हमले के वक्त शहरों में क्यों कर दिया जाता है अंधेरा? जानिए ब्लैकआउट के पीछे की पूरी रणनीति

punjabkesari.in Friday, May 09, 2025 - 12:01 AM (IST)

नेशलन डेस्क: आधुनिक युद्धों में अब केवल टैंक और तोप ही नहीं बल्कि ड्रोन और मिसाइल जैसे हाईटेक हथियारों का जमाना आ गया है। ऐसे में जब किसी देश या शहर पर दुश्मन ड्रोन से हमला करता है तो वहां अचानक ब्लैकआउट यानी पूरी तरह अंधेरा कर दिया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? क्यों हमले के वक्त लाइटें बंद कर दी जाती हैं और पूरा इलाका अंधेरे में डूब जाता है? इस रिपोर्ट में हम आसान और साफ़ हिंदी में आपको समझाएंगे कि ड्रोन या मिसाइल हमलों के दौरान ब्लैकआउट की रणनीति क्यों अपनाई जाती है, इसका इतिहास क्या है और यह कैसे लोगों और महत्वपूर्ण ठिकानों की सुरक्षा करता है।

पहचान से बचाने की रणनीति

ड्रोन या मिसाइल आधुनिक तकनीक से लैस होते हैं जो विजुअल यानी दृश्य या इन्फ्रारेड सेंसर के जरिए अपने लक्ष्य को पहचानते हैं। अगर किसी शहर में रोशनी जल रही हो तो यह दुश्मन के उपकरणों के लिए किसी गाइड की तरह काम करती है। अंधेरे में उड़ता हुआ ड्रोन या दुश्मन का विमान जमीनी गतिविधियों को आसानी से नहीं देख पाता जिससे टारगेट पहचानना मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि हमले के समय रोशनी बंद कर दी जाती है ताकि दुश्मन को भ्रम हो और वह निशाना चूक जाए।

सही निशाना लगाने से रोकने की कोशिश

ड्रोन या मिसाइल जब हमले के लिए आते हैं तो उनका उद्देश्य होता है किसी खास जगह को निशाना बनाना — जैसे कि सेना की छावनी, एयरबेस, पुल, पॉवर स्टेशन या कोई कम्युनिकेशन टॉवर। अगर ऐसे इलाकों में लाइट जलती रहती है तो दुश्मन के प्रिसिजन गाइडेड हथियार यानी सटीक निशाना लगाने वाले हथियार को लक्ष्य तय करने में आसानी होती है। लेकिन अगर लाइट बंद कर दी जाए तो दुश्मन को भ्रम होता है और उसकी मिसाइल या बम किसी दूसरी जगह गिर सकता है, जिससे जान-माल का नुकसान टल सकता है।

नागरिकों की सुरक्षा का अहम उपाय

जब ब्लैकआउट होता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि आम लोग और उनके घर आसानी से दुश्मन की निगाह में नहीं आते। रोशनी से कोई भी मोहल्ला या कॉलोनी स्पष्ट दिखाई देती है लेकिन अंधेरे में सब कुछ एक जैसा नजर आता है। इसलिए युद्ध के समय शहर में ब्लैकआउट किया जाता है ताकि आम लोगों को निशाना बनने से बचाया जा सके। इससे दुश्मन के लिए तय करना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा इलाका सैन्य ठिकाना है और कौन सा रिहायशी क्षेत्र।

रणनीतिक संपत्तियों को छिपाने का तरीका

ब्लैकआउट का एक और बड़ा कारण यह है कि इससे रणनीतिक ठिकाने — जैसे कि सैन्य कमांड सेंटर, हथियार डिपो या महत्वपूर्ण सरकारी इमारतें अंधेरे में छिप जाती हैं। अगर रोशनी होती है तो ये इमारतें और क्षेत्र दुश्मन के ड्रोन कैमरे या थर्मल इमेजिंग सेंसर से दिखाई दे सकते हैं। लेकिन अंधेरे में इनकी पहचान मुश्किल हो जाती है जिससे वे सुरक्षित रहते हैं।

इतिहास में ब्लैकआउट की पुरानी परंपरा क्या है?

ब्लैकआउट कोई नई रणनीति नहीं है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय भी जर्मनी, इंग्लैंड और जापान जैसे देशों में जब बमबारी होती थी तब शहरों को अंधेरे में डुबो दिया जाता था। यह तरीका आज भी कारगर माना जाता है, खासकर तब जब दुश्मन ड्रोन या सैटेलाइट से हमला करता है। अंधेरा होने से कैमरे और सेंसर काम नहीं कर पाते और शहर बच सकता है।

रोशनी बंद कर हमलावर खुद भी बचता है

अगर हम बात करें हमलावर ड्रोन की, तो वह खुद भी लाइट बंद कर उड़ता है ताकि उसकी पहचान ना हो पाए। इसे EMCON यानी Emission Control कहा जाता है। इसमें ड्रोन कोई रेडियो, लाइट या किसी तरह की पहचान देने वाली चीजें नहीं छोड़ता ताकि दुश्मन का रडार या एयर डिफेंस सिस्टम उसे पकड़ ना सके। 
आजकल के ड्रोन सिर्फ कैमरा से ही नहीं बल्कि थर्मल, नाइट विजन, GPS और AI टेक्नोलॉजी से लैस होते हैं। ऐसे में ब्लैकआउट करना जरूरी हो गया है ताकि सभी सेंसर को भ्रमित किया जा सके।


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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