जम्मू-कश्मीर में ‘आतंकवादी हिंसा से’ ‘विधवाओं और अनाथों की बढ़ रही संख्या’

punjabkesari.in Tuesday, Jul 07, 2015 - 12:17 AM (IST)

वर्षों से अलगाववाद और आतंकवाद की मार झेलते-झेलते ‘धरती का स्वर्ग’ कश्मीर लहूलुहान हो चुका है। यह एक वास्तविकता है कि जम्मू-कश्मीर में 90 के दशक में शुरू हुई पाक समर्थित उग्रवाद की आग अभी तक दहक रही है और इस राज्य को पूर्ण शांति का अभी भी इंतजार है।

प्रदेश में जारी अशांति और हिंसा से बड़ी संख्या में परिवार उजड़ रहे हैं। वर्ष 2009 तक वहां 47000 से अधिक लोग मारे जा चुके थे जिसमें 7000 सुरक्षा बलों के सदस्य भी शामिल हैं। यही नहीं इस अवधि में 3400 से अधिक लोग लापता भी हुए जिनका कोई सुराग अब तक नहीं लगा।
 
बाद के 6 वर्षों में और कितने लोग मारे गए होंगे, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि सीमा पार से होने वाली गोलीबारी तथा घाटी में होने वाली आतंकवादी घटनाओं में लगभग रोज ही निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं।
 
इसके परिणामस्वरूप कितनी ही प्रतिभाएं अकाल मृत्यु की गोद में जा रही हैं और यही कारण है कि पिछले 2 दशकों से प्रदेश में विधवाओं, अनाथ बच्चों और बेसहारा बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 
 
‘इस्लामिक रिलीफ एंड रिसर्च ट्रस्ट’ के अध्यक्ष अब्दुल राशिद हनजूरा ने भी एक बयान में अनाथों तथा विधवाओं की बढ़ती संख्या के लिए घाटी के अस्थिर माहौल को ही जिम्मेदार ठहराया है।
 
घाटी की बदलती सामाजिक परिस्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि इन परिस्थितियों में जल्दी ही सुधार नहीं किया गया तो इसके परिणामस्वरूप आगामी कुछ वर्षों में गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। 
 
कुछ समय पूर्व एक अध्ययन में बताया गया था कि घाटी में जारी रहने वाली हिंसक घटनाओं में निर्दोष लोगों के मारे जाने और वहां की अशांत और अस्थिर परिस्थितियों के परिणामस्वरूप वहां की महिलाएं अत्यधिक मानसिक तनाव की शिकार हो रही हैं।
 
अत: एक ओर तो घाटी में हिंसा जारी रहने के कारण बुजुर्गों से बुढ़ापे का सहारा छिन रहा है, महिलाओं के सुहाग और बच्चों के सिर से उनके पिताओं का साया उठ रहा है तो दूसरी ओर महिलाओं में पनप रहा डिप्रैशन और बांझपन एक नई चिंता का कारण बन रहा है।
 
इस सबके बावजूद अमरनाथ यात्रा की सफलता, पर्यटकों की संख्या में वृद्धि आदि के परिणामस्वरूप राज्य में आई खुशहाली से आतंकवादी तत्वों के पेट में मरोड़ उठ रहे हैं। इन्हीं में से एक जमात-उद-दावा का सरगना हाफिज सईद कश्मीर में कोई नई मुसीबत खड़ी करने के लिए योजना बनाने में जुटा हुआ बताया जाता है।
 
यह एक निववाद तथ्य है कि जम्मू-कश्मीर के बच्चे भी देश के अन्य बच्चों से किसी भी हालत में कम नहीं हैं और उनकी यह योग्यता इसी से स्पष्ट है कि अभी हाल ही में घोषित संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित देश की प्रतिष्ठित ‘सिविल सेवा परीक्षा’ में जम्मू-कश्मीर से 3 महिलाओं समेत 9 अभ्यर्थियों ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
 
यह लगातार छठा साल है जब जम्मू और कश्मीर के युवाओं ने सिविल सेवा में जगह बनाई है। स्पष्ट है कि यदि प्रदेश में रोज-रोज होने वाले खून-खराबे का अंत करके वहां शांति बहाल हो जाए, घाटी में हिंसा, पत्थरबाजी और ऐसी ही अन्य घटनाओं पर विराम लग जाए तो जम्मू-कश्मीर में भी एक बार फिर सुख सम्पन्नता की एक नई इबारत लिखी जा सकती है। 
 
तब न तो बूढ़े माता-पिता को अपने सामने अपने जवान बेटों की मौत देखनी पड़ेगी, न महिलाएं विधवा होंगी और न ही बच्चों के अनाथ होने की नौबत आएगी। बड़े बुजुर्गों और महिलाओं को तनाव से मुक्ति मिलेगी, बच्चों को पढऩे के अधिक अच्छे अवसर प्राप्त होंगे और वे देश तथा प्रदेश के लिए उपयोगी नागरिक सिद्ध होंगे और कश्मीर वासी एक बार फिर शान से कह सकेंगे : 
 
‘‘गर फिरदौस बर रुए जमीं अस्त, हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्त’’
(यदि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है)
 

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