देश के उत्तरी, पूर्वी व पश्चिमी भागों में लगातार बढ़ती जा रही बेचैनी

punjabkesari.in Sunday, Jun 18, 2017 - 12:04 AM (IST)

देश का बड़ा भाग इन दिनों विभिन्न आंदोलनों की लपटों में घिरा हुआ और अशांत है तथा देशवासी अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। पाकिस्तान के जन्म से ही इसके पाले हुए आतंकियों-अलगाववादियों ने जम्मू-कश्मीर में छद्म युद्ध छेड़ रखा है। हालांकि सुरक्षा बल यहां सक्रिय आतंकवादियों और पाक सेना के हमलों का मुंह तोड़ जवाब दे रहे हैं तथा उन पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करने के अलावा आतंकवाद प्रभावित इलाकों में तलाशी अभियान भी जारी रखे हुए हैं परंतु शांति अभी दूर है। 

सुरक्षाबलों द्वारा 16 जून को जुनैद मट्टू सहित 3 आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराने का बदला लेने के इरादे से लश्कर के एक दर्जन आतंकवादियों ने 6 पुलिस कर्मियों पर हमला करके उन्हें शहीद कर दिया। इसी दिन नौशहरा सैक्टर में सुबह 6 बजे के लगभग पाकिस्तान की तरफ से की गई गोलाबारी में नायक बख्तावर सिंह शहीद हो गए। अगले दिन 17 जून को भी आतंकवादियों द्वारा शरारतें किए जाने के समाचार हैं। जम्मू-कश्मीर आतंकवाद के कारण अशांत है तो दूसरी ओर कर्ज माफी व अन्य मांगों को लेकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व महाराष्टï्र समेत देश के अनेक राज्यों में किसान आंदोलन कर रहे हैं। 

इसी सिलसिले में 62 किसान संघों के महासंघ ने 16 जून को देश भर में नैशनल हाइवे जाम करके प्रदर्शन किए और 21 जून को योग दिवस पर ‘शवासन’ करने तथा 6 जुलाई से देश में पदयात्रा शुरू करने का फैसला किया है। इसी प्रकार बंगाल में ममता बनर्जी द्वारा दार्जीलिंग दौरे के दौरान राज्य के गोरखा बहुल दार्जीलिंग और आस-पास के इलाकों के सरकारी स्कूलों में बंगाली भाषा की पढ़ाई अनिवार्य करने की घोषणा के विरुद्ध ममता विरोधी प्रदर्शनों के साथ ही पृथक गोरखालैंड की मांग का मुद्दा पुन: भड़क उठा है। 

इसे लेकर बंगाल सरकार और गोरखा जन मुक्ति मोर्चा (जी.जे.एम.) में ठन गई है। इस आंदोलन में जी.जे. एम. व अनेक राजनीतिक दल शामिल हो गए हैं जिनमें ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का सहयोगी दल गोरखा नैशनल लिबरेशन फ्रंट (जी.एन.एल.एफ.) भी शामिल है। उल्लेखनीय है कि लम्बे समय से तीन गोरखा बहुल पहाड़ी इलाकों कुर्सियांग, कलिम्पोंग और दार्जीलिंग को मिलाकर अलग गोरखालैंड राज्य बनाए जाने की मांग की जा रही है। समय-समय पर कई बार तेज होकर थम चुके इस आंदोलन को दार्जीलिंग के स्कूलों में बंगाली भाषा पढ़ाने की ममता बनर्जी की घोषणा से नया ईंधन मिल गया है। हालांकि ममता ने 8 जून को ही स्पष्टï कर दिया था कि पहाड़ी इलाकों में बंगाली अनिवार्य नहीं की जाएगी परंतु 12 जून से दहक रहे दार्जिलिंग तथा आस-पास के इलाकों में आंदोलन तेज होता ही जा रहा है। 

इस दौरान पुलिस ने जी.जे.एम. के मुखिया बिमल गुरंग के कई ठिकानों पर छापे मार कर भारी मात्रा में हथियार और नकदी जब्त की जिसके विरोध में जी.जे.एम. ने दार्जीलिंग में अनिश्चितकालीन बंद की घोषणा कर दी है। दार्जीलिंग में अनेक स्थानों पर आगजनी और तोड़-फोड़ की घटनाओं के दौरान सरकारी सम्पत्ति को भारी क्षति पहुंचाई गई है। 15 जून रात को ‘घायबारी’ रेलवे स्टेशन की खिलौना रेलगाड़ी को भी जला डाला गया। जहां कोलकाता हाईकोर्ट ने दार्जीलिंग बंद को पूर्णत: असंवैधानिक बताया है वहीं बिमल गुरंग के ठिकानों पर छापेमारी के बाद से दार्जीङ्क्षलग के पहाड़ी इलाकों में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं और पर्यटक वहां से चले गए हैं। 

17 जून को सुरक्षा बलों की जी.जे.एम. वर्करों से झड़प में आई.आर.बी. के एक सहायक कमांडैंट अरुण तमांग पर खुखरी से हमला कर दिया गया जिसके परिणामस्वरूप उनके सहित अनेक सुरक्षा कर्मी और आम नागरिक घायल हो गए तथा पर्वतीय क्षेत्रों में बंद रहा। प्रदर्शनकारियों ने दार्जीलिंग में पी.डब्ल्यू.डी. कार्यालय व अन्य इमारतों तथा वाहनों को अग्रिभेंट कर दिया तथा सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 2 लोग मारे गए। 

इन हालात का सामना करने के लिए जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों को और मुस्तैद करने, आंदोलनकारी किसानों की उचित मांगों को स्वीकार करने और बंगाल में भड़क रही अलगाववाद की आग को अविलंब शांत करने की जरूरत है, ताकि हालात बेकाबू न हो जाएं। इतना ही नहीं जी.एस.टी. को लेकर देश के व्यापारी वर्ग में भी भारी रोष है जो बढ़ता ही जा रहा है। वतन की फिक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है, तेरी बर्बादियों के मशविरे हैं आसमानों में —विजय कुमार 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News