मुद्दों की तलाश में विपक्षी दल

punjabkesari.in Sunday, Apr 14, 2019 - 03:34 AM (IST)

चुनाव का पहला चरण पूरा हो चुका है। इस दौरान देश भर में मोदी फैक्टर हावी रहा। अमित शाह ने भाजपा कार्यकत्र्ताओं को यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि वे 50 प्रतिशत मतदान के लिए प्रयास करें। उनका यह उद्देश्य भाजपा की मजबूत स्थिति वाले राज्यों के अलावा विपक्षी गठबंधन की मजबूती वाले राज्यों में भी पूरा हुआ। 

गठबंधन न हो पाने के कारण कई राज्यों में विपक्ष बिखरा हुआ है। बहुकोणीय मुकाबले से निश्चित तौर पर भाजपा को फायदा होगा। वामपंथियों, तृणमूल और कांग्रेस तथा अब आप और कांग्रेस के बीच वाक् युद्ध स्पष्ट दिखाई दे रहा है। नेतृत्व के मामले में स्थिति उससे भी खराब है जितना मैंने सोचा था। बसपा नेता मायावती, तृणमूल नेता ममता बनर्जी कांग्रेस अध्यक्ष को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। 

एक लोकप्रिय सरकार और अति लोकप्रिय प्रधानमंत्री को सत्ता से बाहर करने के लिए आपके पास असली मुद्दे होने चाहिएं न कि मनगढं़त मुद्दे। पिछले दो साल में विपक्ष ने ऐसे मुद्दे बनाने में खर्च कर दिए जिनका कोई अस्तित्व नहीं था। राफेल पर झूठे प्रचार में कोई दम नहीं था। उद्योगपतियों को कर्ज माफी एक झूठ था, ई.वी.एम. के बारे में भी झूठ बोला गया।  अब जबकि लगभग एक महीने से वह प्रचार के बीच हैं, ऐसे में वह किस मुद्दे पर केन्द्रित हो पा रहे हैं? 

हस्ताक्षर अभियान का दुष्प्रचार 
एक हथकंडा यह अपनाया जा रहा है कि समाज के विभिन्न वर्गों में सरकार के आलोचक ढूंढे जा रहे हैं जो भाजपा के खिलाफ ज्ञापनों पर हस्ताक्षर कर दें। 2014 के चुनाव प्रचार में भी इस तरह के ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए थे। दोनों तरफ की राजनीतिक विचारधारा में कई ऐसे लोग मिल जाते हैं जो किसी न किसी कारण से ऐसे ज्ञापनों पर हस्ताक्षर कर देते हैं। इन समूहों में शिक्षाविद्, अर्थशास्त्री, कलाकार, पूर्व नौकरशाह, अब पूर्व सैनिक भी शामिल हैं- जिन लोगों के हस्ताक्षर हैं उनमें से बहुत से लोगों ने इस बात से इंकार किया है कि उन्होंने कोई हस्ताक्षर किए हैं। भाजपा और इसके सहयोगी लोगों से सीधे बात कर रहे हैं। वे रैलियों, मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से बात कर रहे हैं। करोड़ों प्रचारक पार्टी और सरकार का संदेश लोगों तक पहुंचा रहे हैं। पिछले पांच साल में सरकार के खिलाफ एक भी मुद्दा नहीं होने के कारण अब उनकी रणनीति प्रतिदिन एक मुद्दा उछालने और उसको ट्वीट करने या प्रैस ब्रीफिंग करने की हो गई है। विपक्ष के प्रचार की स्थिति इतनी दयनीय है। 

प्रत्येक दिन के लिए एक नया मुद्दा 
एक दिन पुलवामा को प्रायोजित बताकर सवाल उठाया गया। दूसरे दिन कहा गया कि बालाकोट हुआ ही नहीं। सैटेलाइटरोधी मिसाइल को नेहरू का योगदान बताया गया जबकि डा. होमी भाभा से पंडित जी की बातचीत इसकी पुष्टि नहीं करती है। एक दिन भाजपा पर युद्ध उन्मादी होने का आरोप लगाया जाता है और दूसरे ही दिन उसे पाक परस्त कहा जाता है। 

कभी विपक्ष भाजपा के उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाता है और यह भूल जाता है कि यदि राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता का पब्लिक आडिट हो जाए तो उनके लिए जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने मास्टर डिग्री के बगैर एम. फिल की है। विपक्ष द्वारा पिछले कुछ महीनों में जो कुछ कहा गया और अब जो प्रचार किया गया है उसका आपस में कोई संबंध नहीं है। विपक्ष के पास न तो कोई नेता है, न गठबंधन, न न्यूनतम सांझा कार्यक्रम और न ही कोई असली मुद्दा। इसमें कोई हैरानी नहीं कि उनके ‘असफल प्रचार’ को कोई भी गम्भीरता से नहीं ले रहा। यह मुद्दा विहीन प्रचार है। 


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