विपक्ष व सत्तारूढ़ घटक की रैलियों का उद्देश्य व सफलता

punjabkesari.in Tuesday, Apr 02, 2024 - 05:51 AM (IST)

31 मार्च को राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की तथा चुनाव की घोषणा के बाद उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजग की पहली रैली मेरठ में हुई। हालांकि इस बार मेरठ रैली से ज्यादा प्रचार रामलीला मैदान का था क्योंकि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी तथा कांग्रेस पर आयकर विभाग द्वारा 3567 करोड़ की देनदारी का नोटिस मिलने के बाद यह पहली रैली थी। निश्चित रूप से चुनावी माहौल के कारण दोनों का महत्व था और संपूर्ण देश का ध्यान इन पर था। भाजपा और राजग की दृष्टि से देखें तो यह चुनाव की सामान्य रैली मानी जाएगी। जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल का भाजपा के साथ गठबंधन है और वह इस रैली में मौजूद रहेंगे, इसे लेकर किसी को संदेह नहीं था। इसलिए रैली का आकर्षण तो था किंतु कौतूहल जैसा कुछ नहीं था। 

इसके समानांतर ‘इंडिया’ की रैली को लेकर कौतूहल भी था तथा इसके नेताओं के लिए अभी तक का सबसे बड़ा अवसर भी माना जाएगा। कारण, विपक्ष जनता के बीच स्वयं को पीड़ित और दमित बताकर चुनाव में जा रहा है तथा उसका मूल स्वर यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार विपक्षी नेताओं और पार्टियों को खत्म करने के लिए सरकारी एजैंसियों का दुरुपयोग कर रही है, जो देश में लोकतंत्र को खतरा है। इसलिए इसका नाम ही लोकतंत्र बचाओ रैली रख दिया गया। स्वाभाविक ही राजधानी दिल्ली से देश की जनता को अपनी बात प्रभावशाली ढंग से पहुंचाने तथा उनका समर्थन हासिल करने की संभावना पैदा करने का अभी तक का सबसे बड़ा अवसर था। अगर वह अपने कार्यकत्र्ताओं, कट्टर समर्थकों के अलावा कुछ समूहों को और प्रभावित कर पाते तो चुनाव में ताकत बढ़ाने की संभावना पैदा हो सकती थी। प्रश्न है कि क्या इस दृष्टि से ‘इंडिया’ की रामलीला मैदान रैली वाकई सफल मानी जा सकती है? 

राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी का अभी तक ठोस जनाधार बना हुआ है। 70 में से 62 विधायक उसके हैं। इस कारण यहां अच्छी-खासी संख्या अपेक्षित ही थी। इसके साथ पंजाब में भी उनकी सरकार है और हरियाणा, राजस्थान से कांग्रेस के लोगों की उपस्थिति भी संभावित थी। अखिलेश यादव इसमें शामिल थे, इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश से सपा कार्यकत्र्ताओं और समर्थकों का भी आना निश्चित था। यह तो नहीं कहा जा सकता कि संख्या दृष्टि से रैली कमजोर थी। संख्या ठीक-ठाक थी, किंतु इतनी तैयारी के बाद राजधानी दिल्ली में जिस तरह का जैन सैलाब दिखना चाहिए था, वैसा नहीं दिखा। अरविंद केजरीवाल के गिरफ्तार होने के बाद से इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा है कि इतने विधायकों और पार्षदों वाली पार्टी का प्रचंड विरोध प्रदर्शन राजधानी में क्यों नहीं हो रहा? 

‘इंडिया’ में शामिल दलों की जो स्थिति है, उसमें इसके ज्यादातर नेताओं या पार्टियों का प्रतिनिधित्व होना था और हुआ। ममता बनर्जी उपस्थित होतीं तो संदेश ज्यादा बेहतर जाता। नेताओं के भाषणों को देखें तो उनमें नए तत्व या पहलू तलाशना मुश्किल है। तथ्यों, तर्कों और प्रखरता के आलोक में भाषण ऐसे नहीं थे, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को लेकर लोगों के अंदर गुस्सा और विद्रोह की भावना पैदा हो। राहुल गांधी अगर 400 पार का नाम लेते हुए मैच फिकिं्सग की बात कर रहे थे, तो तेजस्वी यादव ने कहा कि पहले से ही ई.वी.एम. सैट होगा, तभी 400 का नारा दिया जा रहा है। इसके द्वारा ‘इंडिया’ के नेतागण क्या संदेश दे रहे थे? यह प्रकारांतर से चुनाव परिणाम के पूर्व ही अपनी पराजय को स्वीकार करने जैसा था। इसके अलावा ज्यादातर नेताओं का भाषण, लोकतंत्र खत्म हो गया है, ई.डी., सी.बी.आई. जैसी संस्थाओं के माध्यम से विपक्ष के नेताओं पर कार्रवाई की जा रही है, उनको जेलों में डाला जा रहा है, मीडिया को दबाव में ला दिया गया है आदि पर ही टिका हुआ था। 

विडंबना देखिए कि लोकतंत्र के नाम पर आयोजित रैली का सबसे बड़ा फोकस अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल की उपस्थिति हो गई। जैसे ही समाचार आया कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवान मान सुनीता केजरीवाल को लेकर रामलीला मैदान पहुंच रहे हैं, पूरी मीडिया का ध्यान वहीं केंद्रित हो गया। सुनीता केजरीवाल ने अपने भाषण में बताया कि अरविंद केजरीवाल जी ने आपके लिए 6 गारंटियां दी हैं। ये गारंटियां वही हैं, जो पहले से जनता को क्या मुफ्त दिया जा सकता है, अरविंद केजरीवाल की ओर से अनेक बार बोला जा चुका है। महत्वपूर्ण बात यह थी कि सुनीता ने वहीं कह दिया कि हमने यह बोलने से पहले ‘इंडिया’ के नेताओं से इस पर चर्चा नहीं की लेकिन उम्मीद है कि सभी इसका समर्थन करेंगे। यानी यहां भी अरविंद केजरीवाल ने ‘इंडिया’ में स्वयं को सबसे अलग दृष्टिकोण और विचारों वाला नेता अपनी पत्नी के माध्यम से साबित करने की कोशिश की।

वास्तव में विपक्ष की रैली से कोई एक रूप, एक स्वर का संदेश नहीं निकल पाया। नेता एकत्रित जरूर हुए, उनका गुस्सा भी प्रकट हुआ और किसी तरह नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता से हटाने की भावना भी, लेकिन इसके अलावा कुछ नहीं। लोगों ने देखा है कि राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ नामक गठबंधन नहीं है। केवल कुछ राज्यों में पार्टियों के बीच गठजोड़ है और कुछ में ये आपस में लड़ रहे हैं। जैसे पश्चिम बंगाल और केरल में इनके घटक एक-दूसरे के सामने हैं। अन्य जगह भी कई प्रकार के अंतर्संघर्ष व द्वंद्व हैं। इस रैली का कोई एक ऐसा नेता नहीं था, जिसका सभी एक स्वर में नाम लें और लगे कि उसके नेतृत्व में रैली से एकजुटता का स्वर निकला है। यहां तक कि रैली में सुनीता केजरीवाल शामिल होंगी, इसकी जानकारी भी दूसरी पार्टी के ज्यादातर नेताओं को पहले से नहीं थी। ऐसा होता तो मंच से इसकी घोषणा की जाती। शायद आम आदमी पार्टी या फिर कई अन्य पार्टियों और नेताओं को यह उम्मीद रही होगी कि हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन तथा सुनीता को मंच पर लाकर लोगों की सहानुभूति बटोरी जा सकती है। 

किंतु इसका दूसरा संदेश यह भी निकल रहा था कि आखिर इन नेताओं के जेल में जाने के बाद पार्टी के दूसरे पुरुष या महिला नेता इनकी आवाज बनकर क्यों नहीं आ रहे? क्या पार्टी में भी परिवार की ही आवाज इन नेताओं का प्रतिनिधित्व करेगी? यह ऐसा प्रश्न है, जिसका उत्तर ‘इंडिया’ के लिए देना आसान नहीं रहेगा। आम आदमी पार्टी की ओर से भगवंत मान ने भी अपनी बातें रखीं, पर वह वहां अरविंद केजरीवाल के प्रतिनिधि या पार्टी के भावी नेता के रूप में नहीं दिख रहे थे। दूसरी ओर मेरठ का विश्लेषण करें तो वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग के सभी घटक दलों के बीच विचार, वक्तव्य और व्यवहारों में एकरूपता स्पष्ट दिखाई दे रही थी। किसी का कोई अलग स्वर नहीं था। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई को सही ठहराते हुए यही कहा कि यह जारी रहेगी और इसके नाम पर जो दल इकट्ठे हो रहे हैं, उनके दबाव में सरकार नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि मैं कहता हूं कि भ्रष्टाचार खत्म करेंगे और वह कहते हैं कि हम सरकार को हटाएंगे। दूसरे, उन्होंने लोगों को बताया कि हम अगले 5 वर्षों के लिए सरकार का एजैंडा तैयार कर रहे हैं और परिणामों के बाद नई सरकार गठन होते ही 100 दिनों की कार्ययोजना पहले से तैयार कर ली गई है। 

इस तरह का आत्मविश्वास प्रकट करके जनता को बताया गया कि हम केवल देश के लिए ही सोचते हैं और जिनके स्वार्थ पर आघात पहुंचा है, जिनके भ्रष्टाचार सामने लाकर कार्रवाई हुई है, वही सब हमारी या हमारी सरकार का विरोध कर रहे हैं। इसके साथ-साथ योगी आदित्यनाथ ने मोदी की गारंटी और हिंदुत्व संबंधी विचारों और कार्यों को सामने रखकर कार्यकत्र्ताओं तथा समर्थकों के मनोभावों को अभिव्यक्ति दी। इसी तरह जयंत चौधरी ने जब यह कहा कि दूसरी सरकार होती तो चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न सम्मान नहीं मिलता, तो जनसमूह ने तालियों की गडग़ड़ाहट से इसे समर्थन दिया। इस तरह दोनों रैलियों के तुलना करके आप स्वयं उद्देश्यों की दृष्टि से उनकी सफलता और प्रभावों का आकलन कर सकते हैं।-अवधेश कुमार
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News