुमत हिंदू राष्ट्र चाहता है।

लोकतंत्र कहां है? : लोकतंत्र सिर्फ हर 5 साल में एक बार मतदान नहीं कर रहा है। संवाद, चर्चा, वाद-विवाद और असहमति के माध्यम से हर दिन लोकतंत्र का अभ्यास करना होगा। भारत में लोकतंत्र सांस लेने के लिए हांफ रहा है। प्रत्येक वर्ष ऐसे कम दिन होते हैं जब संसद और विधानसभाओं की बैठक होती है। प्रत्येक राज्य का दल अपने गृह राज्य में अपने स्थान के लिए लड़ता है। लेकिन अन्य राज्य के दल उनकी रक्षा करने में अनिच्छुक हैं। कल जब आप तिरंगे को सलाम करते हैं तो कृपया इसके डिजाइनर पिंगली वैकेंया को याद करें और यह कि वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में तिरंगा सम्प्रभुता, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करता है।-पी. चिदम्बरम


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