लोगों को दी मुफ्त की सुविधाएं राज्य सरकारों को बना रही हैं कंगाल

punjabkesari.in Sunday, Dec 02, 2018 - 04:11 AM (IST)

चुनावी माहौल में मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार और पार्टियां तरह-तरह के उपाय करती आ रही हैं। उदाहरण के तौर पर चुनावों के मौसम में अनेक राज्यों में मतदाताओं को साडिय़ां, टैलीविजन सैट, मंगलसूत्र आदि बांटे जाते हैं। राज्य सरकारें चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले तरह-तरह के उपहार मतदाताओं को देने की घोषणा करती हैं।

इसी के अंतर्गत कुछ राज्यों की सरकारों द्वारा किसानों तथा मतदाताओं के एक वर्ग को मुफ्त बिजली जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं ताकि मतदाता अगली बार भी उसी पार्टी की सरकार बनवाने के लिए मतदान करें। कुछ राज्य सरकारों ने अपनी योजनाओं में शामिल करके लोगों को ऐसे लैपटॉप, मोबाइल आदि भी बांटे हैं जिन पर संबंधित सरकारों के प्रमुखों के चित्र लगे होते हैं और इन्हें हटाया नहीं जा सकता। हालांकि चुनाव आयोग ने इसे ‘गंभीर’ नहीं माना है परंतु यह सर्वथा गलत रुझान है। 

लोगों को मुफ्त की सुविधाएं देने के दुष्परिणामों की ओर ध्यान दिलाते हुए उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने गत दिवस एक समारोह में ऋण माफी और मुफ्त बिजली देने के अल्पकालिक समाधानों की कटु आलोचना की। उन्होंने चेतावनी दी कि लोगों को मुफ्त की सुविधाएं देने के परिणामस्वरूप राज्य कंगाल तक हो सकते हैं। इस प्रकार के आचरण में संलिप्त न होने की राजनीतिज्ञों को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘लोगों को मुफ्त की सुविधाएं देने से आप लोकप्रिय तो हो सकते हैं लेकिन ऐसा करके आप राज्य को कंगाल कर देंगे। किसानों को 24 घंटे की सुनिश्चित बिजली आपूर्ति चाहिए, मुफ्त बिजली नहीं।’’ 

इस संदर्भ में उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में श्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल का हवाला देते हुए कहा, ‘‘उन्होंने कभी भी मुफ्त बिजली की पेशकश नहीं की लेकिन इसके बावजूद अपनी पार्टी को 3 बार सत्ता में लाए।’’ इसी प्रकार 23 नवम्बर को मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि जन वितरण सेवाओं के जरिए राशन कार्ड धारकों को मुफ्त में चावल देने की सुविधा सिर्फ बी.पी.एल. परिवारों तक सीमित रखी जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि सभी वर्गों के लोगों को मुफ्त की रेवडिय़ां बांटने से लोग ‘आलसी’ हो गए हैं। न्यायमूर्ति एन. किरूबाकरण और न्यायमूर्ति अब्दुल कुद्दूस की पीठ ने कहा कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस प्रकार का लाभ सभी वर्गों को देने के कारण लोग सरकार से ‘सब कुछ मुफ्त में पाने’ की उम्मीद करने लगे हैं और आलसी हो गए हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि हमें छोटे-छोटे कामों के लिए अन्य राज्यों से प्रवासी मजदूरों को बुलाना पड़ रहा है। 

न्यायमूर्ति एन. किरूबाकरण और न्यायमूर्ति अब्दुल कुद्दूस ने कहा कि वे मुफ्त चावल बांटने की योजना के विरुद्ध नहीं हैं परंतु इसे केवल जरूरतमंदों और गरीबों के लिए सीमित करना आवश्यक है। राजनीतिक स्वार्थ के लिए साधन-संपन्न परिवारों को सुविधाएं देना बेहद गलत है।उल्लेखनीय है कि एक ओर जहां देश में राजनीतिक पार्टियां और राज्य सरकारें चुनाव जीतने तथा सत्ता में बनी रहने के लिए मतदाताओं को उपहार और सुविधाएं देने का हथकंडा अपना रही हैं तो दूसरी ओर विश्व में स्विट्जरलैंड जैसा भी एक देश है जिसकी जनता ने सरकार की यह पेशकश ठुकरा दी थी। इस तथ्य से भला कौन इंकार कर सकता है कि वस्तुओं और सुविधाओं के मुफ्त वितरण से राजकोष पर बोझ बढ़ता है और देश की विकास योजनाएं बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। 

इस परिप्रेक्ष्य में श्री वेंकैया नायडू तथा मद्रास उच्च न्यायालय के मान्य न्यायाधीशों न्यायमूर्ति एन. किरूबाकरण और न्यायमूर्ति अब्दुल कुद्दूस की टिप्पणियां बिल्कुल सही हैं कि मुफ्त की सुविधाएं राज्य सरकारों को दिवालिया बनाती हैं और लोगों को आलसी बनाने में अपनी भूमिका निभाती हैं जिसका दुष्प्रभाव अंतत: देश, राज्य और समाज पर ही पड़ता है।—विजय कुमार


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Pardeep

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